विज्ञापन

इस स्वतंत्रता दिवस, महिलाओं की स्वतंत्रता बनी बड़ा मुद्दा

जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय परिषद की सदस्य और लखनऊ में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार समीना खान कहती हैं यहां मसला मानसिकता का है, वही मानसिकता जो ढेरों-ढेर और चहुमुखी विकास के बाद और भी सयानेपन के साथ हमारे आपके बीच मौजूद हैं.

इस स्वतंत्रता दिवस, महिलाओं की स्वतंत्रता बनी बड़ा मुद्दा
पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से महिला सुरक्षा को लेकर अपनी बात रखी
नई दिल्ली:

इस स्वतंत्रता दिवस पर देश में महिलाओं की स्वतंत्रता सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है. कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार के बाद पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता पर बहस छिड़ी हुई है. सोशल मीडिया में भी लोग घटना को लेकर अपना रोष जाहिर कर रहे हैं, महिला डॉक्टर के साथ कार्यक्षेत्र में हुई इस घटना के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में भी सुरक्षित नही हैं. महिलाओं की स्वतंत्रता पर हमने देश- विदेश में महिलाओं के मुद्दों पर लिख, बोल रही महिलाओं से बातचीत की. वेब सीरीजों में अनियंत्रित तरीके से दिखाई जा रही हिंसा, अश्लीलता महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं, साथ में घर का माहौल भी किसी बच्चे को बढ़े होने पर महिलाओं के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाता है. महिलाओं को सम्मान दिलाने वाले महिला समाख्या कार्यक्रम के बन्द होने पर भी महिलाओं की स्वतंत्रता प्रभावित हुई है.

Latest and Breaking News on NDTV

मामला मेडिकल फील्ड का तो क्या वकील, इंजीनियर इस घटना का विरोध करते नही दिखेंगे!

जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय परिषद की सदस्य और लखनऊ में रहने वाली वरिष्ठ पत्रकार समीना खान कहती हैं यहां मसला मानसिकता का है, वही मानसिकता जो ढेरों-ढेर और चहुमुखी विकास के बाद और भी सयानेपन के साथ हमारे आपके बीच मौजूद हैं.क्या यह हैरानी की बात नहीं कि मामला मेडिकल से जुड़ा है तो मेडिकल प्रोफेशन के लोग ही सामने आ रहे हैं! वकील, इंजीनियर और आम आदमी का इस दर्दनाक घटना से उतना नाता नहीं होना चाहिए?आज के मीम कल्चर में नैतिकता और इस जैसे तमाम मुद्दे मज़ाक बनकर अपना वजूद खो चुके हैं, गरिमा और आस्था जैसे शब्द धर्म के पाले में जा चुके हैं.

प्रगतिशील दिखाना फैशन तो बन गया है पर इन सबके साथ हमें किससे और कितनी आज़ादी मिली यह तो पता ही नही.   फेमिनिज्म का मुद्दा, महिला बनाम पुरुष नहीं बल्कि महिला-पुरुष बनाम सिस्टम किया जाए तो शायद कुछ ऐसे पहलू सामने आ सकेंगे जिनसे बेहतरी की उम्मीद की जा सके.

Latest and Breaking News on NDTV

अश्लील सामग्रियों पर नज़र रखने के साथ सेक्स एजुकेशन बेहद जरूरी

बाल मनोविज्ञान की गहरी समझ रहने वाली डॉ वसुधा मिश्रा आजकल अमेरिका में रहती हैं, वह कहती हैं कि मुझे ये कहते हुए कोई भी अफ़सोस नहीं कि यह सौ प्रतिशत सच है कि महिलाएं बिना किसी गलती के भी ग़लत और विक्षिप्त मानसिकता की वजह से शिकार बनती हैं.

ऐसे कृत्य तब तक होते रहेंगे जब तक स्त्री पुरुष में एक दूसरे के अस्तित्व के प्रति सम्मान ना हो ,महिलायें उपभोग की वस्तु समझी जाएंगी. सेक्स से संबंधित बातों पर ठोस मुद्दों के साथ बातचीत ना होना, अश्लील साहित्य, वीडियो का आसानी से उपलब्ध होना और इन पर किसी भी तरह की क़ानूनी देखरेख न होना भी बलात्कारी प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है.

वेब सीरीजों में दिखाई गई हिंसा से होने वाली हिंसाओं का जिम्मेदार कौन?

नैनीताल की युवा पत्रकार सोनाली मिश्रा कहती हैं मातृ देवो भवः, जिसका अर्थ है महिलाओं या माताओं की पूजा करना. यह कभी भारत में व्यापक रूप से प्रचलित विश्वास था, अब हर दिन होने वाले बलात्कार के मामलों की संख्या को देखते हुए मातृ देवो भवः का वह विचार लुप्त होता दिख रहा है. बढ़ती बेरोजगारी के साथ सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव भी महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को बढ़ावा दे रहा है. ओटीटी प्लेटफार्म में दिखाई जाने वाली सीरीजों में अश्लीलता, भाषा और हिंसा पर कोई नियंत्रण नही है. कई नाबालिग बच्चों द्वारा इन्हीं वेब सीरीजों में अनुचित दृश्य देख कर अपने ही घरों में बलात्कार किए जा रहे है, इसका जिम्मेदार कौन है? 

