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शिवन्ना पहुंचे मैसूर रोड, जहां बसें जलाई जा रही थीं
उन्होंने वहां गोदाम में छिपे तमिल ड्राइवरों की मदद का निश्चय किया
उन्होंने वहां से ड्राइवरों को निकालकर तमिलनाडु के बॉर्डर तक पहुंचाया
1968 से लॉरी बिजनेस को संभाल रहे शिवन्ना हिंसा भड़कने के बाद तत्काल मैसूर रोड पर पहुंचे, जहां तमिलनाडु रजिस्ट्रेशन वाली बसों में आग लगाई जा रही थी. डिपो में उन्होंने देखा कि वहां 40 से भी अधिक बसों को आग के हवाले कर दिया गया है. चारों ओर आग की लपटें और धुएं का गुबार दिखाई दे रहा था. तमिलनाडु के कुछ ड्राइवर भय के मारे गोदाम में छिपे थे. इन ड्राइवरों को यहां से निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे लोगों को वहां से निकालने में शिवन्ना ने मदद की.
इस संबंध में शिवन्ना ने NDTV को बताया, ''मैं रामनागरम में था. जब मैं बेंगलुरु लौटा और विरोध-प्रदर्शनों के बारे में पता चला तो मैं अपनी गाडि़यों का हाल जानने गया. उनमें से दो को नुकसान पहुंचा था. मुझे वहां मालूम हुआ कि केपीएस बसों में आग लगाई जा रही है तो मैं अपनी कार से वहां पहुंचा. 42 बसें आग के हवाले कर दी गई थीं. मैंने उनके ड्राइवरों के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि उनमें से 15 को पुलिस स्टेशन ले जाया गया है और बाकी भयभीत दशा में वहीं एक गोदाम में छिपे थे.''
उसके बाद उनकी मदद के लिए अपनी लॉरी के कंटेनर कंपार्टमेंट में लेकर वह उनको तमिलनाडु के बॉर्डर तक पहुंचे. शिवन्ना ने कहा, ''मैं अपने साथ 31 ड्राइवरों को लेकर गया, वहां उनको घर की बस में बैठाने के बाद वापस बेंगलुरु लौटा.''
उस दिन जो लोग विरोध-प्रदर्शनों में शामिल नहीं थे, वे सड़कों से दूर अपने घरों में थे. ऐसे में शिवन्ना ने क्यों इन ड्राइवरों की मदद के लिए इतनी लंबी दूरी तय की? शिवन्ना ने मुस्कुराते हुए कहा, ''मेरी अधिकांश सर्विस तमिलनाडु में है. मेरे मन में विचार आया कि मैंने उनका नमक खाया है, सो मैं उनकी मदद करना चाहता था. इसके अलावा तमिलनाडु के 30 ड्राइवर भी मेरे यहां काम करते हैं. मैं जिन लोगों को लेकर बॉर्डर गया था, उन लोगों ने घर पहुंचने के बाद मुझे फोन किया और दुआएं दीं.''
इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा, ''जब हमने इंसानों के रूप में जन्म लिया है तो हम लोगों को इस तरह की चीजें करने की ही जरूरत है. लोग चाहे जहां के हों लेकिन जब वे कर्नाटक आएं हैं तो हमें उनको अपना समझना चाहिए और मदद करनी चाहिए.''
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को यह निर्देश दिया था कि वह कावेरी नदी का पड़ोसी तमिलनाडु को और अधिक पानी दे. इसके विरोध में ही कर्नाटक में हिंसा भड़क उठी और विरोध-प्रदर्शनों के बीच दो लोग मारे गए. अनेक बसों में आग लगा दी गई और दुकानों और इमारतों में तोड़-फोड़ की गई.
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