कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ बसपा मुखिया मायवती( फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए प्रस्तावित महागठबंधन को अभी से झटके पर झटके लग रहे हैं. संभावित महागठबंधन में प्रमुख घटक मानी जा रहीं बसपा मुखिया मायावती फिलहाल इससे दूरी बनाती दिख रहीं हैं. 24 घंटे के भीतर उन्होंने कांग्रेस को दो बड़े झटके देकर महागठबंधन की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 'हाथी की सवारी' कर कांग्रेस चुनाव में उतरने का सपना संजोए बैठी थी, मगर मायावती ने ऐन वक्त पर कांग्रेस के हाथ का साथ न देने का फैसला किया. छत्तीसगढ़ में जहां उन्होंने कांग्रेस के बागी नेता अजित जोगी का साथ देने का फैसला किया, वहीं मध्य प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की. कांग्रेस को लेकर मायावती के रुख में बदलाव उस वक्त से महसूस होने लगी थी, जब उन्होंने हाल में पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों का ठीकरा बीजेपी के साथ यूपीए सरकार पर भी फोड़ा था. उसी वक्त राजनीतिक विश्लेषकों ने मान लिया था कि बसपा मुखिया मायावती के इस बयान में कांग्रेस के लिए भविष्य की बड़ी चेतावनी छिपी है.
कांग्रेस से क्या ये है नाराजगी की वजह
कर्नाटक में कांग्रेस-जदएस गठबंधन से मुख्यमंत्री बने एचडी कुमारस्वामी का शपथग्रहण समारोह याद करिए. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा मुखिया मायावती की गले मिलती तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी.उन तस्वीरों में दोनों नेताओं के बीच अच्छे रिश्ते की झलक साफ दिख रही थी. मगर अब जाकर जिस तरह से मायावती ने पैतरे बदले हैं और एक के बाद एक फैसले ले रहीं हैं, उससे समझा जा रहा है कि मायावती कांग्रेस से कुछ नाराज हैं. इसके पीछे यूं तो कई वजहें बताई जाती हैं. मगर एक वजह यूपी के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी हैं.कभी मायावती के सबसे भरोसेमंद रहे और चंदे का हिसाब-किताब रखने वाले नसीमुद्दीन अब कांग्रेस का हिस्सा बन चुके हैं.
बसपा से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन ने मायावती पर टिकट बेचने समेत कई आरोप लगाए थे. यहां तक कि उन्होंने मायावती से बातचीत का कथित ऑडियो भी सार्वजनिक कर दिया था. यूं तो इससे पहले भी कई नेताओं ने मायावती का साथ छोड़ा था, मगर नसीमुद्दीन की तरह अन्य किसी ने इस हद तक जाकर आरोप नहीं लगाए थे. बसपा से निकलने के बाद पहले नसीमुद्दीन के सपा में जाने की संभावना थी, मगर अखिलेश यादव ने तवज्जो नहीं दी. जिसके बाद इस साल कांग्रेस ने नसीमुद्दीन को पार्टी में शामिल किया. नसीमुद्दीन को इधर बीच कांग्रेस नेताओं की ओर से खासी प्रमुखता दी जा रही है. बाराबंकी में पीएल पुनिया के साथ हाल में उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस भी की. यह भी मायावती की नाराजगी का एक कारण बताया जा रहा है.
यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार और फिलहाल निष्कासित चल रहे संजय दीक्षित मायावती से गठबंधन टूटने का ठीकरा नसीमुद्दीन पर फोड़ते हैं. एनडीटीवी से बातचीत में दीक्षित ने कहा, "मायावती यूपी में जितना नसीमुद्दीन से चिढ़तीं हैं, उतना ही कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अजित जोगी से." इस प्रकार मायावती ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का साथ ठुकराकर बागी अजित जोगी का साथ देकर पार्टी को तमाचा मारा है. संजय दीक्षित का दावा है कि कांग्रेस से गठबंधन टूटने का एकमात्र कारण यूपी में कांग्रेस नेताओं की ओर से बसपा के बागी नसीमुद्दीन को प्रमुखता देने का है. संजय दीक्षित के मुताबिक यूपी का हर राजनीतिक व्यक्ति जानता है कि नसीमुद्दीन को आगे देख मायावती कभी भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं कर सकती थीं और यही हुआ भी. मायावती के दूर जाने से आज की परिस्थितियों में भाजपा को रोकने के एक बड़े प्रयास को गहरा झटका लगा. बकौल दीक्षित- कांग्रेस में भाजपा की सुपारी लेकर आए हुए लोगों के चलते बसपा मुखिया महागठबंधन से दूर जा रहीं हैं.
