कठिन चुनौतियों से निपटने की युवा पीढ़ी की क्षमता से विस्मित हूं: प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम हर दिन नए और अनूठे व्यवसायों को उभरते हुए देखते हैं, लोग अपनी खुद की पेशेवर यात्रा तय करते हैं जो पारंपरिक मानदंडों का अनुपालन नहीं करता है. स्नातक होने का यह एक रोमांचक समय है. लेकिन मैं जानता हूं कि ये परिस्थितियां कुछ अनिश्चितताओं और भ्रम को भी जन्म देती हैं.’’

कठिन चुनौतियों से निपटने की युवा पीढ़ी की क्षमता से विस्मित हूं: प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़

वडोदरा:

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि वह मौके के अनुरूप युवा पीढ़ी की आगे बढ़ने और वर्तमान समय की कठिन चुनौतियों से निपटने की क्षमता से विस्मित हैं. उन्होंने युवाओं को असफलताओं से सीखने की भी सलाह दी. प्रधान न्यायाधीश ने युवाओं से अयथार्थवादी उम्मीदों से प्रभावित न होने की अपील की और इस बात पर जोर दिया कि जीवन एक ‘‘मैराथन है न कि 100 मीटर की दौड़.''

‘महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा' के 72वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में स्नातक छात्रों को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इस वर्ष विश्वविद्यालय ने 346 स्वर्ण पदकों में से 336 महिलाओं को प्रदान किए, जो ‘‘वास्तव में हमारे राष्ट्र में बदलते समय का संकेत है.''

मौजूदा दौर को ‘‘हमारे इतिहास का अनोखा समय'' बताते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रौद्योगिकी की वजह से लोग पहले से कहीं अधिक जुड़े हुए हैं, लेकिन इससे उनके सामने भय और चिंताएं भी पैदा हुई हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम हर दिन नए और अनूठे व्यवसायों को उभरते हुए देखते हैं, लोग अपनी खुद की पेशेवर यात्रा तय करते हैं जो पारंपरिक मानदंडों का अनुपालन नहीं करता है. स्नातक होने का यह एक रोमांचक समय है. लेकिन मैं जानता हूं कि ये परिस्थितियां कुछ अनिश्चितताओं और भ्रम को भी जन्म देती हैं.''

उन्होंने छात्रों से कहा, ‘‘आप भाग्यशाली हैं कि ऐसे समय में जी रहे हैं जब आप पहले से कहीं अधिक विचारों के संपर्क में हैं. आप एक अनोखी पीढ़ी हैं जो पहले की पीढ़ियों की तुलना में हमारे समय की चुनौतियों के बारे में ज्यादा जागरूक हैं.''

उन्होंने कहा कि वह ‘‘मौके के हिसाब से युवा पीढ़ी की आगे बढ़ने और हमारे समय की भारी चुनौतियों का सामना करने'' की क्षमता से अचंभित हैं और उनसे आग्रह किया कि वे आगे बढें, अयथार्थवादी उम्मीदों से प्रभावित न हों और अपनी नाकामी से सीखें.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमारी औपचारिक शिक्षा यह नहीं बताती है कि विफलता हमारे विकास के लिए कितनी महत्वपूर्ण है. हमारी शिक्षा प्रणाली हमारे लिए असफलता से घृणा करने और उसका भय पैदा करने के लिए बनाई गई है. हालांकि, जीवन का मतलब असफलताओं से मुक्त होना नहीं है.''

उन्होंने कहा कि जीवन में असफलताएं आत्मनिरीक्षण करने और एक बेहतर इंसान के रूप में उभरने के लिए बनाई गई हैं.

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘विद्वान व्यक्ति वह है जो अपने वर्ग के प्रति जागरूक है और केवल अपने वर्ग के सर्वोत्तम हित में निर्णय लेता है, लेकिन बुद्धिजीवी एक मुक्त प्राणी है जो वर्ग विचार से प्रभावित हुए बिना कार्य करने के लिए स्वतंत्र होता है.''

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘आप केवल विद्वान व्यक्ति बने रहने का विकल्प चुन सकते हैं. लेकिन अपने साथियों के प्रति आपकी सहानुभूति, दुनिया को पहले से कहीं बेहतर बनाने का आपका उत्साह और अपनी शिक्षा का इस्तेमाल, इन भावनाओं को व्यक्त करने की आपकी क्षमताएं आपको निश्चित रूप से एक बुद्धिजीवी बनाएंगी.''

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूर्ववर्ती बड़ौदा राज्य के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय के शासन के बारे में कहा कि उन्हें शिक्षा और जन कल्याण में योगदान देने के लिए जाना जाता है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि गायकवाड़ के शासनकाल के दौरान डॉ. आंबेडकर को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए छात्रवृत्ति दी गई थी. उन्होंने कहा कि इससे आंबेडकर को उच्च अध्ययन के लिए अमेरिका जाने में मदद मिली, जिससे उन्हें स्वतंत्रता और मुक्ति के समतावादी विचार का पता चला.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)