आसल उत्ताड़ की लड़ाई ने भारत की विजय के रास्ते खोल दिए।
चंडीगढ़:
पंजाबवासी बुधवार को एक छोटे से गांव तरनतारन में 1965 के शहीदों को श्रद्धांजति अर्पित करेंगे। यह लड़ाई अमरकोट से कुछ ही मील की दूरी पर आसल उत्ताड़ में हुई थी, जिसने युद्ध का मुख हिंदुस्तान के पक्ष में मोड़ दिया था। यह वही युद्धस्थल था, जहां पाकिस्तानी सेना को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा था।
8 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान ने पंजाब के खेमकरण सेक्टर में अपना सबसे बड़ा हमला बोल दिया। उसकी बख्तरबंद और इन्फैंट्री डिवीजन ब्यास नदी पर बने पुलों की ओर आगे बढ़ रहीं थी। उनके लक्ष्य थे अमृतसर, जालंधर और फिर अंत में दिल्ली पर कब्जा करना।
इस हमले में उसकी सबसे बड़ी ताकत अमेरिका से हासिल किए गए नए पैटन टैंक थे।
पैटन टैंक का मुकाबला करने वाले तीसरी कैवलरी रेजीमेंट के मेजर विक्रमादित्य ने बताया, "उस समय पैटन सबसे उन्नत थे। उनका फायर पावर बेहतर था और बख्तर भी काफी भारी थे। "लेकिन इन सबके बावजूद युद्ध में विजय मशीनें नहीं हासिल करतीं, बल्कि युद्ध उन मशीनों को चलाने वाले योद्धा जीतते हैं।"
भारतीय सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय वाले टैंकों के सहारे पैटन टैंकों का मुकाबला किया।
पाकिस्तानी सेना को शुरुआती सफलता भी मिल गई और उसने खेमकरण सेक्टर पर कब्जा कर लिया। रणनीतिक रूप से भारतीय सैन्य दस्ता पीछे हट गया और आसल उत्ताड़ को केंद्र स्थल मानते हुए हॉर्सशू शेप की रक्षात्मक पोजिशन ले ली।
उस रात, सैनिक गन्ने के खेत में छिप गए और अगली सुबह 9 सितंबर को पाकिस्तानी टैंक इस जाल में फंस गए।
आसल उत्ताड़ की लड़ाई में भाग लेने वाले दया सिंह ने बताया, "हमारे स्क्वाड्रिन कमांडर ने हमें निर्देश दिया था कि पैटन के 2 किमी के दायरे में नहीं जाना है... लेकिन हम 300 से 400 मीटर भीतर तक चले गए और दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त कर दिया।"
अगले दिन पाकिस्तानी सेना में खलबली मच गई। 11 सितंबर को भारतीय सेना ने जीत की औपचारिकताएं पूरी करते हुए पूरी तरह कब्जा कर लिया।
पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा। उसके 97 टैंक नष्ट हो गए, जिसमें 72 पैटन टैंक भी शामिल थे, 32 टैंकों को चालू हालत में कब्जे में ले लिया गया। इनमें से कुछ टैंकों को विजेता रेजीमेंट ने युद्ध ट्रॉफी के रूप में रख लिया। भारत को केवल 5 टैंकों का नुकसान हुआ।
8 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान ने पंजाब के खेमकरण सेक्टर में अपना सबसे बड़ा हमला बोल दिया। उसकी बख्तरबंद और इन्फैंट्री डिवीजन ब्यास नदी पर बने पुलों की ओर आगे बढ़ रहीं थी। उनके लक्ष्य थे अमृतसर, जालंधर और फिर अंत में दिल्ली पर कब्जा करना।
इस हमले में उसकी सबसे बड़ी ताकत अमेरिका से हासिल किए गए नए पैटन टैंक थे।
पैटन टैंक का मुकाबला करने वाले तीसरी कैवलरी रेजीमेंट के मेजर विक्रमादित्य ने बताया, "उस समय पैटन सबसे उन्नत थे। उनका फायर पावर बेहतर था और बख्तर भी काफी भारी थे। "लेकिन इन सबके बावजूद युद्ध में विजय मशीनें नहीं हासिल करतीं, बल्कि युद्ध उन मशीनों को चलाने वाले योद्धा जीतते हैं।"
भारतीय सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के समय वाले टैंकों के सहारे पैटन टैंकों का मुकाबला किया।
पाकिस्तानी सेना को शुरुआती सफलता भी मिल गई और उसने खेमकरण सेक्टर पर कब्जा कर लिया। रणनीतिक रूप से भारतीय सैन्य दस्ता पीछे हट गया और आसल उत्ताड़ को केंद्र स्थल मानते हुए हॉर्सशू शेप की रक्षात्मक पोजिशन ले ली।
उस रात, सैनिक गन्ने के खेत में छिप गए और अगली सुबह 9 सितंबर को पाकिस्तानी टैंक इस जाल में फंस गए।
आसल उत्ताड़ की लड़ाई में भाग लेने वाले दया सिंह ने बताया, "हमारे स्क्वाड्रिन कमांडर ने हमें निर्देश दिया था कि पैटन के 2 किमी के दायरे में नहीं जाना है... लेकिन हम 300 से 400 मीटर भीतर तक चले गए और दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त कर दिया।"
अगले दिन पाकिस्तानी सेना में खलबली मच गई। 11 सितंबर को भारतीय सेना ने जीत की औपचारिकताएं पूरी करते हुए पूरी तरह कब्जा कर लिया।
पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा। उसके 97 टैंक नष्ट हो गए, जिसमें 72 पैटन टैंक भी शामिल थे, 32 टैंकों को चालू हालत में कब्जे में ले लिया गया। इनमें से कुछ टैंकों को विजेता रेजीमेंट ने युद्ध ट्रॉफी के रूप में रख लिया। भारत को केवल 5 टैंकों का नुकसान हुआ।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
भारत-पाक युद्ध 1965, तारन तारन, आसल उत्ताड़, भारतीय सेना 1965, पाकिस्तानी सेना 1965, 1965 का पाकिस्तान युद्ध, India-pakistan War 1965, Taran Taran, Asal Uttar, Indian Army 1965, Pakistani Army 1965, 1965 Pakistan War