नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने संशोधित नागरिकता कानून के विवाद को लेकर जोर देकर कहा है कि इससे तीन पड़ोसी देशों से सताए गए गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने की प्रक्रिया तेज होगी. पिछले साल पत्नी एस्थर डुफ्लो और अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर के साथ अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले अभिजीत बनर्जी ने डॉ प्रणय रॉय के साथ बातचीत में कहा कि "हमें फैसले लेने के लिए ऐसे संस्थानों को डिजाइन करने में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकते हैं."
उन्होंने कहा कि "मुझे लगता है, वहां सभी प्रकार के मुद्दे हैं... मुझे एक बात कहनी है जो मुझे मेरे फील्ड वर्क के अनुभव के चलते चिंतित करती है, कि जब किसी के पास बड़ी शक्ति होती है, तो वह व्यक्ति यह तय कर सकता है कि आप इस सूची या उस सूची में होंगे या नहीं ... और इसलिए यदि वह कह दे कि 'मुझे यकीन नहीं है कि आप एक उचित नागरिक हैं' और धर्म के बारे में भूल जाओ...''
उन्होंने कहा कि "बहुत सी चीजें हैं जिनके बारे में आप चिंतित हो सकते हैं. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि - यह एक बात है. अगर मैं किसी सीमावर्ती जिले में रहता, तो मुझे उस विचार से डर लगेगा. और भले ही मैं वहीं का था - आप सिर्फ इस तथ्य को जानते हैं कि कोई आएगा और कहेगा कि 'देखो मैं इस सूची को बना रहा हूं और मैं तुम्हारे नाम के आगे संदिग्ध लगा सकता हूं' - मेरा मतलब है कि आखिरकार यह एक सीमावर्ती जिला है." नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा, "मेरा मतलब है कि वहां शासन की चुनौती बहुत महत्वपूर्ण है."
बनर्जी ने कहा कि वहां पर क्या शासन बहुत अधिक शक्तिशाली है और किसी व्यक्ति के हाथों में चीजें तय करने की शक्ति है. उन्होंने कहा कि "मैं हर चीज के बारे में चिंतित हूं. बस मुझे लगता है कि अधिकार का दुरुपयोग हो सकता है... हमें चिंता करनी चाहिए, राज्य के ढांचे बनाने के बारे में जहां एक तरफ के लोगों के पास खोने के लिए बहुत कुछ है, अगर आप भारत के नागरिक नहीं हैं और कोई अन्य देश आपको नहीं चाहता है... मुझे लगता है कि उस बिंदु पर पावर स्ट्रक्चर बन रहे हैं जो आपको चपेट में ले लेते हैं. आप कई अलग-अलग तरीकों से निकाले जा सकते हैं. मुझे लगता है कि यह शासन की एक बहुत ही भयावह समस्या के रूप में है."
उन्होंने कहा कि "कुछ लोगों के पास निर्णय लेने की शक्ति है, जो आपके जीवन पर बड़ा असर दिखा सकते हैं... हमें इन निर्णयों को लेने वाले संस्थानों को डिजाइन करने में बेहद सावधानी बरतने की आवश्यकता है. उन्हें संसद में त्वरित रूप से नहीं बनाया जाना चाहिए. यह चिंता का विषय है."
भारत में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम में पहली बार भारत की नागरिकता में धर्म को भी आधार बनाया गया है. सरकार का कहना है कि इससे तीन मुस्लिम बहुल देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने में मदद मिलेगी यदि वे धार्मिक कट्टरता के कारण 2015 से पहले भारत आ गए थे. आलोचकों का कहना है कि यह मुसलमानों के साथ भेदभाव करने और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का उल्लंघन करने के लिए बनाया गया है.
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