वाराणसी:
बनारस के गंगा घाट ऊर्जा मंत्रालय की पहल पर इन दिनों LED लाइट की दूधिया रोशनी से जगमगा रहे हैं। दशाश्वमेध घाट से शुरू की गई सफ़ेद रंग की LED लाइट्स धीरे-धीरे सभी घाटों पर लग गई हैं। ये सारी क़वायद बनारस के घाटों के हेरीटेज लुक को और बेहतर बनाने के लिए की गई है। पर बनारस के लोगों को ये रोशनी पसंद नहीं। उन्हें लगता है कि एलईडी की ये सफ़ेद रोशनी बनारस के घाटों को कॉर्पोरेट, मॉल या बिजनेस स्ट्रीट सा आभास करा रही हैं, जिसमें प्राचीनतम नगर काशी का दिव्य स्वरूप खो गया है।
बनारस के साहित्यकार, कलाकार, फोटोग्राफरों को भी ये दूधिया रोशनी रास नहीं आ रही है। इनका मानना है कि इस रोशनी ने बनारस के घाटों के सौंदर्य की सारी कशिश को ही खत्म कर दिया है, क्योंकि पत्थर के ये घाट हमेशा पीली रोशनी में जीवंत नज़र आते हैं। दूधिया रोशनी ने तो इसकी जीवन्तता ही खत्म कर दी।
कुछ लोग तो इससे एक क़दम आगे बढ़कर कहते हैं कि इस सफ़ेद रोशनी ने हमारे जीवंत घाटों की सुंदरता ही ख़त्म कर दी। लिहाज़ा, इस एलईडी लाईट का विरोध शुरू हो गया है। लोगों ने प्रधानमंत्री तक को खत लिखकर इसकी शिकायत की है।
कलाकार, डिजाइनर अंकिता खत्री बड़े भारी मन से कहती हैं "पहले जब हम लोग आते थे पीली रोशनी थी। रात का दृश्य बहुत मनोरम लगता था। पीली रोशनी से एक आध्यात्म का भाव मन में जागता था और जब वो गंगा जी में पड़ती थीं तो एक रिफ्लेक्शन आता था, वो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता था। जब से ये सफ़ेद लाईट लगी हैं, तब से घाट तो वही हैं, पर एक रंगत बहुत बुझी-बुझी सी महसूस होने लगी है।
दरअसल, सफ़ेद रोशनी और पीली रोशनी में ये घाट कैसे लगते हैं, इसका विरोध यूं ही नहीं है। इसके अंतर को बताने के लिए बनारस के इन घाटों को अपने कैमरे में क़ैद करने वालों ने इसे तस्वीरों के जरिए भी समझाने का प्रयास किया है। इस अंतर को तस्वीरों के जरिए समझा जा सकता है कि कैसे पीली रोशनी में जो घाट जीवंत नज़र आते हैं, वही घाट सफ़ेद रोशनी में सपाट नज़र आते हैं। यही वजह है कि ये फोटोग्राफर इसका विरोध कर रहे हैं। इस रोशनी के असर को समझाते हुए स्ट्रीट फोटोग्राफर मनीष खत्री बताते हैं कि "सफ़ेद लाइट हर सब्जेक्ट को फ़्लैट कर देती है। लेकिन जो पीला रंग है, उसमें एक एस्थेटिक सेन्स जुड़ता है और उसकी आभा को और बढ़ा देता है।''
लाइटों के जानकार इस बात से भी ज़्यादा चिंतित हैं कि जाड़े में कोहरे के दिनों में ये सफ़ेद लाइट बहुत घातक हो जाएंगी। सीढ़ियों पर किसी को कुछ नज़र नहीं आएगा और लोग दुर्घटना के शिकार होंगे। जबकि पीली रोशनी में ऐसा नहीं होता।
इस रोशनी को हटाने के लिए इन लोगों ने ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से शिकायत कर अपनी तस्वीरों के जरिए वजह को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्होंने खुद इस रोशनी के अंतर को अपने मोबाइल में कुछ यूं कहते हुए कि "विरोध करने वाले जो लोग हैं, उनको हर अच्छी चीज का विरोध करना 'धर्म लगता है' और इसे खारिज कर दिया। अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए मोबाइल पर दिखाते हुए बताने लगे, ''ये देखिए हरीश चंद्र घाट। एलईडी लाइट लगने के पहले और अब। कैसा दृश्य है। अब आप ही निर्णय करिए।
मंत्री जी के अपने तर्क हैं और बनारस के घाटों पर तस्वीरें खींचने और उसे संजोने वालों के अपने तर्क। बनारस के लोगों का तर्क मंत्री जी के तर्क से कहीं ज्यादा मज़बूत इसीलिए नज़र आता है कि कुदरत ने सूरज, दीया, आग सबकी रोशनी को पीला बनाया है। जो रात के अंधेरे में हर चीज को उसकी खूबसूरती के हिसाब से रोशन करती है, जिससे उसका स्वरूप और सुन्दर नज़र आता है।
अगर हर रोशनी की अपनी खूबसूरती होती है तो हर रोशनी में किसी को भी अपने रंग में रंगने की ताकत भी होती है, लेकिन जानकार कहते हैं कि पीली रोशनी बेजान चीजों में भी जान डाल देती है। ऐसी ताकत सफ़ेद रोशनी में कहां? यही वजह है कि बनारस के लोग अपने जीवंत घाटों को इस सफ़ेद रोशनी से निजात दिलाकर पीली रोशनी से रोशन करना चाहते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी हुक़्मरान बनारस के लोगों की इस भावना को समझेंगे?
