कांग्रेस-प्रशांत किशोर की वार्ता फिर क्यों विफल हो गई : जानें इनसाइड स्टोरी

सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस अपनी कमान किसी बाहरी व्यक्ति को देने के लिए इच्छुक नहीं थी और प्रशांत किशोर अपने हाथ बंधे होने को लेकर हिचकिचा रहे थे. 

नई दिल्ली:

ये तेलंगाना की बात नहीं थी, ये विचारधारा का मसला नहीं था. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Congress-Prashant Kishor) की 137 साल पुरानी पार्टी की खराब किस्मत को बदलने के लिए कांग्रेस से ताजा बातचीत स्पष्ट गतिरोध के कारण टूट गई. सूत्रों ने एनडीटीवी को ये जानकारी दी है. सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस अपनी कमान किसी बाहरी व्यक्ति को देने के लिए इच्छुक नहीं थी और प्रशांत किशोर अपने हाथ बंधे होने को लेकर हिचकिचा रहे थे.सूत्रों ने कहा कि 45 साल के प्रशांत किशोर कांग्रेस में बदलावों के लिए बिना किसी रोकटोक के काम करना चाहते थे और त्वरित बदलाव लाने की भूमिका चाहते थे.  कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व ने आखिरकार आमूलचूल बदलाव को लेकर खुद को चिंता में पाया और उसकी बजाय चरणबद्ध तरीके से बदलावों का पक्ष लिया. हालांकि पिछले साल से उलट जब वार्ता में गतिरोध आ गया था, इस बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में लिया और उनकी सलाह पर आगे बढी़ं. चुनाव में हार के लिए और भावी चुनावों में उनकी जीतउनकी जवाबदेही तय की.

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सूत्रों ने इन बातों को पुरजोर तरीके से खारिज किया कि प्रशांत किशोर के के. चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति या अन्य दलों के साथ संबंधों के कारण ये डील नहीं हो पाई. केसीआर ने उनके राजनीतिक सलाहकार से जुड़े संगठन I-PAC के साथ अगले साल चुनाव को लेकर समझौता किया था. एक नेता ने कहा, प्रशांत किशोर का पूर्व में बीजेपी या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनाव जीतने में की गई मदद का मुद्दा आड़े आ रहा था. उनका कहना था, मतभेद इस बात को लेकर था कि इन कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का प्लान कैसे लागू किया जाए. पीके बड़े बदलाव का वाहक बनना चाहते थे. लेकिन पार्टी चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ने को इच्छुक थी. कांग्रेस शुरुआत से ही किसी बाहरी व्यक्ति को अपनी बागडोर देने से हिचक रही थी.

सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच कई दौर की बातचीत, प्रस्तुतियों, विचार-विमर्श और किसी भी क्षण फैसले के संकेत मीडिया को भेजे जाने के बाद, मंगलवार को घोषणा की गई और इसमें किसी भी प्रकार की कोई कटुता नहीं दिखाई दी.तब कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर औपचारिक घोषणाएं कीं, लेकिन किसी भी तरह से कठोर शब्दों के इस्तेमाल से परहेज  करने का ध्यान रखा. 

धरातल पर कांग्रेस ने प्रशांत किशोर ने प्रशांत किशोर को वो पेशकश की, जो वो उसको पेश करने को तैयार थी, चर्चा के एक समूह में एक सदस्य के तौर पर हिस्सेदारी, जिसे एंपावर्ड ऐक्शन ग्रुप का नाम दिया गया. ऐसा प्रस्ताव जिसे प्रशांत किशोर ने त्वरित गति से और विनम्रता से ठुकरा दिया. 

ये घटनाक्रम दोनों पक्षों के बीच पिछले साल के असफल वार्ता के दौर की गूंज है, जब प्रशांत किशोर के अनुसार, वे बड़ा भरोसा जीतने में विफल रहे थे. उन्होंने एनडीटीवी से जनवरी में कहा था, दूसरों के लिए ऐसा प्रतीत हो सकता है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस को स्वाभाविक तौर पर एक साथ आकर काम करना चाहिए. लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को भरोसे का बड़ा कदम लेना होगा. यह कांग्रेस के भीतर नहीं हो पाया. उन्होंने कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के बयान की ही एक तरह से पुष्टि की. 

प्रशांत किशोर ने पहले कहा था, "मेरी तरफ से मेरा यूपी में उनके साथ काम करने का बुरा अनुभव है. लिहाजा मैं बेहद सशंकित था. मैं नहीं चाहता था कि हाथ बांधते हुए मैं इसमें शामिल होऊं... कांग्रेस नेतृत्व, मेरी पृष्ठभूमि के कारण, मैं उनके प्रति 100 फीसदी वफादार रहूंगा, इसको लेकर उनका सशंकित होना गलत भी नहीं था. "लेकिन वो एक बात को लेकर निश्चिंत थे कि बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस में व्यापक बदलाव जरूरी है. 

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