लालकिले में कार्यक्रम के बाद खुद राष्ट्रपति नासेर ने इंदिरा गांधी को इस घटना के बारे में बताया
नई दिल्ली:
यूं तो आपने अनेकों बार लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रगान की धुन सुनी होगी, लेकिन एक मौका ऐसा भी आया जब लाल किले में गलत राष्ट्रगान बजाया गया और खुद राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री से इसकी शिकायत की, लेकिन यह राष्ट्रपति भारत के नहीं थे. आपको पूरा किस्सा बताएं, इससे पहले थोड़ा पीछे चलते हैं. इस घटना की शुरुआत या यूं कहें कि पटकथा साल 1967 में लिखी गई. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पोलैंड, बुल्गारिया, रोमानिया और यूगोस्लाविया जैसे पूर्वी यूरोपीय देशों के दौरे पर गई थीं. दौरा खत्म होने के बाद उन्होंने अचानक मिस्र (इजिप्ट) जाने का मन बना लिया. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर इंदिरा के पिता जवाहर लाल नेहरू के करीबियों में थे और उनकी गणना उन चंद वैश्विक नेताओं में थी जो उस दौर में भारत के साथ मजबूती से खड़े थे.
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दूसरी वजह यह थी कि इंदिरा के दौरे से कुछ महीने पहले ही मिस्र को इजरायल के साथ लड़ाई में करीबन मुंह की खानी पड़ी थी. इंदिरा गांधी के दौरे को 'सॉलीडैरिटी विजिट' के तौर पर भी देखा गया. खैर, इंदिरा गांधी राजधानी कायरो में दो दिन रुकीं. तमाम मुद्दों पर बात हुई और उसी दौरान इंदिरा ने राष्ट्रपति नासेर को भारत आने का न्योता दिया. अगले साल यानी 1968 में गमाल अब्देल नासेर भारत दौरे पर आए. भारत सरकार ने उनके सम्मान में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. लाल किले में भव्य रिसेप्शन का आयोजन किया गया. उस महफिल में तमाम दिग्गज नेता और अधिकारी शामिल थे.
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कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत मिस्र के राष्ट्रगान से होनी थी, लेकिन उस दिन जो राष्ट्रगान बजा वह गलत और पुराना था. राजनेता और ख्यात ब्यूरोक्रेट के. नटवर सिंह अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट एनफ' में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, 'कार्यक्रम के बाद खुद राष्ट्रपति नासेर ने इंदिरा गांधी से इसकी शिकायत की. उन्होंने कहा, 'बैंड ने गलत राष्ट्रगान बजा दिया. जो राष्ट्रगान बजाया गया था वह दरअसल, मिस्र के राजा फारूक़ के समय का था, जिन्हें 1952 की क्रांति के दौरान अपदस्थ कर दिया गया था'. आपको बता दें कि उस क्रांति की अगुवाई ख़ुद नासेर ने की थी. बाद में नासेर की सिर्फ मिस्र ही नहीं, बल्कि अन्य अरब देशों में एक मजबूत नेता के तौर पर पहचान बनी.
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