अहमदाबाद में 2013 में जैन संत के सम्मान में उपवास करने वाला छह साल का बच्चा.
हैदराबाद:
करीब 10 दिन पहले हैदराबाद में 13 साल की एक जैन लड़की की दो माह से अधिक समय तक चले उपवास की समाप्ति के बाद मौत हो गई. इस घटना को लेकर जैन समुदाय का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं है कि लड़की के अभिभावकों को क्षमा मांगने की जरूरत पड़े.
68 दिन का उपवास खत्म करने के दो दिन बाद ही आराधना समदड़िया की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. इसने जैन समुदाय में उपवास की परंपरा की तरफ एक बार फिर लोगों का ध्यान खींचा है. उसके माता-पिता के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है और जैन नेताओं का कहना है कि इस घटना को बेमानी बहस के जरिए तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है.
उनका कहना है कि अराधना उपवास के दौरान सिर्फ पानी ग्रहण कर रही थी और वह भी दिन में सिर्फ दो बार. उसके माता-पिता ने उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था. अराधना के पिता लक्ष्मीचंद समदड़िया ने एनडीटीवी से उनकी बेटी के उपवास के 35 वें दिन बात की थी और फिर 51 वें दिन भी उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी से उपवास तोड़ने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं मानी. उन्होंने बताया था कि आराधना पांच साल की उम्र से ही काफी धार्मिक प्रवृत्ति की हैं और पिछले दो साल से वह ऐसे मैराथन उपवास से लिए ट्रेनिंग ले रही थी. उसके चाचा ने बताया, सुबह वह सबसे पहले जागती थी और सबसे पहले पूजा पाठ करती थी. उन्होंने कहा, उसके लिए शोक करना व्यर्थ है, क्योंकि उसने मोक्ष पा लिया है. वह जीवन-मृत्यु के चक्र से छूट गई है और यह सब उसने सिर्फ 13 साल की उम्र में पा लिया.
उन्होंने हैदराबाद पुलिस को बताया कि उपवास एक तरह की तपस्या है जो कि उसके धार्मिक रिवाज के मुताबिक जरूरी है. यह जरूरी नहीं है कि बड़े बच्चे ही यह करें. तपस्या कोई भी करे उसको उत्सव की तरह मनाया जाता है. यह प्रमाणित करने के लिए कि न तो आराधना ने और न ही उसके परिजनों ने कोई तय रिवाज से हटकर काम किया, पुलिस को सोशल मीडिया से एकत्रित फोटो और नाम बताए गए : अहमदाबाद में 2013 में जैन संत के सम्मान में छह साल के बच्चे ने आराधना के बराबर ही लंबा उपवास किया था; अहमदाबाद में ही अगस्त में छह साल के भाई और नौ साल की बहन ने 75 दिन का उपवास किया था. अहमदाबाद का छह साल का भाई और नौ साल की बहन जिन्होंने 75 दिन का उपवास किया था.
हैदराबाद के प्रतिष्ठित जैन गुरु रवींद्र मुनिजी का कहना है कि "उपवास करने में सक्षम लोगों में इसके अनुभव के साथ आत्मविश्वास आता है और फिर वे खुद उपवास के लिए प्रेरित होते हैं. मुनिजी युवाओं को लेकर तपस्या और अनुष्ठान की योजना बना रहे हैं. उनका दावा है कि "उपवास करने वालों में एक से दो फीसदी बच्चे होते हैं, जो उपवास के पहले और बाद में भी स्वस्थ होते हैं." भोजन-पानी से बचने का फैसला लेने वालों को लेकर उन्होंने जोड़ा कि ''यह शारीरिक क्षमता पता करने के लिए है.''
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बच्चों की जान जोखिम में डालना ही नहीं, कथित अग्निपरीक्षा में सफल होने पर उनका भावनात्मक जुलूस (आराधना को एक रथ में निकाला गया था) निकालना भी बेतुका है. हैदराबाद में अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख आबिद रसूल खान ने कहा कि "यहां मुद्दा बच्चों की सुरक्षा का है. समुदाय और वरिष्ठ लोगों को इस बारे में जागृत होना चाहिए."
