जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के चार साल बीत चुके हैं. 5 अगस्त 2019 को केंद्र ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्मकर दिया था. केंद्र ने राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था. 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर के हालात में निर्णायक बदलाव आए. ये बदलाव कितने मजबूत हैं या दिखावटी? इसी को बारीकी से समझने के लिए NDTV के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया ने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा से खास बातचीत की. सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के निरस्त होने को ऐतिहासिक पल बताया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर की जनता तिरंगा यात्रा निकाल रही. यही सबसे बड़ा बदलाव है.
पढ़ें जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा से खास बातचीत के अंश:-
श्रीनगर में तिरंगा यात्रा के इस वक्त के माहौल को देखकर आपके ओपेनिंग रिमार्क्स क्या होंगे?
जम्मू-कश्मीर की जनता 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रही है, आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद ये सबसे बड़ा परिवर्तन आया है. यहां का आम नागरिक यह महसूस कर रहा है कि वो अपनी मर्जी से जिंदगी जी सकता है. जम्मू-कश्मीर और भारत के विकास में वो भी बढ़चढ़कर अपना योगदान देगा.
जब परिवर्तन की बात करते हैं, तो इस परिवर्तन का मूल चरित्र है वो एक पड़ाव या मंजिल के करीब पहुंचती हुई दिख रही है?
मुझे लगता है कि जिस दृढ़ इच्छा और शक्ति का परिचय भारत के प्रधानमंत्री ने दिया और देश की संसद ने एक फैसला किया.... यात्रा वहीं से शुरू हुई है. आज मैं मानता हूं कि मंजिल के करीब हम पहुंच गए हैं. मुझे उम्मीद है कि यहां के आवाम के सहयोग से मंजिल भी हम हासिल कर लेंगे. जो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, वो हम पीएम मोदी के मार्गदर्शन में निश्चित रूप से प्राप्त करेंगे.
2019 में आर्टिकल 370 को निरस्त करने को लेकर एक विवाद था. कहा जाता है कि अगर राजनीतिक इच्छा हो तो राजनीतिक विवाद भी बदले जा सकते हैं. क्या इस मामले में राजनीतिक विवाद बदल गए हैं?
मुझे लगता है कि ये राजनीतिक सवाल नहीं है. आपकी नीयत ठीक है. आप खुद नहीं, बल्कि आवाम के हित में काम कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से राजनीतिक विवाद खत्म हो जाते हैं. जम्मू-कश्मीर में वही हुआ है.
जम्मू-कश्मीर में इसके पहले अलगाववाद, पत्थरबाजी, हड़ताल, बंद का एक कैलेंडर हुआ करता था. अब ये चीजें गायब हैं. क्या ये अपने आप मार्जिन पर चली गई हैं या कहीं-कहीं इसकी खलबलाहट (बेचैनी) है?
जम्मू-कश्मीर में स्टोनपेल्टिंग (पत्थरबाजी) अब इतिहास की बात हो गई है. बंद या हड़ताल अलगाववादी या आतंकवादी संगठन या हमारा जो पड़ोसी देश के नेता होते थे, वो कराते थे. 150 दिन स्कूल-कॉलेज, बिजनेस ट्रेड सब बंद रहता था. वो सब भी अब इतिहास की बात हो गई है. ये सब पुरानी बात हो गई है. अब झेलम के किनारे रात के समय आपको युवा आइसक्रीम खाते और गिटार बजाते हुए दिखेंगे. यहां नौजवानों को आप संगीत का लुत्फ उठाते देख सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर में टूरिज्म एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड तोड़ रहा है. स्मार्ट सिटी, जम्मू-कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर की बात की जाए, तो विकास कैसे करना है; इस बारे में आपकी राय क्या है?
