'भारत में सदियों पहले भी विमान मिथक नहीं थे, वैदिक युग में भारत में विमान ना सिर्फ एक से दूसरे देश, बल्कि एक दूसरे ग्रह से दूसरे ग्रह तक उड़ सकते थे, यही नहीं इन विमानों में रिवर्स गियर भी था, यानी वे उल्टा भी उड़ सकते।'
102वें साइंस कांग्रेस के दौरान वैदिक विमानन तकनीक पर अपने पर्चे में कैप्टन आनंद जे बोडास ने ये बातें कहीं। तीन से सात जनवरी तक मुंबई में आयोजित हो रही इंडियन साइंस कांग्रेस में देश और दुनिया से 12,000 प्रतिनिधियों के अलावा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक और कई बुद्धिजीवी हिस्सा ले रहे हैं।
केरल में एक पायलट ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए कैप्टन बोडास ने अपने पर्चे में कहा, 'एक औपचारिक इतिहास है, एक अनौपचारिक। औपचारिक इतिहास ने सिर्फ इतना दर्ज किया कि राइट बंधुओं ने 1903 में पहला विमान उड़ाया। उन्होंने भारद्वाज ऋषि के वैमानिकी तकनीक को अपने पर्चे का आधार बताया।
वैसे बोडास के इस पर्चे पर विरोध भी शुरू हो गया है। नासा के वैज्ञानिक डॉ. राम प्रसाद गांधीरमन ने इंडियन साइंस कांग्रेस में 'प्राचीन भारतीय वैमानिकी प्रौद्योगिकी' पर होने वाले लेक्चर को रोकने के लिए एक ऑनलाइन पिटिशन शुरू किया, जिसे 200 से ज्यादा वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का साथ मिल चुका है। वहां केंद्र सरकार इस विषय को जायज ठहरा रही है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि प्राचीन भारत का विज्ञान तर्कसंगत है, इसलिए इसे सम्मान से देखा जाना चाहिए। वहीं पिटिशन के जवाब ने बोडास का कहना था, 'मैंने ऑनलाइन पिटिशन को देखा नहीं है ना ही इसके बारे में सुना है, अगर ये मुझे मिलेगा तो मैं अपनी प्रतिक्रिया दूंगा।'
साइंस कांग्रेस के 102 सालों में पहली बार संस्कृत साहित्य से वैदिक विज्ञान के ऊपर परिचर्चा का आयोजन हुआ है। आयोजकों के मुताबिक यह विषय रखने का मकसद था कि संस्कृत साहित्य के नजरिए से भारतीय विज्ञान को देखा जा सके। इस परिचर्चा में वैदिक शल्य चिकित्सा का भी ज़िक्र हुआ।
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