हालांकि एक अन्य कांग्रेसी नेता का यह कहना है कि मायावती के रुख पर अभी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. विधानसभा चुनाव के आधार पर लोकसभा चुनाव के समीकरणों और महागठबंधन को लेकर अटकलें लगाना बेमानी है. विधानसभा चुनाव में भले ही मायावती मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का साथ नहीं दे रहीं हैं, मगर लोकसभा चुनाव में जरूर हाथ का साथ देंगी.
मध्य प्रदेश में बसपा की रणनीति
230 विधानसभा सीटों वाली मध्य प्रदेश में 15 से 16 फीसद अनुसूचित वर्ग की आबादी है. समझा जा रहा है कि दलितों की अच्छी संख्या और कुछ कांग्रेस के साथ दिल न मिलने के चलते मायावती ने यहां गठबंधन की जगह अकेले दम चुनाव लड़ने का ऐलान किया.बसपा ने गुरुवार को उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी. इस सूची में 22 उम्मीदवारों के नाम हैं. बसपा की पहली सूची में जिन 22 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए गए हैं, उनमें तीन वर्तमान विधायक हैं. इससे कांग्रेस को लगा बड़ा झटका लगा है और BSP से गठबंधन की आस खत्म हो गई है. मायावती की ओर से जारी सूची के मुताबिक मुरैना जिले के सबलगढ़ से लाल सिंह केवट, अम्बाह से सत्य प्रकाश, भिंड से संजीव सिंह कुशवाह, सेवढ़ा से लाखन सिंह यादव, करैरा से प्रागीलाल जाटव, अशोकनगर से बाल कृष्ण महोबिया, छतरपुर जिले के चंदला से पुष्पेंद्र अहिरवार को उम्मीदवार बनाया गया है.
छत्तीसगढ़ में मायावती का रोल
छत्तीसगढ़ में मायावती ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. उन्होंने अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस (छत्तीसगढ़-जे) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. दोनों दलों के बीच हुए समझौते के तहत 90 में से 35 सीटों पर BSP, लड़ेगी जबकि अजीत जोगी की पार्टी 55 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. जबकि पहले अटकलें लग रहीं थीं कि बसपा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती हैं. बसपा मुखिया ने ऐलान भी कर दिया कि अगर हम चुनाव जीतते हैं तो अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनेंगे. बता दें कि छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस से निष्कासित किए जाने के बाद अपनी पार्टी का गठन किया था. मायावती ने कहा कि गठबंधन को लेकर उनकी राय स्पष्ट है कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ तभी गठबंधन करेगी, जब उसे समझौते के तहत सम्माजनक संख्या में सीटें मिलें. साथ ही उसकी सोच बसपा की 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' की सोच से भी मेल खाती हो.
वीडियो- मिशन 2019 : मायावती ने दिया महागठबंधन को झटका
कांग्रेस से क्या ये है नाराजगी की वजह
कर्नाटक में कांग्रेस-जदएस गठबंधन से मुख्यमंत्री बने एचडी कुमारस्वामी का शपथग्रहण समारोह याद करिए. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा मुखिया मायावती की गले मिलती तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी.उन तस्वीरों में दोनों नेताओं के बीच अच्छे रिश्ते की झलक साफ दिख रही थी. मगर अब जाकर जिस तरह से मायावती ने पैतरे बदले हैं और एक के बाद एक फैसले ले रहीं हैं, उससे समझा जा रहा है कि मायावती कांग्रेस से कुछ नाराज हैं. इसके पीछे यूं तो कई वजहें बताई जाती हैं. मगर एक वजह यूपी के नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी हैं.कभी मायावती के सबसे भरोसेमंद रहे और चंदे का हिसाब-किताब रखने वाले नसीमुद्दीन अब कांग्रेस का हिस्सा बन चुके हैं.
बसपा से निकाले जाने के बाद नसीमुद्दीन ने मायावती पर टिकट बेचने समेत कई आरोप लगाए थे. यहां तक कि उन्होंने मायावती से बातचीत का कथित ऑडियो भी सार्वजनिक कर दिया था. यूं तो इससे पहले भी कई नेताओं ने मायावती का साथ छोड़ा था, मगर नसीमुद्दीन की तरह अन्य किसी ने इस हद तक जाकर आरोप नहीं लगाए थे. बसपा से निकलने के बाद पहले नसीमुद्दीन के सपा में जाने की संभावना थी, मगर अखिलेश यादव ने तवज्जो नहीं दी. जिसके बाद इस साल कांग्रेस ने नसीमुद्दीन को पार्टी में शामिल किया. नसीमुद्दीन को इधर बीच कांग्रेस नेताओं की ओर से खासी प्रमुखता दी जा रही है. बाराबंकी में पीएल पुनिया के साथ हाल में उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस भी की. यह भी मायावती की नाराजगी का एक कारण बताया जा रहा है.
यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार और फिलहाल निष्कासित चल रहे संजय दीक्षित मायावती से गठबंधन टूटने का ठीकरा नसीमुद्दीन पर फोड़ते हैं. एनडीटीवी से बातचीत में दीक्षित ने कहा, "मायावती यूपी में जितना नसीमुद्दीन से चिढ़तीं हैं, उतना ही कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अजित जोगी से." इस प्रकार मायावती ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का साथ ठुकराकर बागी अजित जोगी का साथ देकर पार्टी को तमाचा मारा है. संजय दीक्षित का दावा है कि कांग्रेस से गठबंधन टूटने का एकमात्र कारण यूपी में कांग्रेस नेताओं की ओर से बसपा के बागी नसीमुद्दीन को प्रमुखता देने का है. संजय दीक्षित के मुताबिक यूपी का हर राजनीतिक व्यक्ति जानता है कि नसीमुद्दीन को आगे देख मायावती कभी भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं कर सकती थीं और यही हुआ भी. मायावती के दूर जाने से आज की परिस्थितियों में भाजपा को रोकने के एक बड़े प्रयास को गहरा झटका लगा. बकौल दीक्षित- कांग्रेस में भाजपा की सुपारी लेकर आए हुए लोगों के चलते बसपा मुखिया महागठबंधन से दूर जा रहीं हैं.
हालांकि एक अन्य कांग्रेसी नेता का यह कहना है कि मायावती के रुख पर अभी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. विधानसभा चुनाव के आधार पर लोकसभा चुनाव के समीकरणों और महागठबंधन को लेकर अटकलें लगाना बेमानी है. विधानसभा चुनाव में भले ही मायावती मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का साथ नहीं दे रहीं हैं, मगर लोकसभा चुनाव में जरूर हाथ का साथ देंगी.
मध्य प्रदेश में बसपा की रणनीति
230 विधानसभा सीटों वाली मध्य प्रदेश में 15 से 16 फीसद अनुसूचित वर्ग की आबादी है. समझा जा रहा है कि दलितों की अच्छी संख्या और कुछ कांग्रेस के साथ दिल न मिलने के चलते मायावती ने यहां गठबंधन की जगह अकेले दम चुनाव लड़ने का ऐलान किया.बसपा ने गुरुवार को उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी. इस सूची में 22 उम्मीदवारों के नाम हैं. बसपा की पहली सूची में जिन 22 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए गए हैं, उनमें तीन वर्तमान विधायक हैं. इससे कांग्रेस को लगा बड़ा झटका लगा है और BSP से गठबंधन की आस खत्म हो गई है. मायावती की ओर से जारी सूची के मुताबिक मुरैना जिले के सबलगढ़ से लाल सिंह केवट, अम्बाह से सत्य प्रकाश, भिंड से संजीव सिंह कुशवाह, सेवढ़ा से लाखन सिंह यादव, करैरा से प्रागीलाल जाटव, अशोकनगर से बाल कृष्ण महोबिया, छतरपुर जिले के चंदला से पुष्पेंद्र अहिरवार को उम्मीदवार बनाया गया है.
छत्तीसगढ़ में मायावती का रोल
छत्तीसगढ़ में मायावती ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. उन्होंने अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस (छत्तीसगढ़-जे) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. दोनों दलों के बीच हुए समझौते के तहत 90 में से 35 सीटों पर BSP, लड़ेगी जबकि अजीत जोगी की पार्टी 55 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. जबकि पहले अटकलें लग रहीं थीं कि बसपा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती हैं. बसपा मुखिया ने ऐलान भी कर दिया कि अगर हम चुनाव जीतते हैं तो अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनेंगे. बता दें कि छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस से निष्कासित किए जाने के बाद अपनी पार्टी का गठन किया था. मायावती ने कहा कि गठबंधन को लेकर उनकी राय स्पष्ट है कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ तभी गठबंधन करेगी, जब उसे समझौते के तहत सम्माजनक संख्या में सीटें मिलें. साथ ही उसकी सोच बसपा की 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' की सोच से भी मेल खाती हो.
वीडियो- मिशन 2019 : मायावती ने दिया महागठबंधन को झटका
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