1971 के युद्ध के दौरान विंग कमांडर सेसिल पार्कर के नेतृत्व में 20 स्क्वाड्रन के 20 जवान
नई दिल्ली:
भारतीय वायुसेना के इतिहास में सबसे सफल ग्राउंड अटैक मिशन में से एक में नये डिटेल सामने आने के बाद रक्षा क्षेत्र के दो दिग्गजों का मानना है कि वायुसेना मुख्यालय को आईएएफ यानी भारतीय वायुसेना की उस फाइल को दोबारा खोलने की जरूरत है. जिसमें 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के मुरीद एयरबेस में 'स्ट्राइक मिशन' को अंजाम दिया था. इस हमले में भारतीय वायुसेना के कुछ पायलटों ने वीरता भरा कार्य किया, मगर उन्हें कभी इस साहसी कार्य के लिए क्रेडिट नहीं दिया गया और न ही कोई सम्मान मिला.
पाकिस्तान के लिडिंग सैन्य विमानन इतिहासकार एयर कमोडोर एम कैसर टुफ़ेल (सेवानिवृत्त) ने अपनी नई किताब, 'इन द रिंग एंड ऑन इट्स फीट- पाकिस्तान एयर फोर्स इन द 1971 इंडो-पाक वॉर' में कहा है कि भारतीय वायुसेना के 20 स्क्वाड्रन के हंटर फाइटर जेट ने 8 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के मुरीद में जमीन पर 5 पाकिस्तानी एयरफोर्स एफ -86 सेब्रे फाइटर का सफाया कर दिया था.
जैसा कि एनडीटीवी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि पाकिस्तानी रिकॉर्ड में दर्ज है कि पाकिस्तानी एयरबेस पर भारतीय वायुसेना के एक हमले में कभी भी इतने अधिक दुश्मन विमान तहस-नहस नहीं हुए. मगर भारतीय वायुसेना द्वारा कभी पर्याप्त रूप से इस फैक्ट को मान्यता भी नहीं मिली.
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1971 के युद्ध के दौरान पठानकोट स्थित 20 स्क्वाड्रन के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर एयर वाइस मार्शल सेसिल पार्कर (सेवानिवृत्त) टुफेल की पुस्तक में छपे डिटेल के जवाब में कहते हैं कि 8 दिसंबर 1971 को मुरीद में पाकिस्तानी एयरफोर्स के 5 सब्रे विमान के नुकसान के मद्देनजर, उन लोगों को मिशन 113 के लिए श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए और आईएएफ के किसी भी आधिकारिक इतिहास में 20 स्क्वाड्रन के आंकड़े में उन्हें शामिल किया जाना चाहिए.
पार्कर भारतीय वायुसेना के साधारण अधिकारी नहीं हैं. भारत में दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सजावट महावीर चक्र से सम्मानित हो चुके हैं. 1971 युद्ध के दौरान पार्कर ने एक दुश्मन के सब्रे लड़ाकु विमान को भी मार गिराया था और पाकिस्तानी तेल रिफाइनरी पर हमला कर एक अन्य को भारी नुकसान पहुंचाया था.
पार्कर के मुताबिक, "मेरा मानना है कि एयरफोर्स मुख्यालय में पुरस्कार समिति ने महसूस किया कि कई पुरस्कार एक इकाई में जा रहे थे, अर्थात् 20 स्क्वाड्रन. मैं इसमें जोड़ना चाहुंगा कि मेरी सिफारिशों में से दो तिहाई नाम स्वीकार किए गये थे, लेकिन एक तिहाई सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया जिसमें ढिल्लों, मुरलीधरन और हेबल के नाम शामिल थे.
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पार्कर के मुताबिक, फ्लाइंग ऑफिसर वीके हेबल, स्क्वाड्रन लीडर आर.एन. भारद्वाज, फ्लाइंग ऑफिसर बी.सी. करांबाया और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ए.एल. देवसकर आदि के साथ उस ऑपरेशन वाले दिन साथ में थे, जब भारतीय वायुसेना के हंटर से मुरीद में हमला किया गया था. 1971 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद से भारतीय वायुसेना का साथ छोड़ने के कुछ साल बाद हेबल की मौत मुंबई के नजदीक इंडियन एयरलाइन्स क्रैश में हो गई थी. बीसी कारांबाया के मुताबिक, हेबल ने दावा किया कि उन्होंने पाकिस्तान के प्वाइंटेड नोज एयरक्राफ्ट पर अपने गन से हमला किया था, जब भारतीय हंटर्स बम और मशीन गन से हमले कर रहे थे.
