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This Article is From Dec 16, 2020

15KM में कहीं रगड़ा, तो कहीं डॉक्यूमेंट्री! कड़ाके की ठंड से बचने के लिए रात में क्या कर रहे किसान? 

दिल्ली बॉर्डर पर डटे हजारों किसान कड़ाके की ठंड में कैसे काट रहे रात? नौजवान अपने बुजुर्गों को बचाने के लिए क्या कर रहे उपाय? उसका जायजा लिया हमारे संवाददाता रवीश रंजन शुक्ला ने..

15KM में कहीं रगड़ा, तो कहीं डॉक्यूमेंट्री! कड़ाके की ठंड से बचने के लिए रात में क्या कर रहे किसान? 
15 किमी में फैले इस धरना स्थल पर रात के वक्त किसानों को कभी नुक्कड़ नाटक तो कभी डाक्यूमेंट्री भी दिखाई जा रही है.
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
15 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है किसान आंदोलन का धरना स्थल
कड़ाके की ठंड में बुजुर्ग किसानों के बचाने के पुख्ता इंतजाम
नौजवान टांग रहे तंबू, बुजुर्ग पीस रहे रगड़ा, कहीं चल रही डॉक्यूमेंट्री
नई दिल्ली:

दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. रात का पारा 5 डिग्री से भी नीचे लुढ़क चुका है लेकिन दिल्ली के बॉर्डर पर धरने पर बैठे हजारों किसानों (Farmer's Protest) के हौसले परवान पर हैं.  कृषि कानून (Farmers Laws) पर सरकार से लंबी लड़ाई का मूड बनाए किसानों ने सर्द रात से भी निपटने के इंतजाम कर लिए हैं. कई नौजवान रात में ही सड़क पर ठंड से बचाव के लिए बड़ा सा तंबू लगाते नजर आए. उन्हें बुजुर्ग हिदायत दे रहे थे. पूछने पर पता चला कि ये नौजवान पंजाब के मानसा जिले के खेड़ी गांव के रहने वाले हैं. नौजवानों ने कहा कि गांव से आए दो दर्जन बुजुर्गों को ठंड से बचाया जा सके, इसके लिए ही वो तंबू गाड़ रहे हैं. तंबू में गर्म कपड़े, गद्दे और रजाई के इंतजाम किए गए हैं.

इससे पहले दिन में वहां तंबू के लिए प्लास्टिक सीट लेने के लिए लाइन लगी थी. कुछ ही घंटे में दिन की धूप सर्द रात में बदलने वाली थी, लिहाजा जैसे-जैसे दिन ढलता गया, वैसे-वैसे तंबू और कंबल लेने की होड़ भी बढ़ती दिखी. जैसे ही रात ढली, दिल्ली-रोहतक राष्ट्रीय राजमार्ग पर दूर-दूर तक ट्रैक्टर ट्राली और तंबू ही नजर आ रहे थे. किसान खाने की तैयारी में जुटे थे और खुले आसमान के नीचे नौजवान रोटियां सेंक रहे थे. दोनों पैरों से विकलांग इकबाल सिंह भी बठिंडा के खेमूड़ा गांव से आए हैं. चलने से लेकर खाने तक के लिए दूसरे साथियों के भरोसे हैं फिर भी तीन महीने तक धरने देने की बात कह रहे हैं. कहते हैं,  "ठंड तो बहुत पड़ रही है, परेशानी भी हो रही है लेकिन काले कानूनों को वापस किए बिना यहां से जाएंगे नहीं."

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रात के अंधेरे में हम आगे बढ़ रहे थे, तभी यहां मलोट के राणींवाला गांव का जत्था मिला. 65 साल के जसवंत सिंह अपने 20 किलो के डंडे के साथ आए हैं. इसे रगड़ा कहते हैं. सर्दी से बचने के काजू बादाम को इसी डंडे से पीस कर खाते हैं. जसवंत सिंह कहते हैं, "ये रगड़ा बीस किलो का है. इसी से बादाम पीस कर पीते हैं. इसी के बल पर कड़ाके की ठंड में जमे हैं. जसवंत सिंह इसी रगड़े से बादाम पिएगा और मोदी से लड़ेगा."

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ट्रैक्टर के साथ लगी ट्रालियों को यहां के किसान तीन लाख की हवेली कहते हैं. जिन के पास ट्रैक्टर नहीं है, उनके लिए प्लास्टिक तंबू लगाए गए हैं. तंबू और ट्राली से अलग सैकड़ों किसान सड़क के किनारे भी रात गुजार रहे हैं लेकिन इन सबके बावजूद किसान हटने को तैयार नहीं हैं और सरकार बात करने को तैयार नहीं है. एक किसान ने कहा, "असी मोदी जी से विनती करदे हैं कि तुस्सी बिल वापस ले लों हमें भी अपने घर जांन दू." 15 किमी में फैले इस धरना स्थल पर रात के वक्त किसानों को कभी नुक्कड़ नाटक तो कभी डाक्यूमेंट्री भी दिखाई जा रही है और भोर में 'जागो रे; निकाला जा रहा है.
 

वीडियो- किसानों के हौसले के आगे ठंड भी बेअसर

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