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Breaking News: केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्‍पन को इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली बेल, 2 साल बाद जेल से आएंगे बाहर

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्‍पन को इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली बेल, 2 साल बाद जेल से आएंगे बाहर

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्‍पन को मनी लॉन्ड्रिंग और UAPA मामले में जमानत मिल गई है. करीब दो साल बाद वह जेल से बाहर आ रहे हैं. 'अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता' की दुहाई देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में कप्‍पन की जमानत मंजूर कर दी थी. लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग केस में जमानत नहीं मिलने के कारण उन्हें जेल में ही रहना पड़ा था. उत्‍तर प्रदेश पुलिस ने कप्‍पन को हाथरस में दलित युवती से रेप की करवेज के लिए जाते वक्‍त गिरफ्तार किया था. उनपर अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्‍ट (UAPA) की धाराएं लगाई गईं. यूपी पुलिस का आरोप था कि कप्‍पन घटना के बहाने हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के सामने पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं रखा जो 'भड़काऊ' हो. 

कप्पन को सितंबर में सुप्रीम कोर्ट से गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) और अन्य संबंधित कानूनों के तहत दायर आतंकवादी मामले में जमानत मिल गई थी, लेकिन प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से भी कप्पन पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दायर किया गया था. इसलिए कप्पन को लखनऊ जेल में ही रहना पड़ा.

इस महीने की शुरुआत में लखनऊ की एक अदालत ने कप्पन और छह अन्य के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत आरोप तय किए थे, जिसका मतलब था कि मुकदमा शुरू हो सकता है. इस केस में अन्य आरोपी केए रऊफ शेरिफ, अतीकुर रहमान, मसूद अहमद, मोहम्मद आलम, अब्दुल रज्जाक और अशरफ खादिर हैं.

पुलिस ने दावा किया है कि ये लोग तब से प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और इसकी छात्र शाखा, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के सदस्य हैं. पुलिस के मुताबिक, इन लोगों ने आतंकी गतिविधियों या टेरर फंडिंग में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है. उन लोगों ने तर्क दिया है कि वे केवल पत्रकारिता के काम के लिए हाथरस की यात्रा कर रहे थे. कप्पन और तीन सह-अभियुक्तों - अतीकुर रहमान, मोहम्मद आलम और मसूद अहमद को यूपी पुलिस ने मथुरा में गिरफ्तार किया था.

कप्‍पन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में क्‍या केस बना?
यूपी पुलिस को कप्‍पन की कार में कुछ 'पैम्‍फलेट्स' मिले थे. इनके आधार पर कप्‍पन के खिलाफ इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा सेक्‍शन 124ए (राजद्रोह), 153ए (नफरत फैलाने) और 295A (जानबूझकर भड़काने) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. कप्‍पन पर UAPA और इन्‍फॉर्मेशन टेक्‍नोलॉजी एक्‍ट की धाराएं भी लगाई गईं.

सुप्रीम कोर्ट के सामने, यूपी सरकार की ओर से वरिष्‍ठ एडवोकेट महेश जेठमलानी पेश हुए. उन्‍होंने दस्‍तावेज पढ़ते हुए बताया कि इसमें बकायदा निर्देश लिए हैं कि दंगों के दौरान खुद को कैसे बचाना है, पुलिस की टियर गैस शेलिंग से कैसे बचना है....' यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि कप्‍पन को 45,000 रुपये भी दिए गए थे और वह दो आई-कार्ड इस्‍तेमाल कर रहे थे.

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