बता दें कि पाकिस्तानी वायुसेना में प्वाइंटेड नोज फाइटर्स, फ्रांस में बना मिराज 3 और अमेरिकी में बना एफ-104 स्टारफाइटर के समय से शामिल था. 1971 के दौरान पाकिस्तान के पास उन्नत लड़ाकू विमान थे, जो 1961 के बाद अमेरिका और जॉर्डन से सीमित संख्या में उसे मिले थे.
चूंकि, पाकिस्तानी रिकॉर्ड में कहीं भी 8 दिसंबर को हुए मुरीद हमले में हुए दोनों नुकसान का जिक्र नहीं है. जबकि यह एक दम संभव है कि हेबल ने पांच एफ-86 सब्रे फाइटर विमान में से एक को उस दिन तबाह कर दिया था. मगर रिकॉर्ड नहीं होने की वजह से अभी तक हेबल को 1971 में अहम योगदान के लिए वीरता पुरस्कार नहीं मिला है.
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पार्कर का समर्थन करने वाले हुए पूर्व मुख्य नवल एडमिरल अधिकारी अरुण प्रकाश का मानना है कि भारतीय वायुसेना को फिर से 8 दिसंबर 1971 को हुए मुरीद ऑपरेशन की फाइल को खोलनी चाहिए. बता दें कि अरुण प्रकाश 1971 में युद्ध के दौरान 20 स्कार्ड्रन में तैनात थे.
1971 में शौर्य के लिए वीर चक्र से सम्मानित प्रकाश ने हमले से एक दिन पहले 20 स्क्वाड्रन हंटर द्वारा एक और वीरतापूर्ण रेड में मुरीद पर हमला किया था. साथ ही उन्होंने स्क्वाड्रन की डायरी को मेंटेन रखने का कार्य किया था. इस डायरी में डे टू डे ऑपरेशन के विवरण होते थे. एडमिरल प्रकाश कहते हैं, मुझे इस बात का दुख है कि तुफेल जिस पांच फाइटर सेब्रे का जिक्र कर रहे हैं, उन्हें मैं अपने रिकॉर्ड में शामिल नहीं कर पाया था.
हालांकि, 1971 के दौरान अपने कुछ पायलटों की भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए भारतीय वायुसेना इसके खिलाफ नहीं थी. बता दें कि 1988 में 1965 भारत-पाक युद्ध के 23 साल बाद, भारतीय वायुसेना ने जॉन फ्रिकर की किताब "बैटल फॉर पाकिस्तान" में प्रकाशित एक अकाउंट के बाद स्क्वाड्रन लीडर एबी देवैया को महावीर चक्र से मरणोपरांत से सम्मानित किया था.
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पाकिस्तान के लिडिंग सैन्य विमानन इतिहासकार एयर कमोडोर एम कैसर टुफ़ेल (सेवानिवृत्त) ने अपनी नई किताब, 'इन द रिंग एंड ऑन इट्स फीट- पाकिस्तान एयर फोर्स इन द 1971 इंडो-पाक वॉर' में कहा है कि भारतीय वायुसेना के 20 स्क्वाड्रन के हंटर फाइटर जेट ने 8 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के मुरीद में जमीन पर 5 पाकिस्तानी एयरफोर्स एफ -86 सेब्रे फाइटर का सफाया कर दिया था.
जैसा कि एनडीटीवी ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि पाकिस्तानी रिकॉर्ड में दर्ज है कि पाकिस्तानी एयरबेस पर भारतीय वायुसेना के एक हमले में कभी भी इतने अधिक दुश्मन विमान तहस-नहस नहीं हुए. मगर भारतीय वायुसेना द्वारा कभी पर्याप्त रूप से इस फैक्ट को मान्यता भी नहीं मिली.
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1971 के युद्ध के दौरान पठानकोट स्थित 20 स्क्वाड्रन के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर एयर वाइस मार्शल सेसिल पार्कर (सेवानिवृत्त) टुफेल की पुस्तक में छपे डिटेल के जवाब में कहते हैं कि 8 दिसंबर 1971 को मुरीद में पाकिस्तानी एयरफोर्स के 5 सब्रे विमान के नुकसान के मद्देनजर, उन लोगों को मिशन 113 के लिए श्रेय जरूर दिया जाना चाहिए और आईएएफ के किसी भी आधिकारिक इतिहास में 20 स्क्वाड्रन के आंकड़े में उन्हें शामिल किया जाना चाहिए.
