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लोकसभा चुनाव में मिले शून्य से संकट में आई बसपा, छिन सकती है यह मान्यता

बसपा 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई है. इस चुनाव में उसे केवल 2.04 फीसदी वोट ही मिले हैं.इस तरह वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने के पहले दो मानकों पर खरी नहीं उतरती है.हालांकि लोकसभा चुनाव के अंतिम आंकड़े अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं.

लोकसभा चुनाव में मिले शून्य से संकट में आई बसपा, छिन सकती है यह मान्यता
नई दिल्ली:

इस साल हुए लोकसभा चुनाव अगर किसी पार्टी के लिए सबसे अधिक निराशाजनक रहे तो वह है बहुजन समाज पार्टी.पार्टी इस चुनाव में कोई भी सीट नहीं जीत पाई है.उसका वोट शेयर भी गिरकर 3.66 से 2.04 फीसदी रह गया है. इससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीनने का खतरा पैदा हो गया है.अगर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा उससे छिना तो यह देश में दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा के लिए बड़ा खतरा होगा.इस समय देश में छह राष्ट्रीय पार्टियां हैं.ये हैं बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी और माकपा.

क्या कहते हैं चुनाव आयोग के नियम

चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के मुताबिक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा उस दल को मिलता है,जिसके पास पिछले आम चुनाव में चार या अधिक राज्यों में कुल वैध वोटों का कम से कम छह फीसद वोट मिले हों या और या उसके कम से कम चार सांसद जीते हों या लोकसभा चुनाव में उसने कम से कम दो फीसदी सीटें जीती हों, ये सीटें उसने कम से कम तीन राज्यों से जीती हों या कम से कम चार राज्यों में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी हो.

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बसपा 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई है. इस चुनाव में उसे केवल 2.04 फीसदी वोट ही मिले हैं.इस तरह वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने के पहले दो मानकों पर खरी नहीं उतरती है.हालांकि लोकसभा चुनाव के अंतिम आंकड़े अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं. 

तीसरा मानक है पार्टी को चार या उससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता हो.लेकिन बसपा इस मानक को पूरा नहीं करती है.देश में 2019 के बाद से अब तक हुए चुनाव में बसपा ने केवल उत्तर प्रदेश में इस मानक को पूरा किया है.वहां उसने 2022 के विधानसभा चुनाव में 12.88 फीसदी  वोट हासिल किया. वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में उसने राज्य स्तरीय पार्टी के मानक को पूरा किया है.वहां उसने 9.39 फीसदी वोट हासिल किया है.

कैसे बचता है चुनाव चिन्ह

जहां तक चुनाव चिन्ह की बात है, एक राज्य स्तरीय पार्टी के लिए राज्य में कुल वैध वोटों का कम से कम छह फीसदी और कम से कम दो विधायक जीते हों या पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में पड़े कुल वैध वोटों का कम से कम छह फीसदी वोट मिला हो उस राज्य से कम से कम एक सांसद जीता हो या विधानसभा की कुल सीटों का कम से कम तीन फीसदी या तीन सीटें, जो भी अधिक हो या उस विशेष राज्य या विधानसभा चुनाव में पिछले लोकसभा चुनाव में कुल वैध वोटों का कम से कम आठ फीसदी हासिल किया हो. 

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18वीं लोकसभा चुनाव के आंकड़े आ जाने के बाद चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के दर्जे की समीक्षा शुरू कर सकता है. 

चुनावों में गिरता बसपा का प्रदर्शन

बसपा का लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन लगातार खराब हुआ है.बसपा ने 2009 के चुनाव में 6.17 फीसदी हासिल कर 21 सीट जीती थीं.लेकिन 2014 के चुनाव में उसके सीटों की संख्या घटकर शून्य हो गई और वोट शेयर भी गिरकर 4.19 फीसदी रह गया.इससे सबक लेते हुए बसपा ने 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया.इसका उसे फायदा हुआ, उसने 10 सीटें जीती.इस चुनाव में उसे 3.66 फीसदी वोट मिले. 

बसपा के सामने पहले भी आई है ये नौबत

यह पहली बार नहीं है जब बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने की नौबत आई है.इससे पहले 2014 के चुनाव के बाद भी उसके सामने यही स्थिति थी.उस समय भी उसका प्रदर्शन बहुत खराब था.लोकसभा में उसका कोई सदस्य नहीं था. उसे वोट भी केवल 4.19 फीसदी ही मिले थे.लेकिन चुनाव आयोग की ओर से किए गए एक संशोधन ने उसके राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे को बचा लिया.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद 2016 में चुनाव चिन्ह के नियमों में बदलाव किया गया था.इस बदलाव को 1 जनवरी 2014 से लागू किया गया. इसमें कहा गया था कि किसी भी पार्टी के दर्ज का मूल्यांकन किसी पार्टी को जिस चुनाव में राष्ट्रीया या क्षेत्रीय दल का दर्जा मिला है, उसके ठीक बाद होने वाले चुनाव में नहीं किया जाएगा. इसका मतलब यह हुआ कि दलों के दर्जे का मूल्यांकन 10 साल बाद होगा. लेकिन इसका फायदा बसपा को भी मिल गया, जिसे राष्ट्रीय दल का दर्जा 1997 में ही मिल गया था.दलों के दर्जे का अगला मूल्यांकन 2019 में किया गया. उस समय बसपा अपना दर्जा बचा पाने में कामयाब रही. उस चुनाव में उसे वो पिछले दो विधानसभा चुनाव साइकिल में वो चार या उससे अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी थी.

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