जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा
नई दिल्ली:
एक ओर प्रधानमंत्री कार्यालय कश्मीर में तनाव का शांतिपूर्ण हल तलाश करने में लगातार जुटा हुआ है, लेकिन साथ ही वह जम्मू एवं कश्मीर में भेजे जाने के लिए नया राज्यपाल भी तलाश कर रही है.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सरकार मौजूदा राज्यपाल एनएन वोहरा के स्थान पर भेजे जाने के लिए नया चेहरा चुनने का काम बहुत ध्यान से करना होगा, और उन्होंने ज़ोर देकर यह भी कहा कि इस बदलाव को एनएन वोहरा के कार्यकाल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
दिल्ली में बैठे एक मंत्री ने कहा, "वह (एनएन वोहरा) बेहद तजुर्बेकार हैं... उन्होंने बेहद अच्छा काम किया है... उन्हें इस बात का श्रेय भी मिलना चाहिए कि कश्मीर में लंबे समय तक शांति बनी रही, विशेष रूप से अनिश्चितता के उन दिनों में, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का पद पर रहने के दौरान निधन हो गया था, और उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर फैसला करने में कई हफ्ते लगा दिए थे..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएन वोहरा को बदले जाने की ज़रूरत पर सबसे पहले चर्चा 18 अगस्त को वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ की थी, जबकि राज्य में सत्ता में भागीदार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती का कहना था कि उनकी पार्टी कश्मीर घाटी में जनाधार खोती जा रही है, जहां से उन्हें वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शानदार बहुमत हासिल हुआ था.
कश्मीर मामले से निपटने में जुटे हुए एक मंत्री के मुताबिक, "केंद्र को गवर्नर हाउस में एक नए व्यक्ति की आवश्यकता है... ताकि राज्य सरकार को मौजूदा संकट से निपटने में मदद मिल सके, और यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार दृष्टिकोण और रणनीति के मामले में पिछड़े नहीं... और इसके अलावा वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो राजनैतिक संकट उत्पन्न होने की स्थिति में केंद्र के सटीक दूत सिद्ध हों..."
जिन नामों पर चर्चा जारी है, उनमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) भुवनचंद्र खंडूरी भी शामिल हैं. वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में मंत्री थे, और उन्हें प्रधानमंत्री की हाईवे परियोजना के लिए सख्ती से काम करवाने वाले के रूप में जाना जाता था. लेकिन उनकी उम्र 81 वर्ष है, जिसे बड़े अड़ंगे के रूप में देखा जा रहा है.
पूर्व गृहसचिव अनिल बैजल भी संभावितों की सूची में शामिल हैं. वह विवेकानंद फाउंडेशन का हिस्सा रह चुके हैं, जो बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा थिंकटैंक है.
इन दोनों के अतिरिक्त दो और पूर्व जनरल हैं, जिनके नामों में पर चर्चा की जा रही है - लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (जो श्रीनगर स्थित 15 कॉर्प्स के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग रह चुके हैं), जिन्हें कश्मीर की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का प्रत्यक्ष अनुभव है, तथा दूसरे हैं जनरल वेदप्रकाश मलिक, जो वर्ष 1999 के करगिल युद्ध के दौरान भारती थलसेना के अध्यक्ष थे.
सूत्रों के मुताबिक, चर्चा में कुछ अन्य नाम भी शामिल हैं, लेकिन फिलहाल सिर्फ यही निश्चित है कि इस मुद्दे पर निर्णय प्रधानमंत्री स्वयं करेंगे. इस तरह की अटकलें हैं कि प्रधानमंत्री जम्मू एवं कश्मीर में भेजने के लिए किसी ऐसे शख्स का चुनाव करेंगे, जिसका आरएसएस से प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध हो.
सूत्रों का कहना है कि सरकार किसी पूर्व सेनाधिकारी को भेजने की इच्छुक नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि किसी नागरिक अधिकारी को भेजे जाने से सरकार के रुख में नर्मी के संकेत जाएंगे, और यही सरकार चाहती है, ताकि लोगों तक पहुंच बनाने में आसानी हो.
8 जुलाई को घाटी में हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर में जारी हिंसा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षाबलों पर कई बार हमले किए हैं. संघर्षों में अब तक लगभग 70 जानें जा चुकी हैं, और 10,000 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. पिछले 52 दिन से घाटी में लागू कर्फ्यू भी आज ही (सोमवार को ही) हटाया गया है.