पार्कर भारतीय वायुसेना के साधारण अधिकारी नहीं हैं. भारत में दूसरा सबसे बड़ा सैन्य सजावट महावीर चक्र से सम्मानित हो चुके हैं. 1971 युद्ध के दौरान पार्कर ने एक दुश्मन के सब्रे लड़ाकु विमान को भी मार गिराया था और पाकिस्तानी तेल रिफाइनरी पर हमला कर एक अन्य को भारी नुकसान पहुंचाया था.
पार्कर के मुताबिक, "मेरा मानना है कि एयरफोर्स मुख्यालय में पुरस्कार समिति ने महसूस किया कि कई पुरस्कार एक इकाई में जा रहे थे, अर्थात् 20 स्क्वाड्रन. मैं इसमें जोड़ना चाहुंगा कि मेरी सिफारिशों में से दो तिहाई नाम स्वीकार किए गये थे, लेकिन एक तिहाई सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया जिसमें ढिल्लों, मुरलीधरन और हेबल के नाम शामिल थे.
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पार्कर के मुताबिक, फ्लाइंग ऑफिसर वीके हेबल, स्क्वाड्रन लीडर आर.एन. भारद्वाज, फ्लाइंग ऑफिसर बी.सी. करांबाया और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ए.एल. देवसकर आदि के साथ उस ऑपरेशन वाले दिन साथ में थे, जब भारतीय वायुसेना के हंटर से मुरीद में हमला किया गया था. 1971 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के पद से भारतीय वायुसेना का साथ छोड़ने के कुछ साल बाद हेबल की मौत मुंबई के नजदीक इंडियन एयरलाइन्स क्रैश में हो गई थी. बीसी कारांबाया के मुताबिक, हेबल ने दावा किया कि उन्होंने पाकिस्तान के प्वाइंटेड नोज एयरक्राफ्ट पर अपने गन से हमला किया था, जब भारतीय हंटर्स बम और मशीन गन से हमले कर रहे थे.
बता दें कि पाकिस्तानी वायुसेना में प्वाइंटेड नोज फाइटर्स, फ्रांस में बना मिराज 3 और अमेरिकी में बना एफ-104 स्टारफाइटर के समय से शामिल था. 1971 के दौरान पाकिस्तान के पास उन्नत लड़ाकू विमान थे, जो 1961 के बाद अमेरिका और जॉर्डन से सीमित संख्या में उसे मिले थे.
चूंकि, पाकिस्तानी रिकॉर्ड में कहीं भी 8 दिसंबर को हुए मुरीद हमले में हुए दोनों नुकसान का जिक्र नहीं है. जबकि यह एक दम संभव है कि हेबल ने पांच एफ-86 सब्रे फाइटर विमान में से एक को उस दिन तबाह कर दिया था. मगर रिकॉर्ड नहीं होने की वजह से अभी तक हेबल को 1971 में अहम योगदान के लिए वीरता पुरस्कार नहीं मिला है.
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पार्कर का समर्थन करने वाले हुए पूर्व मुख्य नवल एडमिरल अधिकारी अरुण प्रकाश का मानना है कि भारतीय वायुसेना को फिर से 8 दिसंबर 1971 को हुए मुरीद ऑपरेशन की फाइल को खोलनी चाहिए. बता दें कि अरुण प्रकाश 1971 में युद्ध के दौरान 20 स्कार्ड्रन में तैनात थे.
1971 में शौर्य के लिए वीर चक्र से सम्मानित प्रकाश ने हमले से एक दिन पहले 20 स्क्वाड्रन हंटर द्वारा एक और वीरतापूर्ण रेड में मुरीद पर हमला किया था. साथ ही उन्होंने स्क्वाड्रन की डायरी को मेंटेन रखने का कार्य किया था. इस डायरी में डे टू डे ऑपरेशन के विवरण होते थे. एडमिरल प्रकाश कहते हैं, मुझे इस बात का दुख है कि तुफेल जिस पांच फाइटर सेब्रे का जिक्र कर रहे हैं, उन्हें मैं अपने रिकॉर्ड में शामिल नहीं कर पाया था.
हालांकि, 1971 के दौरान अपने कुछ पायलटों की भूमिका पर पुनर्विचार करने के लिए भारतीय वायुसेना इसके खिलाफ नहीं थी. बता दें कि 1988 में 1965 भारत-पाक युद्ध के 23 साल बाद, भारतीय वायुसेना ने जॉन फ्रिकर की किताब "बैटल फॉर पाकिस्तान" में प्रकाशित एक अकाउंट के बाद स्क्वाड्रन लीडर एबी देवैया को महावीर चक्र से मरणोपरांत से सम्मानित किया था.
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