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This Article is From Mar 21, 2025

रेप की कोशिश और तैयारी में फर्क... इलाहाबाद HC की टिप्पणी की क्यों हो रही है आलोचना?

कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इसे गलत फैसला भी बताया है. साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर ध्यान देने का आग्रह किया है. उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा.

नई दिल्ली:

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस राम मनोहर मिश्रा ने यौन अपराध के एक मामले की सुनवाई करते हुए हाल ही में कहा था कि एक लड़की का निजी अंग पकड़ना और उसकी पायजामा का नाड़ा तोड़ना, आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) का मामला नहीं है, बल्कि ऐसा अपराध धारा 354 (बी) (किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. अब इस मामले पर देश भर में बहस जारी है. लोग जज की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर रहे हैं. 

एनडीटीवी के साथ बात करते हुए झारखंड की पूर्व डीजीपी निर्मल कौर ने कहा कि देश में हर दिन हजारों घटनाएं होती हैं.  कभी-कभी ये घटनाएं प्रकाश में आती हैं. अदालत का इस तरह का रवैया गलत है. रेप के मामले में संवेदनहीनता हमारे समाज में देखने को मिलती रही है. कानून बदल गए हैं लेकिन मानसिकता नहीं बदली है.  अदालत की तरफ से इस तरह की टिप्पणी तो पुलिस को भी पीछे छोड़ती है जो इस तरह के मामलों में बदनाम रही है.  

सुप्रीम कोर्ट के वकील सीमा समृद्धि कुशवाहा ने कहा कि यह रेप की कोशिश का नहीं बल्कि रेप का केस है. यह कानून की गलत व्याख्या है. अगर हाईकोर्ट में इस तरह की बातें हो रही है तो ट्रायल कोर्ट में किस तरह के हालत होंगे और इसके क्या प्रभाव पड़ेंगे. जमीन पर बड़े बदलाव की जरूरत है.  भारत में न्यायिक सुधार की बेहद जरूरत है. 

अभिनेत्री कनिशा मल्होत्रा ने कहा कि इस तरह की घटनाओं के बाद तो समाज में गंदगी और अधिक फैलेगी. ये बेहद गलत है. हम आने वाले जेनरेशन को क्या सीखा रहे हैं. बचपन से बच्चों को अच्छी बातें सीख देने की जरूरत है. सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी अच्छी सीख देने की जरूरत है. 

क्या था पूरा मामला? 
इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) की अदालत में एक आवेदन दाखिल करके आरोप लगाया गया था कि 10 नवंबर, 2021 को शाम करीब पांच बजे शिकायतकर्ता महिला अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ ननद के घर से लौट रही थी. दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था महिला के गांव के ही रहने वाले पवन, आकाश और अशोक रास्ते में उसे मिले और पूछा कि वह कहां से आ रही हैं. इसके अनुसार जब महिला ने बताया कि वह अपनी ननद के घर से लौट रही है, तो उन्होंने उसकी बेटी को मोटरसाइकिल से घर छोड़ने की बात कही. महिला ने बेटी को उनके साथ जाने दिया. 

दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने रास्ते में ही मोटरसाइकिल रोक दी और लड़की का निजी अंग पकड़ लिया और आकाश लड़की को खींचकर पुलिया के नीचे ले गया, जहां उसने लड़की की पायजामी का नाड़ा तोड़ दिया. इसके अनुसार लड़की चीखने लगी और चीख सुनकर दो व्यक्ति वहां पहुंचे, जिसके बाद आरोपियों ने उन्हें तमंचा दिखाकर जान से मारने की धमकी दी और मौके से भाग गए. पीड़ित लड़की और गवाहों का बयान दर्ज करके निचली अदालत ने दुष्कर्म के अपराध के लिए आरोपियों को समन जारी किया.

तथ्यों को देखने के बाद अदालत ने कहा, “मौजूदा मामले में आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि इन्होंने लड़की का निजी अंग पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप की वजह से वे लड़की को छोड़कर मौके से फरार हो गए.” अदालत ने 17 मार्च को दिए अपने निर्णय में कहा, “आरोपी व्यक्तियों का लड़की के साथ दुष्कर्म करने का दृढ निश्चय था, यह संदर्भ निकालने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं है. आकाश के खिलाफ आरोप केवल यह है कि उसने लड़की को पुलिया के नीचे ले जाने का प्रयास किया और उसकी पायजामी का नाड़ा तोड़ा.”

सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि पॉक्सो एक्ट को आए 10 साल से अधिक हो गए हैं लेकिन उसे सही से लागू नहीं किया गया है. हम इन सब मुद्दों पर समाज को संवेदनशील बनाने की बात करते हैं लेकिन जजों को कैसे संवेदनशील बनाएंगे. ऐसे हालत में हमें यह समझ नहीं आता है कि हम अपनी लड़ाई को कहां से शुरू करें और कहां खत्म करें. अगर बिना पढ़ें लिखे लोग कुछ गलत करते हैं तो लोग इसे समझ सकते हैं लेकिन जज की टिप्पणी पर क्या कह सकते हैं. 

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