आर्य बाहरी नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के थे. ये दावा राखीगढ़ी में साढ़े चार हजार साल पुराने कंकाल की DNA रिपोर्ट के आधार पर भारत और हावर्ड के कुछ प्रोफेसरों और साइंटिस्टों ने किया है. जबकि उनके इस दावे को बहुत से इतिहासकार खारिज कर रहे हैं. पहले राखीगढ़ी और फिर सनौली में हड़प्पाकालीन कंकालों ने शोध के नए दरवाजे खोल दिए हैं. राखीगढ़ी की पुरातात्विक खुदाई में साढ़े चार हजार साल पुराने कंकाल मिले जिनकी डीएनए जांच के बाद डेक्कन कॉलेज ऑफ आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर वसंत शिंदे और डीएनए साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने दावा किया कि हड़प्पा सभ्यता को विकसित करने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के लोग ही थे. आर्य और द्रविड़ सभ्यता में संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले हैं. आर्य भारतीय उपमहाद्वीप के थे और मोहनजोदड़ों, हड़प्पा सभ्यता और वैदिक काल एक ही थे. यहां के ही लोग ईरान और मध्य एशिया में व्यापार और खेती करने गए थे. उनकी इस हाई प्रोफाइल प्रेस कांन्फ्रेंस में बीजेपी के राद्यसभा सांसद रहे तरुण विजय भी मौजूद थे.
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राखीगढ़ी प्रोजेक्ट के डायरेक्टर प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा, 'आर्य इनवेजन और वैदिक काल की थ्योरी बदलनी पेड़ेगी. अगर आर्यन इनवेजन हुआ तो उसका कारण बताएं.' वहीं डीएनए साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने कहा, 'आर्यन शब्द गलत है. आर्य से समझा जाता है कि वो बाहर से आए. बहुत सारे लोग आए होंगे लेकिन उसके कोई प्रमीण हमें नहीं मिले. आर्य शब्द ही नहीं यूज होना चाहिए.'
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आर्य बाहर से आए थे या यहीं के थे इस बाबत लंबे समय से बहस और अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं. NDTV ने कुछ इतिहासकारों से जानने की कोशिश की कि आखिर उनकी क्या राय है. दिल्ली के दयाल सिंह कॉलेज के इतिहासकार डॉ. हेमंत मिश्रा से लेकर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नरोत्तम नवीन तक का दावा है कि हड़प्पा और वैदिक काल एक नहीं हो सकते हैं. हड़प्पा शहरी सभ्यता थी और वैदिक काल कृषि आधारित. भाषा और लिपि के आधार पर पता चलता है कि आर्य बाहर से आए थे.
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प्रोफेसर डॉ. हेमंत मिश्रा ने कहा, 'अब आर्य बाहर से आए या यहां के ये विवाद का विषय है. लेकिन ये माना जाता है क हमारे यहां कि बहुत सारी स्क्रिप्ट सेंट्रल एशिया से मिलती है.' वहीं एसोसिएट प्रोफेसर नरोत्तम नवीन ने कहा, 'हड़प्पा सभ्यता को वैदिक काल से जोड़ ही नहीं सकते हैं. हड़प्पा की पोटरी देखिए, शहर देखिए जबकि वैदिक काल में कृषि आधारित व्यवस्था थी.'
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