घर के माहौल से ही सीखते हैं बच्चे

दिल्ली में रहने वाली मशहूर स्टोरी टेलर और तीन दशकों से अध्यापन क्षेत्र में सक्रिय उषा छाबड़ा कहती हैं कि पुरुष घर में महिलाओं पर हाथ उठाते हैं, उनकी कोई भी इच्छा पूरी नही की जाती और ये बात छोटे बच्चे देखते रहते हैं. लड़कों की यही सोच बन जाती है कि लड़कियां उनसे कमज़ोर हैं और बनी ही हाथ उठाने के लिए हैं. लड़की यह सोचती हैं कि शायद हर घर में यही होता है और यही हमारा रिवाज है. इसके साथ ही लड़कियों की अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को स्वीकार करने की प्रैक्टिस बचपन से ही शुरू हो जाती है.

लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीला रंग, ये सब किसने निर्धारित किया!

आकाशवाणी और अरपा रेडियो के साथ लंबे समय से जुड़ी कवियत्री शुभ्रा ठाकुर कहती हैं कि साल 2012 में हुए निर्भया केस के बाद भी अगर ये सब नहीं रुक रहा है तो फिर हमें कानून बनाने की नहीं, लोगों की मानसिकता पर काम करने की ज़रूरत है.सार्वजनिक स्थानों पर लोग खुल कर गालियां देते हैं पर उन्हें रोकने के लिए कोई आगे नही आता. हमारे यहां विज्ञापनों में नारी को एक हमेशा ही एक उत्पाद की तरह प्रस्तुत किया जाता है. 

लड़कियों के लिए गुलाबी रंग और लड़कों के लिए नीला रंग  किसने निर्धारित किया? आज़ादी के बाद इतने सालों से लगातार महिला सशक्तिकरण और नारी अस्मिता की बात करने के बाद भी अगर हालात नहीं सुधरे हैं तो ऐसी आज़ादी किस काम की. एक तरफ तो महिलाओं के सम्मान की बात दूसरी तरफ बन्द है महिलाओं को सम्मान दिलाने वाला महिला समाख्या कार्यक्रम.

देहरादून की प्रीति थपलियाल ने लगभग दो दशक तक जमीनी स्तर पर महिला सशक्तिकरण पर काम किया है. उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत महिला सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में 1989 में शुरू किए गए महिला समाख्या कार्यक्रम में काम करते समाज में महिलाओं की स्थिति को गौर से समझा.

महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के कारण पर भी उनकी गहरी समझ है. वह कहती हैं कि हमारा समाज अभी भी पुरुष प्रधान समाज है, जहां महिलाओं को बस उपभोग की वस्तु के तौर पर ही देखा जाता है. परिवारों में महिलाएं निर्णायक की भूमिका में नही हैं, उन्हें घर के अंदर और बाहर हिंसा का शिकार होना पड़ता है. 

Latest and Breaking News on NDTV

हिंसाओं को रोकने के लिए नई पीढ़ी के साथ ही शुरुआत से लिंग भेदभाव पर काम किया जाना जरूरी है. पोर्न वीडियो को देखकर लोगों में विकृत मानसिकता पैदा होती है और इन वीडियो तक डिजिटल इंडिया में लोगों की पहुंच भी बहुत आसान है. वह कहती हैं कि इन पोर्न वेबसाइटों पर सख्ती के साथ प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.

अपनी बात खत्म करते प्रीति कहती हैं कि यह महिलाओं का दुर्भाग्य था कि महिला समाख्या कार्यक्रम को बन्द कर दिया गया. अभी तो महिलाओं पर अपराध चर्चा में है पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अधिकतर अपराधों का तो किसी को पता भी नही चलता, यह उनके घर के अंदर भी होते हैं. महिला समाख्या कार्यक्रम से हम ऐसे अपराधों के बारे में पता करते थे, उन महिलाओं को न्याय दिलाते थे और लोगों को ऐसे अपराध न करने के साथ महिलाओं का सम्मान करने के लिए जागरूक भी करते थे.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
PM मोदी जन्मदिन विशेष: जब नरेंद्र मोदी ने मां से नजदीकियों और अपने बचपन को याद कर सबको कर दिया था भावुक
इस स्वतंत्रता दिवस, महिलाओं की स्वतंत्रता बनी बड़ा मुद्दा
"तरंग शक्ति" मित्र देशों के बीच सहयोग और आपसी विश्वास बनाने का एक माध्यम : राजनाथ सिंह
Next Article
"तरंग शक्ति" मित्र देशों के बीच सहयोग और आपसी विश्वास बनाने का एक माध्यम : राजनाथ सिंह
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com