सूत्रों का कहना है कि पुलिस इस मामले में सजगता से आगे बढ़ रही है. अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है क्योंकि यहां मामले बाल अधिकारों और धार्मिक परम्पराओं के निर्वाह के हैं. यह दोनों ही मुद्दे संवेदनशील हैं.
68 दिन का उपवास खत्म करने के दो दिन बाद ही आराधना समदड़िया की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. इसने जैन समुदाय में उपवास की परंपरा की तरफ एक बार फिर लोगों का ध्यान खींचा है. उसके माता-पिता के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है और जैन नेताओं का कहना है कि इस घटना को बेमानी बहस के जरिए तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है.
उनका कहना है कि अराधना उपवास के दौरान सिर्फ पानी ग्रहण कर रही थी और वह भी दिन में सिर्फ दो बार. उसके माता-पिता ने उसे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था. अराधना के पिता लक्ष्मीचंद समदड़िया ने एनडीटीवी से उनकी बेटी के उपवास के 35 वें दिन बात की थी और फिर 51 वें दिन भी उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी से उपवास तोड़ने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं मानी. उन्होंने बताया था कि आराधना पांच साल की उम्र से ही काफी धार्मिक प्रवृत्ति की हैं और पिछले दो साल से वह ऐसे मैराथन उपवास से लिए ट्रेनिंग ले रही थी. उसके चाचा ने बताया, सुबह वह सबसे पहले जागती थी और सबसे पहले पूजा पाठ करती थी. उन्होंने कहा, उसके लिए शोक करना व्यर्थ है, क्योंकि उसने मोक्ष पा लिया है. वह जीवन-मृत्यु के चक्र से छूट गई है और यह सब उसने सिर्फ 13 साल की उम्र में पा लिया.
उन्होंने हैदराबाद पुलिस को बताया कि उपवास एक तरह की तपस्या है जो कि उसके धार्मिक रिवाज के मुताबिक जरूरी है. यह जरूरी नहीं है कि बड़े बच्चे ही यह करें. तपस्या कोई भी करे उसको उत्सव की तरह मनाया जाता है. यह प्रमाणित करने के लिए कि न तो आराधना ने और न ही उसके परिजनों ने कोई तय रिवाज से हटकर काम किया, पुलिस को सोशल मीडिया से एकत्रित फोटो और नाम बताए गए : अहमदाबाद में 2013 में जैन संत के सम्मान में छह साल के बच्चे ने आराधना के बराबर ही लंबा उपवास किया था; अहमदाबाद में ही अगस्त में छह साल के भाई और नौ साल की बहन ने 75 दिन का उपवास किया था.
हैदराबाद के प्रतिष्ठित जैन गुरु रवींद्र मुनिजी का कहना है कि "उपवास करने में सक्षम लोगों में इसके अनुभव के साथ आत्मविश्वास आता है और फिर वे खुद उपवास के लिए प्रेरित होते हैं. मुनिजी युवाओं को लेकर तपस्या और अनुष्ठान की योजना बना रहे हैं. उनका दावा है कि "उपवास करने वालों में एक से दो फीसदी बच्चे होते हैं, जो उपवास के पहले और बाद में भी स्वस्थ होते हैं." भोजन-पानी से बचने का फैसला लेने वालों को लेकर उन्होंने जोड़ा कि ''यह शारीरिक क्षमता पता करने के लिए है.''
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि बच्चों की जान जोखिम में डालना ही नहीं, कथित अग्निपरीक्षा में सफल होने पर उनका भावनात्मक जुलूस (आराधना को एक रथ में निकाला गया था) निकालना भी बेतुका है. हैदराबाद में अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख आबिद रसूल खान ने कहा कि "यहां मुद्दा बच्चों की सुरक्षा का है. समुदाय और वरिष्ठ लोगों को इस बारे में जागृत होना चाहिए."
सूत्रों का कहना है कि पुलिस इस मामले में सजगता से आगे बढ़ रही है. अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है क्योंकि यहां मामले बाल अधिकारों और धार्मिक परम्पराओं के निर्वाह के हैं. यह दोनों ही मुद्दे संवेदनशील हैं.