नई दिल्ली:
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी जिले के एक छोटे से गांव भाभोरा में किसान रामबदन सिंह और गुजराती देवी के घर में जन्मे राजनाथ सिंह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में फिज़िक्स में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। 13 साल की बेहद छोटी उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ने वाले राजनाथ मिर्ज़ापुर में फिज़िक्स के लेक्चरर बन जाने के बावजूद संघ से जुड़े रहे, और वर्ष 1972 में उन्हें मिर्ज़ापुर शहर का संघ कार्यवाह (जनरल सेक्रेटरी) बना दिया गया। वर्ष 1974 में उन्हें जनसंघ में भी जिला सचिव बनाया गया। वैसे इससे पहले छात्र राजनीति में भी दखल रखने वाले राजनाथ वर्ष 1969 से 1971 के बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गोरखपुर डिवीजन के संगठन सचिव भी रहे।
सक्रिय राजनीति में प्रवेश के बाद पहली बार वह वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में चुने गए, और फिर भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद वर्ष 1983 में उन्हें भाजपा का सचिव बनाया गया। वर्ष 1986 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया, और वर्ष 1988 में वह इस युवा संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिए गए। इसी वर्ष वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी चुने गए।
राज्य सरकार में उन्हें पहली बार शिक्षामंत्री के रूप में वर्ष 1991 में शामिल किया गया। उत्तर प्रदेश के शिक्षामंत्री के रूप में उन्हें कुछ खास कामों के लिए अब तक याद किया जाता है, जिनमें नकल विरोधी अधिनियम, पाठ्यक्रम में वैदिक गणित को शामिल करवाना और इतिहास की पुस्तकों के कई हिस्सों को दुरुस्त करवाना शामिल रहा। वर्ष 1994 में वह पार्टी की ओर से राज्यसभा में चुनकर भेजे गए, और उन्हें मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
मार्च, 1997 में राजनाथ सिंह को राज्य भाजपा की कमान सौंपी गई। इस कार्यकाल के दौरान न सिर्फ उन्हें संगठन को मजबूती और विस्तार देने के लिए याद किया जाता है, बल्कि राज्य की भाजपा-नीत सरकार को संकट के समय में दो बार बचाने का श्रेय भी उन्हीं को है।
संगठन को बेहतर करने के इनाम के रूप में वर्ष 1999 में भाजपा की केंद्र सरकार बनने पर उन्हें नवम्बर माह में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री बना दिया गया, और इस कार्यकाल में भी उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम की शुरुआत की, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।
वर्ष 2000 में उन्हें एक बार राज्य में भेजा गया, और प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए। इसी दौरान उन्होंने दो बार बाराबंकी में हैदरगढ़ सीट से दो बार विधानसभा चुनाव भी जीता, और दो ही साल बाद उन्हें वर्ष 2002 में पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। अगले ही साल वह केंद्र सरकार में कृषि मंत्री के रूप में वापस चले गए, और किसान कॉल सेंटर तथा फार्म इनकम इंश्योरेंस स्कीम जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं।
इसके बाद उन्हें वर्ष 2006 में पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन किया गया, और वर्ष 2009 तक वह पद पर बने रहे। अब वह एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष बने हैं।
सक्रिय राजनीति में प्रवेश के बाद पहली बार वह वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में चुने गए, और फिर भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद वर्ष 1983 में उन्हें भाजपा का सचिव बनाया गया। वर्ष 1986 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया, और वर्ष 1988 में वह इस युवा संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिए गए। इसी वर्ष वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य भी चुने गए।
राज्य सरकार में उन्हें पहली बार शिक्षामंत्री के रूप में वर्ष 1991 में शामिल किया गया। उत्तर प्रदेश के शिक्षामंत्री के रूप में उन्हें कुछ खास कामों के लिए अब तक याद किया जाता है, जिनमें नकल विरोधी अधिनियम, पाठ्यक्रम में वैदिक गणित को शामिल करवाना और इतिहास की पुस्तकों के कई हिस्सों को दुरुस्त करवाना शामिल रहा। वर्ष 1994 में वह पार्टी की ओर से राज्यसभा में चुनकर भेजे गए, और उन्हें मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) पद की जिम्मेदारी सौंपी गई।
मार्च, 1997 में राजनाथ सिंह को राज्य भाजपा की कमान सौंपी गई। इस कार्यकाल के दौरान न सिर्फ उन्हें संगठन को मजबूती और विस्तार देने के लिए याद किया जाता है, बल्कि राज्य की भाजपा-नीत सरकार को संकट के समय में दो बार बचाने का श्रेय भी उन्हीं को है।
संगठन को बेहतर करने के इनाम के रूप में वर्ष 1999 में भाजपा की केंद्र सरकार बनने पर उन्हें नवम्बर माह में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री बना दिया गया, और इस कार्यकाल में भी उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम की शुरुआत की, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।
वर्ष 2000 में उन्हें एक बार राज्य में भेजा गया, और प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए। इसी दौरान उन्होंने दो बार बाराबंकी में हैदरगढ़ सीट से दो बार विधानसभा चुनाव भी जीता, और दो ही साल बाद उन्हें वर्ष 2002 में पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। अगले ही साल वह केंद्र सरकार में कृषि मंत्री के रूप में वापस चले गए, और किसान कॉल सेंटर तथा फार्म इनकम इंश्योरेंस स्कीम जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं।
इसके बाद उन्हें वर्ष 2006 में पार्टी के सर्वोच्च पद पर आसीन किया गया, और वर्ष 2009 तक वह पद पर बने रहे। अब वह एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष बने हैं।
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