पिछले साल जम्मू-कश्मीर में एक करोड़ 88 लाख लोग पर्यटक के तौर पर आए थे. मैं समझता हूं कि आजादी के बाद ये सबसे बड़ा आंकड़ा था. इस साल अभी तक 1 करोड़ 127 लाख लोग आ चुके हैं. ये इस बात को साबित करता है कि देश में एक पॉजिटिव मैसेज गया है कि जम्मू-कश्मीर सुरक्षित है. यहां शांति है और यहां जाने में कोई दिक्कत नहीं है. विकास परियोजनाओं की चर्चा हम बाद में जरूर करेंगे. लेकिन बड़ी बात ये है कि जम्मू-कश्मीर की जनता बच्चे, बूढ़े, पुरुष, महिलाएं सभी बढ़चढ़कर तिरंगा यात्रा में शामिल हो रहे हैं, मैं समझता हूं कि यही सबसे बड़ा बदलाव है जम्मू-कश्मीर के लिए.
आपकी वजह से NDTV ने जम्मू-कश्मीर में आजादी का अमृत महोत्सव और तिरंगा यात्रा में लोगों का उत्साह देखा. ये बहुत बड़ा बदलाव है. लेकिन ये पब्लिक के लेवल पर कितना बड़ा बदलाव है? आप 34 साल बाद मुहर्रम के जुलूस में चले गए. यहां की जनता इस बदलाव को कैसे देखती है?
कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणों से मुहर्रम का जुलूस 34 साल से नहीं निकाला जा रहा था. कश्मीर में शिया समुदाय की एक बड़ी आबादी है. मुहर्रम उनके लिए बहुत अहम दिन है. मैं उनके लगातार संपर्क में था. एक बात मैंने साफ तौर पर सबसे कही है, अब सबकी धार्मिक भावनाओं का आदर किया जाएगा. शांतिपूर्ण ढंग से कोई भी अगर धार्मिक आयोजन करना चाहे, तो बेशक कर सकते हैं. उसकी पूरी इजाजत दी जाएगी. राष्ट्र विरोधी और भारत विरोधी कोई गतिविधि नहीं होनी चाहिए बस. कोई हिंसा या उपद्रव नहीं होना चाहिए. मुझे लगता है कि लोगों को मेरी बात समझ में आ गई. मैं मानता हूं कि वास्तव में बड़े समुदाय के लोगों की जो इच्छा थी, उसे पूरा करने में पीएम मोदी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर प्रशासन सफल रहा है.
अब जो इस वक्त के बदलाव हैं, उसमें सबसे मुख्य बिंदु आप कौन सा मानते हैं? यहां की जिंदगी बदल गई, पॉलिटिकल नैरेटिव बदल गया. अलगाववादी बातें हाशिये पर चली गईं?
पॉलिटिकल नैरेटिव में मैं नहीं जाना चाहता हूं. लेकिन स्वभाविक रूप से 5 अगस्त 2019 एक ऐतिहासिक घड़ी है. इस दिन देश के संसद ने पीएम मोदी के नेतृत्व में एक ऐताहासिक फैसला किया. जम्मू-कश्मीर में अब एक संदेश चला गया है कि आपको अगर एलजी प्रशासन की व्यक्तिगत आलोचना करनी है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है. भारत सरकार की आलोचना करनी है, इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन देश की एकता और अखंडता के सवाल पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन किसी को कोई इजाजत नहीं देगा. कानून अपना काम करेगा. मुझे लगता है कि लंबे समय से आतंकवाद, अलगाववाद का दंश कश्मीर के लोग झेल रहे थे. पीढ़ियां बर्बाद हो गईं. कितने परिवार उजड़ गए. एक मैसेज सबको बड़ा साफ है- दिल्ली में जो सरकार है और जम्मू-कश्मीर में जो प्रशासन है. वो शांति तात्कालिक रूप से खरीदने में विश्वास नहीं रखता है. जबकि स्थायी रूप में जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने में भरोसा रखता है. इसका असर अब कश्मीर में दिखने लगा है.
अब जो इस वक्त के बदलाव हैं, उसमें सबसे मुख्य बिंदु आप कौन सा मानते हैं? यहां की जिंदगी बदल गई, पॉलिटिकल नैरेटिव बदल गया. अलगाववादी बातें हाशिये पर चली गईं?
