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This Article is From May 17, 2023

PM नरेंद्र मोदी ने 9 साल में मज़बूत विदेश नीति से लिखी नए भारत की इबारत

Modi Documentary Series Episode 1: केंद्र की सत्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 9 साल पूरे होने के मौके पर NDTV खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज लेकर आया है. पहले एपिसोड में पढ़िए कैसे भारत की कूटनीति (डिप्लोमेसी) को पीएम मोदी ने प्रभावित किया है.

26 मई को मोदी सरकार के 9 साल पूरे हो रहे हैं...

नई दिल्ली:

केंद्र में मोदी सरकार के 9 साल पूरे हो रहे हैं. मोदी सरकार की 9वीं सालगिरह (Modi Documentary Series Episode 1) 26 मई को है. बीजेपी साल-2014 के मुकाबले 2019 में और बड़ी जीत के साथ सत्ता में आई. इस बड़ी जीत में पीएम मोदी के नेतृत्व में लाई गईं कल्याणकारी योजनाओं ने अहम भूमिका निभाईं. इसमें मोदी सरकार की विदेश नीति का भी बड़ा योगदान रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 9 साल के कार्यकाल में विश्व पटल पर भारत को नए सिरे से स्थापित किया. सत्ता में पीएम मोदी के 9 साल (#9YearsOfPMModi का एपिसोड 1 - कूटनीति) पूरे होने के मौके पर NDTV एक खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज लाया है. पहले एपिसोड में पढ़िए, कैसे भारत की कूटनीति (डिप्लोमेसी) को पीएम मोदी ने प्रभावित किया है. (देखिए - डॉक्यूमेंट्री का पहला पूरा एपिसोड)

दुनिया के नेता भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र की तारीफें करते नहीं थकते. उनकी तस्वीरें भारतीय विदेश नीति को परिभाषित करती हैं. दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं के बीच आत्मविश्वास से भरा एक मजबूत नेता. एक मजबूत भारत का प्रतिनिधि. एक ऐसा देश जो आर्थिक विकास कर रहा है. दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश, जिसे पश्चिमी देश विस्तारवादी चीन के मंसूबों पर विराम लगाने वाले एशिया के शक्तिशाली देश के तौर पर देखते हैं. 

भारत की विदेश नीति बहुत ही गतिशील है. भारत को ये अहम स्थान हमारी क्षमता, खासकर प्रधानमंत्री की दूसरे नेताओं के साथ साझेदारी में काम करने की क्षमता के कारण मिला है.

अमिताभ कांत

नीति आयोग के पूर्व सीईओ

 

ये था पीएम का मास्टर स्ट्रोक

भारत के पूर्व राजदूत किशन एस राणा कहते हैं, "नरेंद्र मोदी ने एक मास्टर स्ट्रोक से शुरुआत की. वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों और मॉरिशस के नेताओं को अपने शपथ समारोह में बुलाया." 

चीन के सामने डटकर खड़े हुए
पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल बताते हैं, "लगातार बदलती स्थितियों में कोई और देश चीन के सामने ऐसे नहीं खड़ा हुआ जैसे हम हुए. और ये भी मेरे विचार में उस करिश्मे का हिस्सा है, जो प्रधानमंत्री ने अपने नेतृत्व के कारण अर्जित की है, जिसे अब दुनिया भर में माना जाता है." 

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मोदी दुनिया के लोकप्रिय नेता
दुनिया के कई नेता भारत और पीएम मोदी की तारीफें करते नहीं थकते. अमेरिका के कॉमर्स मंत्री जीना रायमॉन्डो ने एक इवेंट में उन्हें सबसे लोकप्रिय विश्व नेता बताया था. उन्होंने कहा था, "वो किसी वजह से दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, वो एक दूरदर्शी हैं, भारत के लोगों के प्रति उनके समर्पण को बयान नहीं किया जा सकता - वो गहरा, सच्चा और असली है." 

