बेंगलुरु:
बेंगलुरु के जेसी रोड पर बनी झुग्गियों में रहने वाले एक दम्पत्ति की दो साल की बच्ची खेलते खेलते दूसरी मंज़िल से फिसल कर नीचे गिर पड़ी। फ़ौरन उसके पिता पड़ोसियों के साथ उसे लेकर नज़दीक के एक प्राइवेट अस्पताल गए जहां प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने फ़ौरन उस बच्ची को निमहान्स रेफर कर दिया।
क्योंकि उसके कानों से खून का रिसाव हो रहा था और उसकी हड्डियां कई जगहों से टूट गयी थी। सराकर की एम्बुलेंस में उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। एम्बुलेंस फ़ौरन बच्ची को लेकर निमहान्स पहुंची लेकिन निमहान्स के डॉक्टर्स ने मामला इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ को ये कहते हुए रेफर कर दिया कि निमहान्स में उस वक़्त वेंटिलेटर खाली नहीं था। और इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ बच्चों का स्पेशलाइज्ड अस्पताल है जो की निमहान्स से सटा है।
एक बार फिर एम्बुलेंस उस मासूम बच्ची को लेकर इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के लिए निकल पड़ी और वहां पहुंचने में ज़यादा वक़्त नहीं लगा। लेकिन रविवार को ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर्स ने बच्ची को एडमिट करने से ये कहते हुए मना कर दिया कि वहां भी वेंटिलेटर खाली नहीं है।
घबराये मां बाप और पड़ोसी मिन्नतें करते रहे लेकिन डॉक्टर्स ने ध्यान नहीं दिया। प्रत्यक्ष दर्शियों के मुताबिक ड्यूटी डॉक्टर ने कहा कि ये अस्पताल उनके बाप का नहीं है, ले जाओ इस बच्ची को। इसपर बच्ची की तरफ से गए लोगों को भी गुस्सा आ गया और फिर लंबी बहस छिड़ गयी।
मामला बिगड़ता देख एक सोशल वर्कर ने स्थानीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जानकारी दे दी। और जैसे ही कैमरा वहां पहुंचा अचानक माहौल बदल गया। वेंटिलेटर भी खाली हो गया है और डॉक्टर्स भी काफी सक्रिय हो गए। अस्पतालों का चक्कर लगाने और बहस में लगभग 3 घंटे का वक़्त निकल गया तब जाकर बच्ची का इलाज शरू हुआ, लेकिन सोमवार देर शाम उसने दम तोड़ दिया।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री यू.टी. कादर का कहना है कि ये सही है कि वेंटिलेटर की कमी की वजह से परेशानियों का सामना इस बच्ची के मां बाप को करना पड़ा लेकिन घायल होने के बाद बगैर वेंटिलेटर के वो बच्ची कभी नहीं रही क्योंकि एम्बुलेंस का मोबाइल वेंटिलेटर लगातार उसको सपोर्ट दे रहा था।
जब बवाल उठ खड़ा हुआ तो फज़ीहत से बचने के लिए मंगलवार को इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के ड्यूटी डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई।
समस्या लालफीताशाही की भी है। देश के लगभग सभी बड़े सरकारी अस्पताल मेडिकल एजुकेशन मंत्रालय के तेहत आते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की सीमा बंधी है। मेडिकल इक्विपमेंट ख़रीदने से लेकर उसके वितरण तक दुविधा की स्थिति बनी रहती है। छोटे छोटे कामों के लिए कई मंत्रालयों को एक टेबल पर लाना होता है, ऐसे में निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है और इसका खामियाज़ा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
क्योंकि उसके कानों से खून का रिसाव हो रहा था और उसकी हड्डियां कई जगहों से टूट गयी थी। सराकर की एम्बुलेंस में उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। एम्बुलेंस फ़ौरन बच्ची को लेकर निमहान्स पहुंची लेकिन निमहान्स के डॉक्टर्स ने मामला इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ को ये कहते हुए रेफर कर दिया कि निमहान्स में उस वक़्त वेंटिलेटर खाली नहीं था। और इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ बच्चों का स्पेशलाइज्ड अस्पताल है जो की निमहान्स से सटा है।
एक बार फिर एम्बुलेंस उस मासूम बच्ची को लेकर इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के लिए निकल पड़ी और वहां पहुंचने में ज़यादा वक़्त नहीं लगा। लेकिन रविवार को ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर्स ने बच्ची को एडमिट करने से ये कहते हुए मना कर दिया कि वहां भी वेंटिलेटर खाली नहीं है।
घबराये मां बाप और पड़ोसी मिन्नतें करते रहे लेकिन डॉक्टर्स ने ध्यान नहीं दिया। प्रत्यक्ष दर्शियों के मुताबिक ड्यूटी डॉक्टर ने कहा कि ये अस्पताल उनके बाप का नहीं है, ले जाओ इस बच्ची को। इसपर बच्ची की तरफ से गए लोगों को भी गुस्सा आ गया और फिर लंबी बहस छिड़ गयी।
मामला बिगड़ता देख एक सोशल वर्कर ने स्थानीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को जानकारी दे दी। और जैसे ही कैमरा वहां पहुंचा अचानक माहौल बदल गया। वेंटिलेटर भी खाली हो गया है और डॉक्टर्स भी काफी सक्रिय हो गए। अस्पतालों का चक्कर लगाने और बहस में लगभग 3 घंटे का वक़्त निकल गया तब जाकर बच्ची का इलाज शरू हुआ, लेकिन सोमवार देर शाम उसने दम तोड़ दिया।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री यू.टी. कादर का कहना है कि ये सही है कि वेंटिलेटर की कमी की वजह से परेशानियों का सामना इस बच्ची के मां बाप को करना पड़ा लेकिन घायल होने के बाद बगैर वेंटिलेटर के वो बच्ची कभी नहीं रही क्योंकि एम्बुलेंस का मोबाइल वेंटिलेटर लगातार उसको सपोर्ट दे रहा था।
जब बवाल उठ खड़ा हुआ तो फज़ीहत से बचने के लिए मंगलवार को इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ के ड्यूटी डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई।
समस्या लालफीताशाही की भी है। देश के लगभग सभी बड़े सरकारी अस्पताल मेडिकल एजुकेशन मंत्रालय के तेहत आते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की सीमा बंधी है। मेडिकल इक्विपमेंट ख़रीदने से लेकर उसके वितरण तक दुविधा की स्थिति बनी रहती है। छोटे छोटे कामों के लिए कई मंत्रालयों को एक टेबल पर लाना होता है, ऐसे में निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है और इसका खामियाज़ा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
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