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तीन बेटे, जिन्होंने पिता के साये से निकलकर बनाई अपनी पहचान, अब बने गेमचेंजर

अखिलेश, तेजस्वी और चिराग (Chirag Paswan) को पिता से शानदार लॉन्च जरूर मिला, लेकिन जनता के दिल में जगह बनाने के लिए इनको जी तोड़ मेहनत करनी पड़ी. तब आज इनको जनता ने आशीर्वाद दिया है.

तीन बेटे, जिन्होंने पिता के साये से निकलकर बनाई अपनी पहचान, अब बने गेमचेंजर
अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान की कहानी.
नई दिल्ली:

अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और चिराग पासवान... ये वो बेटे हैं, जिनको अपने दिग्गज राजनेता पिता से लॉन्च पैड तो मिला, लेकिन अपना काम दिखाने के लिए खुद मैदान में उतरना पड़ा. मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और राम विलास पासवान, ये वो नेता हैं जो आपातकाल विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जनता पार्टी के छत्रछाया में एक साथ जरूर आए, लेकिन अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाने के लिए अलग हो गए. इन दिग्गजों के बेटों को लॉन्च पैड मिला, लेकिन उनका काम नहीं दिखा. इन तीनों नेताओं के तीन बेटों अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और चिराग पासवान (Akhilesh  Yadav, Tejashwi Yadav, Chirag Paswan) का अपने पिता के साये से बाहर निकलकर कुछ कर दिखाना लोकसभा चुनाव 2024 की बड़ी कहानियों में से एक है.

लोकसभा चुनाव के नतीजे एग्जिट पोल से एकदम उलट निकले, जिसके बाद विशेषज्ञों को भी शर्मिंदा होना पड़ा. देश के सबसे बड़े राजनीति के केंद्र उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. यहां पर बीजेपी की सीटें 62 (2019) से घटकर 33 रह गईं. वहीं विपक्षी गुट इंडिया गठबंधन के शानदार प्रदर्शन के पीछे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को माना जा रहा है. 

फिर चमक उठे अखिलेश यादव 

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव साल 2017 का विधानसभा चुनाव हार गए थे, जिसके बाद उनको अपने चाचा शिवपाल की बगावत झेलनी पड़ी थी. शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से नाता तोड़ा तो अखिलेश यादव की राजनीतिक कुशलता पर भी खूब सवाल उठे.उन्होंने उस संकट से उबरने के लिए चाचा को मनाया और 2022 विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में वापस लेकर आए. उसी साल अक्टूबर में, अखिलेश के पिता और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया. मंडल युग की राजनीति पर उनका अच्छा दबदबा था. इस साल के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने जी तोड़ मेहनत की और अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.

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उत्तर प्रदेश में 37 सीटों पर जीत हासिल कर  समाजवादी पार्टी लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.  इंडिया गुट इसका दूसरा सबसे बड़ा साझेदार है. अखिलेश यादव अब सिर्फ एक क्षेत्रीय नेता नहीं रहे, वह ऐसे नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने बीजेपी को उसके प्रमुख गढ़ में हरा दिया और जीत हासिल की.

तेजस्वी यादव ने की जी तोड़ मेहनत, मिला फल

इंडिया गठबंधन के नेता तेजस्वी यादव का प्रदर्शन भी शानदार रहा है. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी को नीतीश कुमार के कई उलटफेरों के बाद अपना पद खोना पड़ा.  उन्होंने बिहार में इंडिया गठबंधन का आगे बढ़कर नेतृत्व किया. उनके पिता और आरजेडी के दिग्गज नेता लालू यादव भ्रष्टाचार के एक मामले में जमानत पर बाहर हैं. बीमार होने की वजह से लालू चुनाव में एक्टिव नहीं हो सके, ऐसे में रीढ़ की हड्डी में चोट होने के बाद भी तेजस्वी ने व्हीलचेयर पर बैठकर इंडिया गठबंधन का नेतृत्व किया.

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इस चुनाव में आरजेडी ने 4, कांग्रेस ने 3 और सीपीआईएमएल ने 2 सीजों पर जीत हासिल की हैं.जबकि साल 2019 के चुनाव में आरजेडी शून्य पर सिमट गई थी, जबकि एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं. इस तरह से तेजस्वी की मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. 

चिराग पासवान से सीखने की जरूरत

बिहार के एक और नेता और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस चुनाव में वह भी काफी मैच्योर नजर आए. वह एनडीए का हिस्सा हैं. चिराग ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को उन सभी पांच सीटों पर जीत दिलाई, जिन पर उन्होंने उम्मीदवार उतारे थे. चुराग पासवान ने अपने दिग्गज नेता पिता के मार्गदर्शन से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी. लेकिन 2020 में राजविलास पासवान के निधन के बाद से उनकी पारिवारिक कलह शुरू हो गई. चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने उनकी राजनीतिक विरासत पर दावा कर पार्टी उनसे ले ली. जिसके बाद शुरू हुई चिराग पासवान की अपनी राजनीतिक पहचान की लड़ाई.

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चिराग ने लोगों तक पहुंच बनाने के लिए बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट अभियान चलाया और एनडीए का समर्थन करना जारी रखा. उनकी कोशिश रंग लाई.  बीजेपी ने चुनाव से पहले फैसला किया कि अगर बिहार में वह पासवान वोट चाहते हैं तो चिराग पासवान उनके लिए सबसे अच्छा दांव हैं. चुनावी नतीजे बताते हैं कि उनकी प्लानिंग ने काम किया.  बीजेपी बहुमत से दूर है, ऐसे में चिराग पासवान उनके अहम सहयोगी हैं. 

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