सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कानून (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली तीन महिलाओं की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना है यह महिलाओं का अधिकार है कि वह बच्चे को पैदा करना चाहती हैं या नहीं. उनका कहना है कि कानून के प्रतिबंध से गर्भपात, स्वास्थ्य, बच्चे पैदा करने व महिलाओं की निजता का अधिकार प्रभावित होता है.
पीठ ने इस मामले को राष्ट्रीय महत्व का बताते हुए सुनवाई करने का निर्णय लिया है. श्वेता अग्रवाल, गरिमा सेकसरिया और प्राची वत्स द्वारा दाखिल इस याचिका पर पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है. याचिका में कहा गया कि महिलाओं को अपनी मर्जी से बच्चे पैदा करने की इजाजत दी जाए. साथ ही गर्भपात को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया जाए.
याचिकाकर्ता महिलाओं ने एमटीपी एक्ट की धारा-3 (2) को असंवैधानिक करार देने की गुहार लगाई है. इस प्रावधान के तहत गर्भधारण के 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं है. यह जरूर है कि अगर महिला की जान का खतरा हो तो 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराने की इजाजत दी जा सकती है.
याचिका में कहा गया कि यह प्रावधान संविधान के समानता के अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है.