पॉलिटिकल नैरेटिव में मैं नहीं जाना चाहता हूं. लेकिन स्वभाविक रूप से 5 अगस्त 2019 एक ऐतिहासिक घड़ी है. इस दिन देश के संसद ने पीएम मोदी के नेतृत्व में एक ऐताहासिक फैसला किया. जम्मू-कश्मीर में अब एक संदेश चला गया है कि आपको अगर एलजी प्रशासन की व्यक्तिगत आलोचना करनी है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है. भारत सरकार की आलोचना करनी है, इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन देश की एकता और अखंडता के सवाल पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन किसी को कोई इजाजत नहीं देगा. कानून अपना काम करेगा. मुझे लगता है कि लंबे समय से आतंकवाद, अलगाववाद का दंश कश्मीर के लोग झेल रहे थे. पीढ़ियां बर्बाद हो गईं. कितने परिवार उजड़ गए. कुछ लोग Conflict Entrepreneurs का कारोबार चला रहे थे. एक मैसेज सबको बड़ा साफ है- दिल्ली में जो सरकार है और जम्मू-कश्मीर में जो प्रशासन है. वो शांति तात्कालिक रूप से खरीदने में विश्वास नहीं रखता है. जबकि स्थायी रूप में जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने में भरोसा रखता है. इसका असर अब कश्मीर में दिखने लगा है.
आपने Conflict Entrepreneurs की बात कही. अभी ये शांत हैं या कुछ दिक्कत है. साथ ही सीमा पार से जो घुसपैठ थी... वो पूरी तरह खत्म हो गई या थोड़ी बहुत बची हुई है.
पाकिस्तान की ओर से कश्मीर के नौजवानों को बरगलाने की कोशिश हो रही है. हथियार और ड्रग्स भेजने की कोशिश हो रही है. लेकिन हमारी आर्मी और बीएसफ के जवान पूरी तरह से चौकस हैं. कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बल के लोग 360 डिग्री अप्रोच के साथ काम कर रहे हैं. पिछले 5 वर्षों में आतंकवादी संगठनों के ज्यादातर टॉप कमांडरों का सफाया हो गया. सिर्फ बंदूक चलाने वालों पर ही कार्रवाई नहीं होती, बल्कि आतंकवाद के पूरे इको सिस्टम को कैसे खत्म किया जा सकता है, इस रणनीति के तहत काम कर रहे हैं. ये कोशिशें जारी हैं और आगे भी जारी रहेंगी. इस मामले में मैं खास तौर पर गृह मंत्री का जिक्र करना भी मुनासिब समझूंगा. समय-समय पर उन्होंने जम्मू-कश्मीर को लेकर रिव्यू ही नहीं किया है, बल्कि एक नीति बनाने में हम सबकी मदद की है. उसके कारण स्थिति में बहुत बड़ा बदलाव आया है.
हालांकि, कुछ तत्व निरीह लोगों की हत्या करके ये बताने की नाकाम कोशिश करते हैं कि कश्मीर अभी शांत नहीं है. लेकिन हमारी फौज इन घटनाओं का डटकर सामना करती है. मुझे लगता है कि आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर को इससे भी मुक्ति मिलकर रहेगी.
G-20 समिट को दौरान जाहिर है पाकिस्तान ने कुछ आवाजें की. पाकिस्तान पहले सेंट्रल देश था जम्मू-कश्मीर के मसले पर बात करने के लिए. लेकिन अब तो मसला खत्म हो गया ना?
दुनिया को ये बात पता चल गई है कि जो हमारा पड़ोसी मुल्क है, वो आतंकवाद का जन्मदाता है. पाकिस्तान आतंकवाद को प्रमोट करने की हर कोशिश करता रहा है. कश्मीर अंतरराष्ट्रीय मंचो पर एक विवादित विषय रहे... ऐसी पड़ोसी मुल्क की कोशिश है. मुझे लगता है कि हर फ्रंट पर उन्हें हताशा और निराशा मिली है.
