अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ही रही सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान ने कहा कि हम मध्यस्थता में भाग नहीं लेंगे. विराजमान के वकीलों ने कहा कि वे मध्यस्थता नहीं चाहते हैं. इसे लेकर अदालत को फैसला करने दें. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस पूरे मामले को लेकर सुनवाई कर रहा है. अब इस मामले में 18 अक्टूबर को बहस होगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पर टिप्पणी करने से मना कर दिया. इससे पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से शेखर नाफड़े ने जिरह शुरू की. जिरह के दौरान नाफड़े ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कई दूसरे मामलों के फैसले का भी हवाला दिया. उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज ने 1885 के फैसले को भी माना. हिन्दू पक्षकारों ने सीमित अधिकार माना था, उन्होंने अपने अधिकार बढ़ाने की कोशिश की और सीता रसोई पर दावा भी किया. जबकि हिन्दुओं का अंदरूनी आंगन में कोई अधिकार नहीं था. इस बात को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने भी माना था. जिरह के दौरान नाफड़े ने कहा कि हिंदुओं का वहां पर सीमित अधिकार था, और उस जगह पर मस्जिद मौजूद थी. अंदरूनी आंगन मस्जिद का हिस्सा था.
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बता दें कि इससे पहले रघुबरदास ने निचली अदालत में कहा था कि वह पूरे हिंदुओं की तरफ से हैं, इसलिए 1885 के फैसले पर रेस ज्यूडिकेटा (एक बार फैसला होने पर पक्षकार उस मुद्दे पर दोबारा मामला दाखिल नहीं कर सकता) लागू होता है. नाफड़े ने अपनी दलील में कहा कि रघुवरदास के महंत होने की सभी ने माना और इस दावे को किसी ने भी चुनौती नहीं दी. 1885 का फैसला भी यही कहता है. उन्होंने कहा कि सवाल यह नहीं है कि कोर्ट ने क्या कहा था. सवाल यह है कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट को क्या बताया था. निर्मोही अखाड़ा ने भी उनको महंत माना था.
नाफड़े की इस दलली पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि याचिका में रघुवरदास ने खुद को हिंदुओं का प्रतिनिधि नहीं बताया था. और न ही मठ का प्रतिनिधि बताया था. इस पर नाफड़े ने कहा कि याचिका में रघुबरदास ने खुद को पूजा स्थल का महंत बताया था जिसको कोर्ट ने भी माना था. इसका यही मतलब हुआ कि उन्होंने खुद को हिंदुओं को प्रतिनिधि माना था. उन्होंने कहा कि महंत किसका प्रतिनिधित्व करता है? कानून के हिसाब से महंत मठ का प्रतिनिधित्व करता है. यह साफ है कि मौजूदा मुकदमा और 1885 का मुकदमा, दोनों ही एक जैसे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि 1885 में इन्होंने केवल एक हिस्से पर दावा किया था और अब ये पूरे विवादित क्षेत्र पर अपने मालिकाना हक की बात कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इसे स्वीकार किया जा सकता है कि 1885 में महंत रघुवरदास का केस सभी हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहा था या नहीं? इसका जवाब हां है तो हिन्दू पक्ष दूसरा मुकदमा नहीं दाखिल कर सकता है.
VIDEO: अयोध्या मामले को लेकर सुनवाई.
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