गुवाहाटी:
गौहाटी उच्च न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल जेपी राजखोवा की कड़ी आलोचना की है। अदालत ने कहा कि उन्हें अपने कर्तव्य का निर्वहन मंत्रिपरिषद की सहायता से करना है, लेकिन विपक्षी विधायकों की मांग पर विधानसभा का सत्र निर्धारित समय से पहले बुलाने की उनकी कार्रवाई फैसले को 'दागदार' बनाती है और 'राज्य के संवैधानिक प्रमुख की तरफ से अनुचित' बनाती है।
संवैधानिक प्रमुख का रवैया पक्षपातपूर्ण
जस्टिस हृषिकेश रॉय गुरुवार को हटाए गए विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का फैसला 'संवैधानिक प्रमुख की पक्षपातपूर्ण भूमिका को दर्शाता है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है।' रेबिया ने अपनी याचिका में विधानसभा सत्र को पहले बुलाने के राज्यपाल की अधिसूचना को चुनौती दी थी।
मंत्रिपरिषद की मदद से राज्यपाल करें कर्तव्यों का निर्वहन
जस्टिस रॉय ने अपने आदेश में कहा, 'राज्यपाल को राज्य विधायिका की बैठक बुलाने से पहले अपने कर्तव्यों का निर्वहन मंत्रिपरिषद की सहायता से करना है और अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के तहत विधानसभा अध्यक्ष के साथ सलाह-मशविरा के जरिए मुख्यमंत्री को विधानसभा की बैठक बुलाने में राज्यपाल को सलाह देने के लिए सक्षम बनाया गया है।' उन्होंने कहा, 'इस काम को करने में राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख के तौर पर कार्य करता है और इसलिए मुख्यमंत्री की सलाह के बिना और प्राथमिक तौर पर विपक्षी विधायकों की मांग पर विधानसभा का सत्र पहले बुलाने का राज्यपाल का आदेश दागदार हो जाता है और यह राज्य के संवैधानिक प्रमुख के लिए अनुचित बना देता है।'
गौरतलब है कि जस्टिस रॉय ने यह आदेश राज्यपाल की अधिसूचना पर रोक लगाने और विधानसभा की बैठक बुलाने में उप विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई पर रोक लगाने के दौरान दिया। विधानसभा की उस कार्यवाही में विधानसभा अध्यक्ष को 'हटा' दिया गया था, मुख्यमंत्री को हटाकर नया मुख्यमंत्री 'निर्वाचित' किया गया था।
संवैधानिक प्रमुख का रवैया पक्षपातपूर्ण
जस्टिस हृषिकेश रॉय गुरुवार को हटाए गए विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का फैसला 'संवैधानिक प्रमुख की पक्षपातपूर्ण भूमिका को दर्शाता है और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है।' रेबिया ने अपनी याचिका में विधानसभा सत्र को पहले बुलाने के राज्यपाल की अधिसूचना को चुनौती दी थी।
मंत्रिपरिषद की मदद से राज्यपाल करें कर्तव्यों का निर्वहन
जस्टिस रॉय ने अपने आदेश में कहा, 'राज्यपाल को राज्य विधायिका की बैठक बुलाने से पहले अपने कर्तव्यों का निर्वहन मंत्रिपरिषद की सहायता से करना है और अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के तहत विधानसभा अध्यक्ष के साथ सलाह-मशविरा के जरिए मुख्यमंत्री को विधानसभा की बैठक बुलाने में राज्यपाल को सलाह देने के लिए सक्षम बनाया गया है।' उन्होंने कहा, 'इस काम को करने में राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख के तौर पर कार्य करता है और इसलिए मुख्यमंत्री की सलाह के बिना और प्राथमिक तौर पर विपक्षी विधायकों की मांग पर विधानसभा का सत्र पहले बुलाने का राज्यपाल का आदेश दागदार हो जाता है और यह राज्य के संवैधानिक प्रमुख के लिए अनुचित बना देता है।'
गौरतलब है कि जस्टिस रॉय ने यह आदेश राज्यपाल की अधिसूचना पर रोक लगाने और विधानसभा की बैठक बुलाने में उप विधानसभा अध्यक्ष की कार्रवाई पर रोक लगाने के दौरान दिया। विधानसभा की उस कार्यवाही में विधानसभा अध्यक्ष को 'हटा' दिया गया था, मुख्यमंत्री को हटाकर नया मुख्यमंत्री 'निर्वाचित' किया गया था।
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