एक ऐसे नेता जिनका भाषण सुनकर उनके अपने ही नहीं बल्कि विरोधी भी कायल हो जाएं. हम बात कर रहे हैं, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की. जिन्होंने राजनीति की दुनिया में ना सिर्फ अलग मुकाम हासिल किया बल्कि अपनी कविताओं से भी लोगों के दिलों में खास जगह बनाई. अटल एक कुशल राजनेता तो थे ही साथ ही वो एक कमाल के कवि, लेखक भी थे. अटल जी की कई कविताएं आज भी बहुत प्रासंगिक है, जिसे कई मौके पर अब भी लोग सुनते हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी से जुड़ी खास बातें
भारत के पूर्व पीएम और दिग्गज बीजेपी नेता अटल बिहारी की आज (16 अगस्त) पुण्यतिथि है. इस मौके पर देश के दिग्गज नेता और लोग उन्हें याद कर रहे हैं. अटल बिहारी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. वाजपेयी, पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था. वाजपेयी 3 बार भारत के प्रधानमंत्री रहे. 1996 में पहली बार वो महज 13 दिनों के लिए पीएम पद पर रहे, दूसरी बार 1998 में प्रधानमंत्री बनें मगर वो सरकार भी 13 महीनें ही चली. तीसरी बार उन्होंने 1999 से 2004 तक पीएम का पद संभाला. उनका 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था.
मेरा हिन्दुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे नहीं बंद कर सकता
अटल बिहारी वाजपेयी जब 10वीं की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्होंने एक कविता लिखी थी. उन्होंने इसके बारे में बात करते हुए खुद कहा था कि 'लोग कहते हैं वो कविता लिखने वाला वाजपेयी अलग था और राज काज करने वाला पीएम अलग है. इस बात में कोई सच्चाई नहीं है, मैं हिन्दू हूं ये मै कैसे भूलूं, किसी को भूलना भी नहीं चाहिए, मेरा हिन्दुत्व सीमित नहीं है संकुचित नहीं है. मेरा हिन्दुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे नहीं बंद कर सकता. मेरा हिन्दुत्व अंतर प्रांतीय, अंतर जातीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता. हिन्दुत्व वास्तव में बेहद विशाल है, मेरा हिन्दुत्व क्या है...?'
"भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर.
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर.
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय.
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!"
राजनीति में हर तरह के प्रयोग के लिए तैयार
देश के पूर्व पीएम राजनीति में हर तरह के प्रयोग के लिए तैयार थे. उन्होंने भारतीय राजनीति में राष्ट्रवाद को खास तवज्जों दी. और बीजेपी को देश में लोकतांत्रिक विकल्प बताया. उन्होंने ने एक लेख भी लिखा था जिसमें उन्होंने हिंदुत्व की जगह भारतीयता पर जोर दिया. उस वक़्त भी संघ में भी वाजपेयी के चेहरे की अपनी अलग अहमियत थी. अटल बिहारी वाजपेयी की विचारधारा भले ही अलग ही लेकिन इसके बावजूद उनके चाहने वाले हर पार्टी में थे. जिससे पता चलता है कि उन छवि कितनी बड़ी थी.
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