श्रीनगर में जी-20 का आयोजन एक बड़ी चुनौती थी. पहली बार शायद हम कोई इंटरनेशनल समिट कर रहे थे. बर्फबारी भी इस बार ज्यादा हुई. ऐसे में हमें इवेंट के लिए सिर्फ अप्रैल में काम करने का मौका मिला था. मुझे खुशी इस बात की है कि जो भी डेलीगेट्स आए, वो अच्छी यादें लेकर के गए हैं. डेलिगेट्स ने अपने-अपने देशों में जाकर श्रीनगर में हुए जी-20 समिट की तारीफ भी की है. आपको मालूम है कि 32 साल से कश्मीर की स्थिति के कारण दुनिया के देशों ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी कर रखी है. उम्मीद है कि कश्मीर की बदलती तस्वीर को देखने के बाद वो यात्रा प्रतिबंध हटा देंगे.
इसका मतलब आने वाले समय में बहुत सारे देशों की तरफ से एडवाइजरी आएगी कि अब उनके नागरिक जम्मू-कश्मीर जा सकते हैं?
मैं समझता हूं कि ऐसा होना चाहिए. ऐसा होगा. जी-20 के आयोजन की सफलता में ही बड़ा संदेश छिपा हुआ है.
आपने टूरिज्म के विकास के बारे में थोड़ी चर्चा की. मुझे लगता है कि थोड़ा और विस्तार से बात करनी चाहिए. ओवरऑल डेवलपमेंट का जो फोकस है.. इंफ्रास्ट्रक्चर, नए निवेश और विकास परियोजनाएं... आप इसपर क्या कहेंगे?
मोटे तौर पर अगर मैं कहूं तो इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो. कनेक्टिविटी बेहतर हो. ये किसी भी स्थान के विकास की प्राथमिक जरूरत है. आज लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर में चल रहे हैं. ये परियोजनाएं पीएम मोदी के कारण चल रही हैं. जब मैं 2020 में आया था, जब जम्मू से श्रीनगर आने में 10 घंटे लगते थे. अब 5 घंटे में लोग आसानी से आ पा रहे हैं. रेलवे से कश्मीर, कन्याकुमारी से इसी साल जुड़ने जा रहा है. अच्छी सड़क से भी कश्मीर जुड़ रहा है. एयर कनेक्टिविटी भी बेहतर हो गई है. पावर एक बड़ी समस्या थी. जिसमें सुधार किया गया है. ट्रांसमिशन में भी बदलाव हुए हैं. केंद्र शासित प्रदेश पीएम ग्राम सड़क योजना में तीसरे स्थान पर है, जहां प्रतिदिन छह से 20 किमी सड़क बनाई जा रही है... बिजली एक बड़ा मुद्दा था लेकिन 3.5 साल में बिजली उत्पादन दोगुना हो जाएगा. हर घर तक पाइप से पानी पहुंचाने की दिशा में भी बड़े पैमाने पर प्रगति हो रही है. स्वास्थ्य के मोर्चे पर, जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय औसत से ऊपर प्रदर्शन कर रहा है. नए एम्स, कैंसर संस्थान, मेडिकल कॉलेज बन रहे हैं.
अभी कितनी योजनाएं जमीन पर हैं. इससे कितनी नौकरियां पैदा होंगी?
केंद्र की नई औद्योगिक योजना के तहत 26000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं आज जमीन पर हैं. 75000 करोड़ से अधिक का निवेश आएगा, जिससे 5 लाख से अधिक नौकरियां पैदा होंगी. आज जो इंसेंटिव जम्मू-कश्मीर में है, वो देश के किसी राज्य में नहीं है. दूसरे राज्यों के मुकाबले यहां जीएसटी पर 300 फीसदी इंसेंटिव है.
सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में नौकरियों की क्या स्थिति है? इस चुनौती को हम कैसे पार कर पाएंगे?
ये सच है कि पहले कुल 13-14 करोड़ का इंवेस्टमेंट था. इंडस्ट्री कम थी. उस क्षेत्र में रोजगार के ज्यादा साधन नहीं थे. सरकारी नौकरी पर ही लोग आश्रित थे. अब सरकारी नौकरी की सीमाएं हैं. यहां एक करोड़ 30-35 लाख की आबादी है. बड़े राज्यों से आप अगर तुलना करते हैं, तो यहां सरकारी नौकरियां काफी हैं और ज्यादा हैं. लेकिन सरकारी नौकरी से ही सबको रोजगार नहीं दिया जा सकता है. अब इंडस्ट्री और कृषि में रोजगार मिलेगा. स्व रोजगार पर हमने बड़ा जोर दिया है.
