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चित्रकूट में आर्मी चीफ ने ली दीक्षा, रामभद्राचार्य ने दक्षिणा में मांग लिया PoK

चीफ ऑफ आर्मी जनरल उपेंद्र द्विवेदी उनके पास गए थे. उन्होंने रामभद्राचार्य से दीक्षा ली थी. वही दीक्षा मां सीता ने हनुमान जी को भी दी थी. सीता जी से दीक्षा मिलने के बाद ही हनुमान जी ने लंका पर विजय हासिल की थी.

चित्रकूट में आर्मी चीफ ने ली दीक्षा, रामभद्राचार्य ने दक्षिणा में मांग लिया PoK
नई दिल्ली:

थल सेना के प्रमुख सीडीएस उपेंद्र द्विवेदी ने हाल ही में चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य का आशीर्वाद लिया. इस दौरान उन्होंने आध्यात्मिक चर्चा की. इसके बाद रामभद्राचार्य ने कहा कि उन्होंने आर्मी सेना के चीफ उपेंद्र द्विवेदी को राम मंत्र की दीक्षा दी है और दक्षिणा में पीओके की मांग की है. उन्होंने बताया कि राम मंत्र वही मंत्र है जिससे हनुमान जी ने रावण की लंका पर विजय हासिल किया था. 

चीफ ऑफ आर्मी जनरल उपेंद्र द्विवेदी उनके पास गए थे. उन्होंने रामभद्राचार्य से दीक्षा ली थी. वही दीक्षा मां सीता ने हनुमान जी को भी दी थी. सीता जी से दीक्षा मिलने के बाद ही हनुमान जी ने लंका पर विजय हासिल की थी. इसके साथ उन्होंने दक्षिणा में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की मांग की है. उन्होंने कहा कि तुम शस्त्र से लड़ो और मैं शास्त्र से अपनी जंग लड़ूंगा. हालांकि, क्या आप जानते हैं कि दीक्षा का क्या प्रोसेस होता है और क्या सेना प्रमुख इस तरह से दीक्षा ले सकते हैं? 

क्या होता है दीक्षा का प्रोसेस

दीक्षा, जिसे कुछ संदर्भों में "अनुष्ठान" भी कहा जाता है, एक प्रक्रिया है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक या सांसारिक पथ पर आगे बढ़ने के लिए तैयार करती है. यह गुरु-शिष्य संबंध स्थापित करने या किसी विशेष धर्म या आध्यात्मिक अभ्यास शुरू करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

कौन सा मंत्र बताया जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने

 जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने जनरल उपेंद्र द्विवेदी को राम मंत्र की दीक्षा दी है. उन्होंने उसी राम मंत्र की दीक्षा दी है, जो सीता माता ने हनुमान जी को दी थी. हनुमान जी ने राम मंत्र की दीक्षा की प्राप्ति के बाद ही लंका पर विजय प्राप्त की थी. 

कौन हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में हुआ था. वह एक प्रसिद्ध हिंदू आध्यात्मिक नेता, शिक्षाविद्, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, दार्शनिक, संगीतकार, नाटककार और कथावाचक हैं. वह भले ही नेत्रहीन हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें 22 भाषाओं का ज्ञान हैं और अबतक वह 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं. उन्होंने चित्रकूट धाम में "जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय" की स्थापना की और उनकी कई साहित्यिक और संगीत रचनाएं हैं. 

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