अब राफेल का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस ने कहा- हम सुनवाई को तैयार, मगर अगले हफ्ते
एयर मार्शल एसबी देव का कहना है, "यह जानना ज़रूरी नहीं है कि पैसा रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रम (DPSU) के पास जा रहा है, या निजी क्षेत्र के पास... जब तक पैसा हमारे ही देश में रहता है, निवेश देश में ही हुआ, और विमान भी हम तक जल्दी पहुंचा, तो उसे ठुकराने का क्या औचित्य है..."वहीं वायुसेना के उपप्रमुख एसबी देव ने यह भी कहा कि मुझे इस मसले पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, हमें लगता हैं कि लोगों को जानकारी नहीं है. हम विमान का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि राफेल सुंदर और सक्षम विमान हैं.'I shouldn't comment but I can tell you all this discussion going on Rafale, because we know a lot about how everything went, we find people don’t have information. We're waiting for the aircraft. Rafale is beautiful & capable aircraft: Vice Chief of Air Force, Air Marshal S B Deo pic.twitter.com/OCvMGVSx31
— ANI (@ANI) September 5, 2018
राफेल डील को लेकर PM मोदी पर कांग्रेस का अटैक, कहा- इस सरकार का DNA बन गया है साठगांठ वाला पूंजीवाद
It is not necessary to know whether the money is with the DPSU (Defence Public Sector Undertakings) or with private company. As long as the money stays in the country, the investment is in the country and aircraft comes out quickly, why should we refuse it?: Air Marshal S B Deo pic.twitter.com/BM498Fkf98
— ANI (@ANI) September 5, 2018
बता दें कि फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान, 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकारों के स्तर पर समझौते के तहत भारत सरकार 36 राफेल विमान खरीदेगी. घोषणा के बाद, विपक्ष ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री ने सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की मंजूरी के बिना कैसे इस सौदे को अंतिम रूप दिया. मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलोंद के बीच वार्ता के बाद 10 अप्रैल, 2015 को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि वे 36 राफेल जेटों की आपूर्ति के लिए एक अंतर सरकारी समझौता करने पर सहमत हुए.
I do. I personally do. The Air Force policy is that anything comes to us quickly & money stays in our country, that's what is required: Vice Chief of Air Force, Air Marshal S B Deo on being asked if he favours manufacturing of Tejas by private sector as HAL is taking too long pic.twitter.com/BdSYknwMyn
— ANI (@ANI) September 5, 2018
पीएम मोदी के सामने हुए समझौते में यह बात भी थी कि भारतीय वायु सेना को उसकी जरूरतों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर विमान मिलेंगे. वहीं लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी. आखिरकार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ. भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 5 9,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी. आरोप? कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है. उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी. पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी एयरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया.
वीडियो-राफेल का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस ने कहा- हम सुनवाई को तैयार
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं