बनारस में पानी हुआ हरा, विशेषज्ञों ने जताई आशंका-कहीं खत्म तो नहीं हो रही हैं गंगा!

गंगा नदी में ऐसा काई है जो हम लोगों ने कभी जीवन में भी नहीं देखा जो काई आज जम रही है जिस तरह वरुणा नदी में जम जाती है.

बनारस में पानी हुआ हरा, विशेषज्ञों ने जताई आशंका-कहीं खत्म तो नहीं हो रही हैं गंगा!

प्रतीकात्मक तस्वीर.

वाराणसी:

बनारस (Banaras) में सिंघिया घाट से लेकर राजा घाट तक गंगा का पानी हरा हो गया है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. जानकारों की माने तो ये चिंता की बात है. कहीं गंगा गंगा धीमे-धीमे  खत्म तो नहीं हो रही है. ये बनारस  के सिंधिया घाट के आसपास की  गंगा है. आप इसके पानी पर गौर कीजिए. इसमें और किसी गंदे ठहरे  पानी में कोई अंतर नहीं है. पानी हरा हो गया है, इसलिए कि इसमें काई जम गई है. अब इतने गंदे और जहरीले पानी में कोई उतरने की हिम्मत कैसे करे. राधे कृष्ण रस्तोगी बीते 40 साल से गंगा स्नान के साथ ही दिन की शुरुआत करते हैं. इन दिनों गंगा की ये दशा देखकर बेहद दुखी हैं.  
वराणसी के रहने वाले राधे कृष्ण रस्तोगी बताते हैं कि गंगा नदी में ऐसा काई है जो हम लोगों ने कभी जीवन में भी नहीं देखा जो काई आज जम रही है जिस तरह वरुणा नदी में जम जाती है.  राधे कृष्ण की तरह घाट के तीर्थ पुरोहित भी गंगा की इस दशा को देख कर बेहद चिंतित है.

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पुजारी श्याम शंकर तिवारी  का कहना है कि गंगा की स्थिति है एक श्लोक है " गंगा गंगेती विष्णु लोके सगच्छति " यानी 4 को उस पर भी गंगा का नाम लीजिए और अगर उसकी हवा लग जाए स्नान करने का फल होता है मिलने के लिए गंगा का हाल देखिए ऐसा कभी देखा नहीं गया. कई दशकों से गंगा प्रदूषण के लिए गंगा अनुसंधान प्रयोगशाला  चला रहे संकट मोचन  मंदिर के महंत  भी बीते 5 दशकों से हर रोज गंगा में स्नान करते हैं लेकिन कभी गंगा की ऐसी दशा नहीं देखी घाट के तमाम लोगों के साथ इनका भी मानना है कि गंगा की इस दशा के लिए.  एक बड़ा कारण ललिता घाट के सामने गंगा के भीतर बन रहा  प्लेटफार्म को मानते है . जिसने गंगा के प्रवाह को रोक दिया है . 

गंगा नदी के विशेषज्ञ विशम्भर नाथ मिश्रा कहते हैं कि अभी जैसे इधर कुछ चेंज हुए हैं वहां पर जैसे ललिता घाट पर एक बड़ा प्लेटफॉर्म बन रहा है और संजोग से रिवर  बेल्ट में घुस के बन रहा है. कायदे से देखे तो नेचुरल फ्लो इफेक्ट होगा 30 35 मीटर चौड़ाई है उसकी गंगा जी के अंदर यह जो अभी आपको ग्रीन कलर आपको देख रहा है. यह अभी तो संभवत वहां एक्सेस न्यूट्रिएंट्स आ रहे हैं. सीवेज के माध्यम से यह आते भी हैं गंगा में तो उसकी वजह से अलग-अलग रूट की वजह से ग्रीन कलर दिख रहा है. यह जो एल्गल डिवेलप होते हैं तो यह खतरनाक होते हैं क्योंकि यह दिन में ऑक्सीजन डिलीवर करते हैं और रात में ये कंज्यूम करते हैं तो वह गंगा के एक्विइटिक  लाइफ के लिए बहुत खतरनाक है.

गौरतलब बात यह है  कि पहले अस्सी से लेकर   ललिता घाट तक  गंगा का पानी हरा नहीं था. उसके आगे के घाटों में ही हरा पानी दिख रहा है हालांकि तेज हवा चलने के कारण बाकि घाटों में भी पानी हरा नज़र आने लगा है . इसलिए जानकारों का ये भी मानना है कि अगर इसी तरह गैर वैज्ञानिक तरीके से गंगा की मुख्य धारा के साथ छेड़छाड़ होता रहा तो मुमकिन है कि वो बनारस के घाटों से कहीं दूर ना हो जाएं.  

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 गंगा 40 करोड़ लोगों की जीवन धारा है. पीने के पानी से लेकर खेती तक के लिए - हम गंगा पर निर्भर हैं. गंगा मोक्षदायिनी भी है. यानी मृत्यु के बाद मुक्ति के लिए भी हमें गंगा ही चाहिए. सवाल उठता है कि कैसी गंगा चाहिए?

बनारस: गंगा और ठहरे हुए गंदे पानी में अंतर नहीं रहा

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