बनारस के साहित्यकार, कलाकार, फोटोग्राफरों को भी ये दूधिया रोशनी रास नहीं आ रही है। इनका मानना है कि इस रोशनी ने बनारस के घाटों के सौंदर्य की सारी कशिश को ही खत्म कर दिया है, क्योंकि पत्थर के ये घाट हमेशा पीली रोशनी में जीवंत नज़र आते हैं। दूधिया रोशनी ने तो इसकी जीवन्तता ही खत्म कर दी।
कुछ लोग तो इससे एक क़दम आगे बढ़कर कहते हैं कि इस सफ़ेद रोशनी ने हमारे जीवंत घाटों की सुंदरता ही ख़त्म कर दी। लिहाज़ा, इस एलईडी लाईट का विरोध शुरू हो गया है। लोगों ने प्रधानमंत्री तक को खत लिखकर इसकी शिकायत की है।
कलाकार, डिजाइनर अंकिता खत्री बड़े भारी मन से कहती हैं "पहले जब हम लोग आते थे पीली रोशनी थी। रात का दृश्य बहुत मनोरम लगता था। पीली रोशनी से एक आध्यात्म का भाव मन में जागता था और जब वो गंगा जी में पड़ती थीं तो एक रिफ्लेक्शन आता था, वो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता था। जब से ये सफ़ेद लाईट लगी हैं, तब से घाट तो वही हैं, पर एक रंगत बहुत बुझी-बुझी सी महसूस होने लगी है।
दरअसल, सफ़ेद रोशनी और पीली रोशनी में ये घाट कैसे लगते हैं, इसका विरोध यूं ही नहीं है। इसके अंतर को बताने के लिए बनारस के इन घाटों को अपने कैमरे में क़ैद करने वालों ने इसे तस्वीरों के जरिए भी समझाने का प्रयास किया है। इस अंतर को तस्वीरों के जरिए समझा जा सकता है कि कैसे पीली रोशनी में जो घाट जीवंत नज़र आते हैं, वही घाट सफ़ेद रोशनी में सपाट नज़र आते हैं। यही वजह है कि ये फोटोग्राफर इसका विरोध कर रहे हैं। इस रोशनी के असर को समझाते हुए स्ट्रीट फोटोग्राफर मनीष खत्री बताते हैं कि "सफ़ेद लाइट हर सब्जेक्ट को फ़्लैट कर देती है। लेकिन जो पीला रंग है, उसमें एक एस्थेटिक सेन्स जुड़ता है और उसकी आभा को और बढ़ा देता है।''
लाइटों के जानकार इस बात से भी ज़्यादा चिंतित हैं कि जाड़े में कोहरे के दिनों में ये सफ़ेद लाइट बहुत घातक हो जाएंगी। सीढ़ियों पर किसी को कुछ नज़र नहीं आएगा और लोग दुर्घटना के शिकार होंगे। जबकि पीली रोशनी में ऐसा नहीं होता।
इस रोशनी को हटाने के लिए इन लोगों ने ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल से शिकायत कर अपनी तस्वीरों के जरिए वजह को समझाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्होंने खुद इस रोशनी के अंतर को अपने मोबाइल में कुछ यूं कहते हुए कि "विरोध करने वाले जो लोग हैं, उनको हर अच्छी चीज का विरोध करना 'धर्म लगता है' और इसे खारिज कर दिया। अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए मोबाइल पर दिखाते हुए बताने लगे, ''ये देखिए हरीश चंद्र घाट। एलईडी लाइट लगने के पहले और अब। कैसा दृश्य है। अब आप ही निर्णय करिए।
मंत्री जी के अपने तर्क हैं और बनारस के घाटों पर तस्वीरें खींचने और उसे संजोने वालों के अपने तर्क। बनारस के लोगों का तर्क मंत्री जी के तर्क से कहीं ज्यादा मज़बूत इसीलिए नज़र आता है कि कुदरत ने सूरज, दीया, आग सबकी रोशनी को पीला बनाया है। जो रात के अंधेरे में हर चीज को उसकी खूबसूरती के हिसाब से रोशन करती है, जिससे उसका स्वरूप और सुन्दर नज़र आता है।
अगर हर रोशनी की अपनी खूबसूरती होती है तो हर रोशनी में किसी को भी अपने रंग में रंगने की ताकत भी होती है, लेकिन जानकार कहते हैं कि पीली रोशनी बेजान चीजों में भी जान डाल देती है। ऐसी ताकत सफ़ेद रोशनी में कहां? यही वजह है कि बनारस के लोग अपने जीवंत घाटों को इस सफ़ेद रोशनी से निजात दिलाकर पीली रोशनी से रोशन करना चाहते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकारी हुक़्मरान बनारस के लोगों की इस भावना को समझेंगे?
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