मोरल पोलिसिंग को लेकर हाल में कर्नाटक जितना चर्चा में रहा इतना शायद ही कोई और राज्य रहा होगा और हर बार ज़्यादातर विवाद दक्षिण कर्नाटक से शरू होता है और फिर इसकी चपेट में पूरा राज्य आ जाता और गूंज देश-विदेश में सुनाई देती है।
2009 में मंगलौर के एक पब में मोरल पोलिसिंग के नाम पर जिस तरह से लड़के लड़कियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया था आज भी उसका ज़िक्र होता जब कभी भी देश में कहीं भी मोरल पोलिसिंग के खिलाफ आवाज़ उठती है।
ऐसे में "किस ऑफ़ लव" के आयोजन और उसके विरोध ने राज्य की कांग्रेस सरकार कों दुविधा में डाल दिया है। सिद्धारमैया सरकार के ज़्यादातर मंत्री इस "किस ऑफ़ लव" के आयोजन के पक्ष में नहीं दिखते, लेकिन खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर रहे हैं क्योंकि अबतक मोरल पोलिसिंग करने का आरोप संघ और बीजेपी पर लगता रहा है।
कांग्रेस इस टैग को कैसे अपने साथ चिपका सकती है। ऐसे में गृहमंत्री केजी जॉर्ज ने इस महीने की 30 तारीख को बेंगलुरु में होने वाले इस कार्यक्रम की इजाज़त देने या न देने का फैसला बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर एमइन रेड्डी पर छोड़ दिया है।
ज़ाहिर है कि वो भी फैसला ऐसे संवेदनशील मामले पर बगैर राजनीतिक पहल के नहीं लेंगे। वहीं, सोशल मीडिया के जरिये किस ऑफ़ लव को सफल बनाने की मुहिम ज़ोर पकड़ रही है। इसी साल अक्टूबर में मोरल पोलिसिंग के खिलाफ केरल में इसकी शुरुआत हुई थी और फिर देश के कई शहरों में जोड़े इसके समर्थन में एक दूसरे का चुम्बन लेते देखे गए।
मंगलौर के पब हमले की वजह से सुर्ख़ियों में आयी श्रीराम सेना के प्रमुख प्रमोद मुतालिक ने इसके खिलाफ अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट करना शरू कर दिया है। सुनने में आया है कि बीजेपी के इलावा कुछ दूसरे दल भी जल्द ही इसके खिलाफ सामने आ सकते हैं।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की दुविधा इसलिए भी बढ़ गई है कि उनके शासनकाल में मंगलौर और इससे सटे केरल के इलाक़ों में मोरल पोलिसिंग की घटना में आंशिक तौर पर कमी आई है। ऐसे में "किस ऑफ़ लव" कहीं आग में घी का काम न कर दे वह भी तब जबकि मंगलौर और इसके आसपास के इलाकों के लिए विशेष एंटी मोरल पोलिसिंग फ़ोर्स बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है।
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