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This Article is From Apr 01, 2017

मुलायम की छोटी बहू अपर्णा की योगी आदित्‍यनाथ से मुलाकात, अखिलेश यादव के लिए चुनौती!

मुलायम की छोटी बहू अपर्णा की योगी आदित्‍यनाथ से मुलाकात, अखिलेश यादव के लिए चुनौती!
यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ शुक्रवार को अपर्णा- प्रतीक यादव की गोशाला में पहुंचे.
महज एक सप्‍ताह के भीतर ही सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव की यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के साथ दो मुलाकातों के बाद सूबे की सियासत में नई चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. मुलायम के छोटे बेटे प्रतीक और बहू अपर्णा यादव की मुख्‍यमंत्री से इन मुलाकातों से यह तो स्‍पष्‍ट संकेत मिल रहा है कि उनकी योगी आदित्‍यनाथ से नजदीकी है. लेकिन राजनीतिक विश्‍लेषक इसके सियासी मायने भी खोज रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि भले ही सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव चुनाव हार गए हैं लेकिन पार्टी में पूरी तरह से उनकी पकड़ मजबूत हो चुकी है.

उसको इस तरह से समझा जा सकता है कि चुनाव बाद उन्‍होंने अपने करीबी राम गोविंद चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया है. यह इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इस चुनाव में आजम खान और शिवपाल यादव की अनदेखी की गई है. संभवतया इन्‍हीं वजहों से शिवपाल उसके बाद की सपा विधायकों की बैठक में हिस्‍सा लेने भी नहीं पहुंचे. इसको उनकी नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है. अपर्णा और प्रतीक, शिवपाल खेमे के करीबी ही माने जाते रहे हैं.

सपा की सियासत में शिवपाल के हाशिए पर जाने और लखनऊ कैंट से अपर्णा यादव के चुनाव हारने के बाद इनकी स्थिति पार्टी में कमजोर हुई है. लिहाजा सपा में भविष्‍य की राजनीति में अखिलेश युग के बीच अपर्णा और प्रतीक की सियासी राह मुश्किल दिखती है. इसलिए इनमें असुरक्षा की भावना का पैदा होना बहुत स्‍वाभाविक है. लिहाजा छोटी बहू के इस कदम को दबाव की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. यानी सपा में अपने लिए ठोस जमीन की चाह और ऐसा नहीं होने पर कुनबे से बाहर की सियासी राह.

इसकी पृष्‍ठभूमि में चुनाव के अंतिम चरण से पहले प्रतीक यादव की मां के चर्चित इंटरव्‍यू को भी देखा जा सकता है. उसमें भी उन्‍होंने संकेत दिए थे कि वह यह चाहती हैं कि उनके बेटे-बहू को राजनीति में स्‍पेस मिले. अब अपर्णा और प्रतीक के इस कदम को उसी 'स्‍पेस' या सियासी जमीन की तलाश के रूप में देखा जा रहा है क्‍योंकि अपर्णा ने बीजेपी में जाने की संभावनओं को पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया है.  

अखिलेश यादव की मुश्किल
इन परिस्थितियों में हार की मायूसी के बीच अब अखिलेश यादव के समक्ष अपनी पार्टी को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है. चुनाव से पूर्व पिता की इच्‍छा के खिलाफ जाकर कांग्रेस से गठबंधन, सपा की शिकस्‍त और अब अपर्णा की इन मुलाकातों से पार्टी में बगावती तेवर सतह पर खुलकर आ सकते हैं. अखिलेश को इन सभी मोर्चों पर निपटना होगा. यानी हार से मायूस कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उन्‍हें फिर से लड़ने के लिए तैयार करने के साथ-साथ घरेलू मोर्चे से लेकर सियासी मोर्चे पर उनको लड़ना होगा.

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