वक्त बीतते जाने के साथ देश में सूखे की तस्वीर और भी चिंताजनक होती जा रही है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश का काफी बड़ा हिस्सा सूखे की कगार पर है, जिसके बाद सरकार पर राहत योजनाएं शुरू करने का दबाव बढ़ने लगा है।
कमजोर मॉनसून की वजह से देश के 12 राज्यों के जबरदस्त सूखे की चपेट में आने की आशंका है। मौसम विभाग की सूखा रिसर्च यूनिट की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब, हरियाणा के ज्यादातर हिस्से, पूर्वी-पश्चिमी राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा देश के कुछ और हिस्से में भी सूखे का साया मंडरा रहा है।
एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक इस साल 11 जुलाई तक देश भर में खरीफ फसलों की बुवाई औसत से 140 लाख हेक्टयर कम जमीन पर हुई है। इसके साथ ही सरकार पर प्रभावित राज्यों में राहत योजनाएं शुरू करने का दबाव भी बढ़ने लगा है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मांग की है कि प्रभावित राज्यों में खाद और बीज की सप्लाई के लिए राशि आवंटित की जानी चाहिए।
कमजोर मॉनसून की मार देशभर में पड़ती दिख रही है। ऐसे में सरकार आपात योजनाओं के दावे कर रही है, लेकिन इन आपात योजनाओं की हकीकत चौंकाने वाली है। महाराष्ट्र में सरकार का दावा है कि खराब मॉनसून की हालत से निबटने के लिए उसके पास आपात योजनाएं तैयार हैं, लेकिन राज्य के बड़े कृषि अधिकारी दत्तात्रेय गायकवाड इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि आपात योजना के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है, सिवाय किसानों को सलाह जारी करने के कि वे क्या उपजाएं।
वहीं किसानों के आत्महत्या के लिए बदनाम विदर्भ में भी हालत अच्छी नहीं है। एक तो मॉनसून डेढ़ महीने लेट और ऊपर से 70 फीसदी कम बारिश... जमीन खाली हैं और किसान हताश। जमीन बेचकर खेती छोड़ने की बात करने वाले इन किसानों को सरकार की तरफ से भी कोई सहारा नहीं है।
गुजरात में भी बारिश की कमी ने एक नई फिक्र पैदा कर दी है। खेती के लिए पानी मिल नहीं रहा है, ऐसे में किसान कहीं नहर और बांधों से पानी न लें, इसके लिए सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया गया है। वजह यह है कि अब पीने के लिए पानी का भंडार भी औसत से कहीं कम रह गया है। हालत चिंताजनक है। कच्छ के इलाके में तो सिर्फ छह फीसदी पानी बचा है।
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