भारत की छाप छोड़ना मोदी की प्राथमिकता
प्रधानमंत्री बनते ही 2014 में पहले दिन से विदेश नीति और विदेशों में भारत की छाप छोड़ना मोदी की बड़ी प्राथमिकता रही है. अगस्त 2014 में भारत के पड़ोस के अलावा पहली विदेशी यात्रा के दौरान मोदी ने जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ अच्छे संबंध बनाए. एक ऐसी दोस्ती पनपी जो पिछले साल जुलाई में आबे की दुखद हत्या के साथ ही खत्म हुई. प्रधानमंत्री आबे के अंतिम संस्कार में भाग लेने जापान पहुंचे थे.

जापान के साथ बढ़ी नज़दीकियां
आज भारत और जापान की सेनाएं एक साथ प्रशिक्षण करती हैं. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ जापान मालाबार नौसेना अभ्यासों का एक अहम हिस्सा है. साझा खतरा चीन और उसकी बढ़ती नौसेना की ऐसी जगहों पर मौजूदगी है, जहां भारत को चुनौती देने वाला कोई नहीं हुआ करता था.

इजराइल के पीएम ने की थी तारीफ
पीएम मोदी के लिए इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था, "क्रांति शब्द के सबसे अच्छे मायनों में आप क्रांतिकारी नेता हैं. आपके इजराइल आने से पहले हमारे 3000 वर्षों के अस्तित्व में कोई भी भारतीय नेता इजराइल नहीं आया था. आप ऐसा करने वाले पहले भारतीय नेता हैं."

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अप्रैल तक 67 विदेश यात्राएं कर चुके हैं पीएम मोदी 
नरेंद्र मोदी अब तक के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा विदेश यात्रा कर चुके हैं. इस साल अप्रैल तक उन्होंने 67 विदेश यात्राएं की थीं. इनमें संयुक्त राष्ट्र महासभा की यात्रा भी शामिल है.

भारत की विदेश नीति के कुछ अन्य स्तंभ भी हैं. जैसे दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और देश के पूर्व विदेश सचिव व मौजूदा विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर, जो भारतीय विदेश नीति का एजेंडा चला रहे हैं. विदेश नीति पर बात करते हुए एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर एस जयशंकर ने कहा था, "यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना है कि यूरोप की समस्याएं विश्व की समस्याएं हैं, लेकिन विश्व की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं."

अमेरिका के साथ संबंधों में आया बदलाव
भारत की विदेश नीति के मामले में सबसे बड़ा बदलाव अमेरिका के साथ संबंधों में आया है. दशकों तक एक दूसरों को चिंता भरी निगाहों से देखने के बाद अब भारत और अमेरिका सबसे नजदीकी रणनीतिक साझेदार हैं. कई ऐसे बुनियादी समझौतों को मंजूर किया है, जिस पर दोनों पक्षों को राजी होने में कई साल लग गए. अमेरिका अब भारत को नई दिल्ली की मॉस्को के साथ की नजदीकी के चश्मे से नहीं देखता. भारत भी अमेरिका को इस्लामाबाद से उसके रिश्तों के चश्मे से नहीं देखता. भारत और अमेरिका के सैन्य और रणनीतिक तौर पर गैर नाटो देशों में सबसे नजदीकी रिश्ते हैं. इस साझेदारी को बनाने में नरेंद्र मोदी का निर्णायक हाथ रहा.

अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा वित्तीय साझेदार
पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल बताते हैं, "आज अमेरिका हमारा सबसे बड़ा वित्तीय साझेदार है. दोनों देशों के बीच व्यापार अब 162 अरब डॉलर से ज्यादा का है. 20-22 अरब डॉलर का तो हथियारों का ही सौदा है. हमने अमेरिका के साथ सारे बुनियादी समझौतों पर मंजूरी तो दे ही दी है. इनमें से कुछ प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में मंजूर हुए, जो नजदीकी संबंधों का आधार बढ़ाने के लिए हैं. हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से चर्चा करके आज सारे मुद्दों पर जीत हासिल कर ली है. प्रधानमंत्री मोदी ने हमारे रिश्तों को एक नया आयाम दिया है."

