भारतीय सेना का प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
15 लाख सैनिकों से सुसज्जित भारतीय सेना विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना है। लेकिन अब इसमें भारी कटौती होने जा रही है। रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर के नेतृत्व में 11 सदस्यीय कमेटी गठित की है।
एनडीटीवी को सूत्रों ने बताया कि कमेटी अगस्त तक अपनी रिपोर्ट जमा कर देगी जिसमें उसे ये देखना है कि भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना में कहां सैनिकों या कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है और कहां कटौती की जा सकती है। कमेटी को उन क्षेत्रों की पहचान करनी है जहां "श्रमशक्ति" को और अधिक तर्कसंगत बनाया जा सके। कमेटी अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी करेगी कि कैसे तकनीकी का प्रयोग करते हुए मैदान में युद्ध के दौरान सैनिकों की संख्या को बेहतर तरीके से कम किया जा सकता है।
आखिर क्यों जरुरत पड़ गई सरकार को इस कवायद की?
इस कवायद की जरुरत हो गई है क्योंकि सरकार का राजस्व व्यय, पेंशन और वेतन का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। इस वित्तवर्ष में पेंशन बिल 82,000 करोड़ हो गया है जो पिछले साल की तुलना में 12,000 करोड़ ज्यादा है। वेतन, पेंशन और राजस्व व्यय तीनों को मिलाकर नए हथियार खरीदने के लिए उपलब्ध राशि से कहीं अधिक है और राजस्व व्यय में बढ़ोत्तरी को देखते हुए आने वाले सालों में इसके और अधिक बढ़ने की सम्भावना है।
तेजी से बढ़ता ही जा रहा है रक्षा खर्च
एनडीटीवी को भूतपूर्व एवं सम्मान्नीय रक्षा लेखा अधिकारी अमित कौशिश ने बताया"जहां तक मुझे याद है,1982 में पेंशन बिल लगभग 300 करोड़ था 1992 में ये बढ़ कर 12000 करोड़ हो गया और पिछले साल 2015-16 में ये 60.000 करोड़ हो गया है। हर साल एक बहुत बड़े अंतर की राशि मांगी जाती है और आवंटित भी कर दी जाती है। मुझे नहीं लगता कि रक्षा मंत्रालय के लिए इस बढ़ोत्तरी का बोझ उठाना सम्भव है।
इस बढ़ते खर्च की वजह 'माऊंटेन स्ट्राइक कोर्प्स' यानि पर्वतों में तैनात सेना पर खर्च है जो खासतौर पर चीन से सुरक्षा के लिए किया जाता है। अभी लगभग 80,000 और सैनिकों की आवश्यकता है जिसकी लागत 60,000 करोड़ से भी अघिक होगी। "माऊंटेन स्ट्राइक कोर्प्स की मुख्य समस्या पूंजी में कमी है और ऐसे में साइबर कमान और सपेस कमान जैसी बातें तो भूल ही जाइये।" कौशिक ने कहा।
एनडीटीवी को सूत्रों ने बताया कि कमेटी अगस्त तक अपनी रिपोर्ट जमा कर देगी जिसमें उसे ये देखना है कि भारतीय सेना, नौसेना, और वायुसेना में कहां सैनिकों या कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है और कहां कटौती की जा सकती है। कमेटी को उन क्षेत्रों की पहचान करनी है जहां "श्रमशक्ति" को और अधिक तर्कसंगत बनाया जा सके। कमेटी अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी करेगी कि कैसे तकनीकी का प्रयोग करते हुए मैदान में युद्ध के दौरान सैनिकों की संख्या को बेहतर तरीके से कम किया जा सकता है।
आखिर क्यों जरुरत पड़ गई सरकार को इस कवायद की?
इस कवायद की जरुरत हो गई है क्योंकि सरकार का राजस्व व्यय, पेंशन और वेतन का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। इस वित्तवर्ष में पेंशन बिल 82,000 करोड़ हो गया है जो पिछले साल की तुलना में 12,000 करोड़ ज्यादा है। वेतन, पेंशन और राजस्व व्यय तीनों को मिलाकर नए हथियार खरीदने के लिए उपलब्ध राशि से कहीं अधिक है और राजस्व व्यय में बढ़ोत्तरी को देखते हुए आने वाले सालों में इसके और अधिक बढ़ने की सम्भावना है।
तेजी से बढ़ता ही जा रहा है रक्षा खर्च
एनडीटीवी को भूतपूर्व एवं सम्मान्नीय रक्षा लेखा अधिकारी अमित कौशिश ने बताया"जहां तक मुझे याद है,1982 में पेंशन बिल लगभग 300 करोड़ था 1992 में ये बढ़ कर 12000 करोड़ हो गया और पिछले साल 2015-16 में ये 60.000 करोड़ हो गया है। हर साल एक बहुत बड़े अंतर की राशि मांगी जाती है और आवंटित भी कर दी जाती है। मुझे नहीं लगता कि रक्षा मंत्रालय के लिए इस बढ़ोत्तरी का बोझ उठाना सम्भव है।
इस बढ़ते खर्च की वजह 'माऊंटेन स्ट्राइक कोर्प्स' यानि पर्वतों में तैनात सेना पर खर्च है जो खासतौर पर चीन से सुरक्षा के लिए किया जाता है। अभी लगभग 80,000 और सैनिकों की आवश्यकता है जिसकी लागत 60,000 करोड़ से भी अघिक होगी। "माऊंटेन स्ट्राइक कोर्प्स की मुख्य समस्या पूंजी में कमी है और ऐसे में साइबर कमान और सपेस कमान जैसी बातें तो भूल ही जाइये।" कौशिक ने कहा।
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