एक बैक टू विलेज कार्यक्रम चला रहे हैं. इसके तहत अफसर गांव-गांव जाकर लोगों की दिक्कतें सुनते हैं. अभी तक इसके चार कार्यक्रम हो चुके हैं. इस कार्यक्रम के तहत हर पंचायत से 15 नौजवानों को आइडेंटिफाई किया जाता है. ऐसे युवा जो स्व रोजगार में रूचि रखते हैं. प्रशासन ऐसे युवाओं को ट्रेनिंग देता है और फंड उपलब्ध कराता है. बैक टू विलेज के तहत 75 हजार युवाओं को स्व रोजगार के लिए आर्थिक मदद दी गई है.
विषय को अगर थोड़ा बदले, तो यहां का आपका टास्क पूरा हो चुका है. क्या देश के दूसरे लेवल पर भी आपकी सेवाएं ली जानी चाहिए?
मुझे लगता है कि जो भी काम व्यक्ति को मिले हैं, उसको निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए. मुझे ये काम पीएम मोदी ने दिया था. मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश कर रहा हूं. मुझे लगता है कि जम्मू-कश्मीर में मुझे जो काम मिला है, उसे अच्छे ढंग से अंजाम देना मेरी आज की सर्वोच्च प्राथमिकता है. भविष्य में क्या होगा देखा जाएगा. मैं पूरे मन और तन से यहीं रहता हूं. आगे भी यहीं डटा रहूंगा.
जम्मू-कश्मीर में चुनाव कब होंगे?
चुनाव तो तय समय पर होंगे. जितने संसद सीटें हैं, उतने पर चुनाव होगा. लोकसभा चुनाव अभी आएगा. पहली बार हमने यहां थ्री टियर पंचायत सिस्टम बनाया है. फंड और फंक्शन दोनों ट्रांसफर कर दिए गए हैं. देर से यहां व्यवस्था लागू हो रही है, लेकिन एक जिम्मेदार व्यवस्था लागू होगी. देश के किसी राज्य से जम्मू-कश्मीर पीछे नहीं है. 35 हजार का जनता की राय से किए जा रहे हैं.
आपका संकेत विधानसभा चुनाव की ओर है, तो मैं बता दूं कि देश की संसद में गृहमंत्री ने एक भरोसा दिया था. पीएम मोदी ने भी अपने संबोधन में देश को भरोसा दिया था. उन्होंने कहा था कि दिल्ली में नेशन फर्स्ट, असेंबली इलेक्शन सेकेंड. स्टेटहूड एक तय समय पर आएगा. स्वभाविक रूप से लद्दाख अलग हो गया था. सात विधानसभा सीटें बढ़ गई थीं. सात विधानसभा सीटों की और बाकी सीटों की बाउंड्री क्या होगी, इसे तो भारत का निर्वाचन आयोग ही तय करता है. इसे करने में वक्त लगता है. अब मतदाता सूची पर काम हो रहा है. निर्वाचन आयोग निष्पक्ष रूप से काम कर रहा है. उम्मीद है जल्द चुनाव की तारीखें तय हो जाएंगी.
आपने कश्मीर में कैसे प्रशासन चलाया? कैसी मुश्किलें आईं?
मुझे लगता है कि कश्मीर में प्रशासन चलाना कोई रॉकेट साइंस (मुश्किल काम) नहीं है. अगर सामान्य तरीके से आप लोगों से संवाद स्थापित करते हैं. आपके फैसले और आपकी नीतियों में आम आदमी फोकस में है. उसके जीवन का हित फोकस में है, तो मुझे लगता है कि यहां प्रशासन चलाना कोई मुश्किल काम नहीं है. इस यात्रा में मेरे जो सहयोगी हैं, मैं इसके लिए उनका भी धन्यवाद देना चाहूंगा.
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