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ट्रंप को हुआ था भारत से दोस्ती के मायने का एहसास
यहां 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप के लिए अहमदाबाद में आयोजित हुए 'नमस्ते ट्रंप' इवेंट का जिक्र भी किया जाना चाहिए. 'नमस्ते ट्रंप' में डोनाल्ड ट्रंप को इस बात का एहसास दिलाया गया कि भारत के साथ दोस्ती के क्या मायने हो सकते हैं. तब डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था, "प्रधानमंत्री मोदी का जीवन इस महान देश की अनंत संभावनाओं को रेखांकित करता है. सब इन्हें प्यार करते हैं, लेकिन ये बहुत सख्त हैं."

दुनिया के दबाव में भी स्वतंत्र रही विदेश नीति
अमेरिका के साथ भारत के इस रिश्ते से रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते पर कोई असर नहीं पड़ा है. ये बात यूक्रेन के साथ ताज़ा संकट में साफ हो गई. कीव के साथ करीबी संबंध बनाए रखने के साथ-साथ भारत ने ये भी साफ कर दिया कि हमारी विदेश नीति हमेशा स्वतंत्र रहेगी. इसलिए प्रधानमंत्री ने 2022 के SCO समिट के मौके पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से कहा था कि ये समय युद्ध का नहीं है. यूक्रेन के साथ रूस के जंग के बीच जहां अमेरिका समेत कई देश रूस पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा रहे थे. वहीं, भारत ने रूस से तेल आयात की भी मंजूरी दी. इस फैसले की पश्चिमी देशों ने आलोचना भी की, लेकिन नई दिल्ली ने सीधा जवाब दिया. 

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, "अगर यूरोप के देश, पश्चिमी देश और अमेरिका इतने चिंतित हैं, तो वो ईरानी तेल को बाजार में क्यों नहीं आने देते? वेनेज़ुएला के तेल को क्यों नहीं इजाज़त देते? उन्होंने तेल के बाकी सारे स्रोत घेर लिए हैं. और वो कहते हैं कि बाज़ार जाकर अपने लोगों के लिए सबसे अच्छा सौदा मत करो. मेरे विचार से ये उचित बात नहीं है."

अमेरिका को मिला मैसेज
इस मामले पर पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल कहते हैं, "अमेरिकी ये समझ चुके हैं कि रूस के साथ रिश्तों के मामले पर एक हद से ज्यादा हमें पुश नहीं जा सकता. अगर वो वाकई में प्रतिबंध लगाना चाहते हैं, जैसा कि उनकी आदत है तो उससे वो रिश्ता बहुत जल्दी टूट जाएगा, जिसे वो बनाने की कोशिश कर रहे हैं." 

रूस के साथ मजबूत हो रहे रिश्ते
भारत के साथ ऐतिहासिक सैन्य रिश्तों के बावजूद मॉस्को चीन को हथियार देता ही जा रहा है. हाल ही में अत्याधुनिक S-400 जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली को चीन को दे चुका है. वहीं, रूस भारत को भी ऐसे हथियार बेच चुका है. आज रूस के हथियारों से ही दोनों देशों की रक्षा की जा रही है. वो भी ऐसे समय जब बीजिंग के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हैं.

चीन को दिया दो टूक जवाब
हालांकि, जब 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बने तो हालात ऐसे नहीं थे. अहमदाबाद में साबरमती के किनारे झूला झूलते हुए मोदी और चीन के शी जिनपिंग की इन दोस्ताना तस्वीरों के बाद माहौल खराब हुआ, जिसे भारत चीन का विश्वासघात बताता आया है. नई दिल्ली के हिसाब से धोखे के दौर की शुरुआत डोकलाम में 2017 में शुरू हुई. जब भूटानी इलाके में बन रही अवैध सड़क के निर्माण को रोकने के लिए भारतीय सैनिक पहुंच गए. चीन यहां से पीछे हटा और अपना ध्यान दोनों देशों की पूरी सीमा पर लगा दिया. 