वैसे, एनएन वोहरा 15 वर्षों में पहले ऐसे गवर्नर हैं, जिनकी फौजी पृष्ठभूमि नही है. उनकी नियुक्ति कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वर्ष 2008 में की थी, और फिर वर्ष 2013 में उन्हें दोबारा नियुक्त किया गया.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सरकार मौजूदा राज्यपाल एनएन वोहरा के स्थान पर भेजे जाने के लिए नया चेहरा चुनने का काम बहुत ध्यान से करना होगा, और उन्होंने ज़ोर देकर यह भी कहा कि इस बदलाव को एनएन वोहरा के कार्यकाल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
दिल्ली में बैठे एक मंत्री ने कहा, "वह (एनएन वोहरा) बेहद तजुर्बेकार हैं... उन्होंने बेहद अच्छा काम किया है... उन्हें इस बात का श्रेय भी मिलना चाहिए कि कश्मीर में लंबे समय तक शांति बनी रही, विशेष रूप से अनिश्चितता के उन दिनों में, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का पद पर रहने के दौरान निधन हो गया था, और उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर फैसला करने में कई हफ्ते लगा दिए थे..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनएन वोहरा को बदले जाने की ज़रूरत पर सबसे पहले चर्चा 18 अगस्त को वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ की थी, जबकि राज्य में सत्ता में भागीदार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती का कहना था कि उनकी पार्टी कश्मीर घाटी में जनाधार खोती जा रही है, जहां से उन्हें वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान शानदार बहुमत हासिल हुआ था.
कश्मीर मामले से निपटने में जुटे हुए एक मंत्री के मुताबिक, "केंद्र को गवर्नर हाउस में एक नए व्यक्ति की आवश्यकता है... ताकि राज्य सरकार को मौजूदा संकट से निपटने में मदद मिल सके, और यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार दृष्टिकोण और रणनीति के मामले में पिछड़े नहीं... और इसके अलावा वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो राजनैतिक संकट उत्पन्न होने की स्थिति में केंद्र के सटीक दूत सिद्ध हों..."
जिन नामों पर चर्चा जारी है, उनमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) भुवनचंद्र खंडूरी भी शामिल हैं. वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में मंत्री थे, और उन्हें प्रधानमंत्री की हाईवे परियोजना के लिए सख्ती से काम करवाने वाले के रूप में जाना जाता था. लेकिन उनकी उम्र 81 वर्ष है, जिसे बड़े अड़ंगे के रूप में देखा जा रहा है.
पूर्व गृहसचिव अनिल बैजल भी संभावितों की सूची में शामिल हैं. वह विवेकानंद फाउंडेशन का हिस्सा रह चुके हैं, जो बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ा थिंकटैंक है.
इन दोनों के अतिरिक्त दो और पूर्व जनरल हैं, जिनके नामों में पर चर्चा की जा रही है - लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (जो श्रीनगर स्थित 15 कॉर्प्स के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग रह चुके हैं), जिन्हें कश्मीर की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का प्रत्यक्ष अनुभव है, तथा दूसरे हैं जनरल वेदप्रकाश मलिक, जो वर्ष 1999 के करगिल युद्ध के दौरान भारती थलसेना के अध्यक्ष थे.
सूत्रों के मुताबिक, चर्चा में कुछ अन्य नाम भी शामिल हैं, लेकिन फिलहाल सिर्फ यही निश्चित है कि इस मुद्दे पर निर्णय प्रधानमंत्री स्वयं करेंगे. इस तरह की अटकलें हैं कि प्रधानमंत्री जम्मू एवं कश्मीर में भेजने के लिए किसी ऐसे शख्स का चुनाव करेंगे, जिसका आरएसएस से प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध हो.
सूत्रों का कहना है कि सरकार किसी पूर्व सेनाधिकारी को भेजने की इच्छुक नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि किसी नागरिक अधिकारी को भेजे जाने से सरकार के रुख में नर्मी के संकेत जाएंगे, और यही सरकार चाहती है, ताकि लोगों तक पहुंच बनाने में आसानी हो.
8 जुलाई को घाटी में हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से कश्मीर में जारी हिंसा के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षाबलों पर कई बार हमले किए हैं. संघर्षों में अब तक लगभग 70 जानें जा चुकी हैं, और 10,000 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. पिछले 52 दिन से घाटी में लागू कर्फ्यू भी आज ही (सोमवार को ही) हटाया गया है.
वैसे, एनएन वोहरा 15 वर्षों में पहले ऐसे गवर्नर हैं, जिनकी फौजी पृष्ठभूमि नही है. उनकी नियुक्ति कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वर्ष 2008 में की थी, और फिर वर्ष 2013 में उन्हें दोबारा नियुक्त किया गया.
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