संजय गांधी... झक सफेद कुर्ता-पायजामा, पैरों में कोल्हापुरी चप्पलें और चेहरे पर मोटा चश्मा. सियासी बैठकें हों या दिल्ली की हाई प्रोफाइल पार्टी, वह अक्सर इसी परिधान में देखे जाते थे. 23 जून, 1980 को भी संजय गांधी (Sanjay Gandhi) इसी परिधान में दिल्ली के सफ़दरजंग फ्लाइंग क्लब पहुंचे थे. दरअसल, संजय विमान उड़ाने के बेहद शौकीन थे और उन्हें हवा में कलाबाजियां खाना पसंद था. क्लब में बमुश्किल एक महीने पहले ही टू-सीटर विमान 'पिट्स एस 2ए' लाया गया था. इस विमान को खासतौर से आसमान में कलाबाजी के लिए ही डिजाइन किया गया था और संजय इसे उड़ाने के लिए बेसब्र थे.
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उस रोज संजय गांधी के साथ माधवराव सिंधिया को भी उड़ान भरनी थी, लेकिन वह नहीं जा सके. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक तवलीन सिंह अपनी किताब 'दरबार' में लिखती हैं, 'ग्वालियर के युवा महाराज उस दिन संजय के साथ प्लेन में सिर्फ इसलिए नहीं जा सके, क्योंकि उस सुबह वह सफ़दरजंग फ्लाइंग क्लब पहुंचने में लेट हो गए थे'. संजय गांधी ने इंतजार करना ठीक नहीं समझा और पायलट के साथ ही उड़ान भर दी. तीन चक्कर काटने के बाद चंद मिनटों में ही विमान हवा में गोते खाते हुए क्रैश हो गया. उस समय घड़ी में सुबह के 7:30 बजने वाले थे. दिल्ली के लोग अभी ठीक से जागे भी नहीं थे, और संजय गांधी की मौत की खबर आ गई.
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वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विनोद मेहता संजय गांधी (Sanjay Gandhi) की जीवनी 'द संजय स्टोरी' में लिखते हैं, 'इस दुर्घटना की आशंका पहले से थी. एक तो संजय गांधी खतरनाक तरीके से विमान उड़ाते थे, जिसके बारे में सिविल एविएशन विभाग के अधिकारियों ने पहले ही उनकी मां इंदिरा गांधी को आगाह किया था. दूसरा, संजय गांधी कोल्हापुरी चप्पलों में ही विमान उड़ाने लगते थे, जबकि ये चप्पलें कॉकपिट में हवा के उच्च दबाव को झेलने में सक्षम नहीं थीं. विनोद मेहता के मुताबिक, संजय के बड़े भाई और ट्रेंड पायलट राजीव गांधी भी उन्हें इस बात को लेकर कई बार चेतावनी दे चुके थे. राजीव गांधी ने संजय को उड़ान के दौरान चप्पल की जगह जूते पहनने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.
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विनोद मेहता के मुताबिक जब संजय गांधी ने सफ़दरजंग फ्लाइंग क्लब से उड़ान भरी तो विलिंगडन क्रीसेंट के नजदीक रहने वाले कुछ लोगों ने कहा, 'यह विमान इतना नीचे क्यों उड़ रहा है, और थोड़ी ही देर बाद विमान नीचे गिर गया. जहां विमान क्रैश हुआ, वह जगह गांधी परिवार के निवास 12, विलिंगडन क्रीसेंट से मात्र 500 मीटर की दूरी पर थी. चंद मिनटों में गांधी परिवार के सदस्य दुर्घटनास्थल पर पहुंच गए. बकौल मेहता, क्रैश में संजय का शव बुरी तरह क्षत-विक्षत हो गया था और आठ डॉक्टरों ने करीब चार घंटे में इसकी सिलाई की.
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