पाकिस्तान को सिखाया सबक
भारत के दूसरे विरोधी पाकिस्तान पर नरेंद्र मोदी सीधे सीधे वार करते आ रहे हैं. पीएम मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं कि पाकिस्तान को अगर भारत के साथ बातचीत करनी है, तो उसे आतंकवाद का रास्ता छोड़ना होगा. पाकिस्तान के लिए संदेश बिल्कुल साफ था- 'अगर तुम हमें मारोगे, हम वापस वार करेंगे. ज़्यादा सख़्त, ज़्यादा बल के साथ.' पुलवामा आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ़ जवानों के शहीद होने के बाद सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी. वहीं, 14 फरवरी 2019 में बालाकोट में एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान को एक सख़्त संदेश देना था कि आतंकवाद का जवाब हमले से होगा.

भारतीय मूल के लोगों का बढ़ा जुड़ाव
मजबूत नेता के नेतृत्व में मजबूत भारत की यही छवि दुनिया भर में बसे भारतीय मूल के लोगों को भा रही है. इससे पहले कोई ऐसा कोई भारतीय नेता नहीं गुजरा, जिसका विदेशों में रहने वाले भारतीयों के साथ ऐसा जुड़ाव रहा हो.

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अप्रवासी भारतीयों को भारत के विकास की दिशा से जोड़ा
भारत के पूर्व राजदूत किशन एस राणा कहते हैं, "सराहना करनी होगी कि उन्होंने (PM मोदी) न केवल अप्रवासी भारतीयों को भारत के विकास की दिशा में काम पर लगाया, बल्कि भारतीय मूल की पहली, दूसरी, तीसरी और बाद की पीढ़ियों का साथ लिया. इज़रायल ने अपने अस्तित्व के लिए ये तरकीबें अपनाई थीं. मेरे विचार से भारत दूसरा देश है जिसने ये कुशलता ग्रहण की है." 

वैक्सीन डिप्लोमेसी ने कायम की मिसाल
गुयाना के राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहा था, "उन्हें एक दोस्ताना भारत के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी साझेदारी के लिए तैयार हो. भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि संकट के दौरान भी वो एक भरोसेमंद साझेदार है.

कोरोना महामारी काल में भारत ने वैक्सीन डिप्लोमेसी में एक मिसाल बनाई है. कोविड जब चरम पर था, तो भारत टीके निर्यात करने वाले पहले देशों में शामिल रहा. 

दुनिया भर में संकट में फंसे भारतीयों की हुई मदद
भारतीय कूटनीति की पहुंच ने दुनिया भर में परेशान भारतीय नागरिकों को राहत दी. यूक्रेन, यमन और अब सूडान में फंसे भारतीय नागरिक, प्रधानमंत्री के बनाए नज़दीकी रिश्तों के कारण मुश्किल हालात से सही सलामत निकल पाए. आज भारत एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ताकत के तौर पर स्थापित हो चुका है. जिसको शायद सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक चुनौती में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. 

विदेश नीति से भारत को हुए ठोस वित्तीय फायदे
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति से भारत को ठोस वित्तीय फायदे भी हुए हैं. हाल में हासिल किए गए इन्हीं फायदों को भारत अपनी सक्रिय विदेश  नीति के ज़रिए सुरक्षित करना चाहता है. भारत को 1.4 अरब नागरिकों की ज़िंदगियां बेहतर करने के सपने को पूरा करने के लिए सीमाओं पर स्थिरता का रहना जरूरी है. खासकर चीन के साथ भूगौलिक-रणनीतिक रिश्ते सुधरने चाहिए. बेशक चुनौती बहुत बड़ी है. इसमें भारतीय कूटनीति की कुशलता और प्रधानमंत्री मोदी के पर्सनल टच की आज़माइश होगी.

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