राष्ट्रपति पद के लिए उद्योगपति रतन टाटा के नाम की चर्चा शुरू हो गई है.
मुंबई:
भारत के अगले राष्ट्रपति के रूप में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के नाम की चर्चा जोरशोर से चल रही थी लेकिन भागवत ने राष्ट्रपति बनने से इनकार कर दिया है. इसके बाद अब एक और नाम की चर्चा तेज है. संघ के करीबी बता रहे हैं कि एनडीए से संभावित नामों में उद्योगपति रतन टाटा का नाम सबसे आगे चल रहा है. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने स्पष्ट कर दिया कि वे कतई राष्ट्रपति नहीं बनने वाले.
मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में वेटरनरी चिकित्सकों को संबोधित करते हुए अपनी मंशा साफ कर दी. ज्ञात हो कि भागवत खुद वेटरनरी डॉक्टर हैं. अपने भाषण की शुरुआत ही उन्होंने खुद को राष्ट्रपति बनाए जाने की खबरों का खंडन करते हुए की. उन्होंने कहा कि, ''मीडिया में जो खबर है वह तो होने से रहा. संघ (आरएसएस) में आने के बाद हम इन सब संभावनाओं के दरवाजे बंद करके आते हैं. ऊपर (केंद्रीय स्तर पर) भी कई स्वयंसेवक हैं. उन्हें भी ये बात पता है. ऐसे में मीडिया में जो बात उछली है वह आई गई हो जाएगी. (मेरा) नाम भी प्रस्तावित नहीं होगा और अगर नाम प्रस्तावित किया भी जाता है तो मैं इसको स्वीकार नहीं करूंगा. मैं इन तमाम बातों को केवल मनोरंजन के लिहाज से लेता हूं.''
भागवत के उक्त बयान से पहले दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में खबर फैल गई थी कि एनडीए की तरफ से मौजूदा आरएसएस प्रमुख को देश का अगला राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. इस आधार पर शिवसेना नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने मोहन भागवत को प्रखर राष्ट्रवादी बताते हुए राष्ट्रपति पद के लिए बेहतर विकल्प भी बता दिया था. इसके बाद सरसंघचालक ने अपना रुख साफ कर दिया.
इस घटनाक्रम के बीच अब आगामी राष्ट्रपति के रूप में एनडीए गठबंधन की ओर से कुछ और नामों पर विचार विमर्श चल रहा है. सूत्रों की मानें तो इस बहस में मौजूदा स्थिति में उद्योगपति और टाटा समूह के सर्वेसर्वा रतन टाटा का नाम आगे है. इस नाम पर संघ परिवार का नजरिया सकारात्मक तो है ही साथ ही बीजेपी को उम्मीद है कि एनडीए और विपक्ष इस नाम पर आसानी से राजी हो जाएगा.
एनडीए के लिए मौजूदा स्थिति में इस साल के जुलाई महीने के अंत में होने वाले राष्ट्रपति का चुनाव जीतना टेढ़ी खीर है. क्योंकि राज्यों में उसके पास अधिक वोट भले ही हों संसद के दोनों सदनों की ताकत में वह विपक्ष के मुकाबले कमजोर है. ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की तर्ज पर उद्योगपति रतन टाटा का नाम प्रस्तावित कर सत्ताधारी गठबंधन अपने पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर बिठाने की मंशा पूरी कर सकता है.
टाटा समूह के लंबे समय तक अध्यक्ष रह चुके 80 साल के रतन टाटा हाल ही में अपने उत्तराधिकारी सायरस मिस्त्री से हुए संघर्ष को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. इस संघर्ष का नतीजा रहा कि रतन टाटा ने भारत के विशाल उद्योग समूह टाटा ग्रुप की अध्यक्षता दुबारा स्वीकार की.
हालांकि इस सुगबुगाहट को लेकर टाटा समूह की ओर से कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी गई है.
मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में वेटरनरी चिकित्सकों को संबोधित करते हुए अपनी मंशा साफ कर दी. ज्ञात हो कि भागवत खुद वेटरनरी डॉक्टर हैं. अपने भाषण की शुरुआत ही उन्होंने खुद को राष्ट्रपति बनाए जाने की खबरों का खंडन करते हुए की. उन्होंने कहा कि, ''मीडिया में जो खबर है वह तो होने से रहा. संघ (आरएसएस) में आने के बाद हम इन सब संभावनाओं के दरवाजे बंद करके आते हैं. ऊपर (केंद्रीय स्तर पर) भी कई स्वयंसेवक हैं. उन्हें भी ये बात पता है. ऐसे में मीडिया में जो बात उछली है वह आई गई हो जाएगी. (मेरा) नाम भी प्रस्तावित नहीं होगा और अगर नाम प्रस्तावित किया भी जाता है तो मैं इसको स्वीकार नहीं करूंगा. मैं इन तमाम बातों को केवल मनोरंजन के लिहाज से लेता हूं.''
भागवत के उक्त बयान से पहले दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में खबर फैल गई थी कि एनडीए की तरफ से मौजूदा आरएसएस प्रमुख को देश का अगला राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. इस आधार पर शिवसेना नेता और राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने मोहन भागवत को प्रखर राष्ट्रवादी बताते हुए राष्ट्रपति पद के लिए बेहतर विकल्प भी बता दिया था. इसके बाद सरसंघचालक ने अपना रुख साफ कर दिया.
इस घटनाक्रम के बीच अब आगामी राष्ट्रपति के रूप में एनडीए गठबंधन की ओर से कुछ और नामों पर विचार विमर्श चल रहा है. सूत्रों की मानें तो इस बहस में मौजूदा स्थिति में उद्योगपति और टाटा समूह के सर्वेसर्वा रतन टाटा का नाम आगे है. इस नाम पर संघ परिवार का नजरिया सकारात्मक तो है ही साथ ही बीजेपी को उम्मीद है कि एनडीए और विपक्ष इस नाम पर आसानी से राजी हो जाएगा.
एनडीए के लिए मौजूदा स्थिति में इस साल के जुलाई महीने के अंत में होने वाले राष्ट्रपति का चुनाव जीतना टेढ़ी खीर है. क्योंकि राज्यों में उसके पास अधिक वोट भले ही हों संसद के दोनों सदनों की ताकत में वह विपक्ष के मुकाबले कमजोर है. ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की तर्ज पर उद्योगपति रतन टाटा का नाम प्रस्तावित कर सत्ताधारी गठबंधन अपने पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर बिठाने की मंशा पूरी कर सकता है.
टाटा समूह के लंबे समय तक अध्यक्ष रह चुके 80 साल के रतन टाटा हाल ही में अपने उत्तराधिकारी सायरस मिस्त्री से हुए संघर्ष को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. इस संघर्ष का नतीजा रहा कि रतन टाटा ने भारत के विशाल उद्योग समूह टाटा ग्रुप की अध्यक्षता दुबारा स्वीकार की.
हालांकि इस सुगबुगाहट को लेकर टाटा समूह की ओर से कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी गई है.
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