व्यापमं घोटाले पर ग्राउंड रिपोर्ट : सीएम शिवराज की चुप्पी के पीछे क्या है राज़?

व्यापमं घोटाले पर ग्राउंड रिपोर्ट : सीएम शिवराज की चुप्पी के पीछे क्या है राज़?

फाइल फोटो

भोपाल:

मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले में अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसी एजेंडे के तहत बड़ी जांच नहीं होने दे रहे थे या फिर वह बस चुप ही रहना चाहते थे। क्या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सच में ह्विसिल ब्लोअर हैं।

विधानसभा के पिछले आठ साल के रिकार्ड खंगालने पर कुछ अलग ही सच उभर रहा है। विधानसभा में नवंबर 2009 में निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सवाल पूछा कि क्या राज्य के प्री-मेडिकल टेस्ट यानी यानी पीएमटी में अनियमितताएं हो रही हैं? उस वक्त सरकार ने जवाब दिया कि मामले में जानकारी इकट्ठा की जा रही हैं।
 
यह पहली बार था जब राज्य के कई शहरों में दबी जुबान में जो कुछ कहा सुना जा रहा था वह खुलकर विधानसभा में उठ गया। एक ही दिन में विधानसभा में मुख्यमंत्री से ढेरों सवाल पूछे गए।
दबाव में ही सही पीएमटी में गड़बड़ी की शिकायत के सवाल पर मुख्यमंत्री ने एक कमेटी गठित कर दी। तब राज्य के मेडिकल एजुकेशन का जिम्मा शिवराज के ही पास था।
 
राज्य में जो कुछ हो रहा था, उसको लेकर एक बार फिर 31 मार्च 2011 को विधानसभा में सवाल उठा। प्रश्नकाल में विधायक प्रताप गिरेवाल ने मुख्यमंत्री से पूछा कि मेडिकल कॉलेजों और डेंटल कॉलेजों में 2007 से लेकर 2010 तक कितने फर्जी दाखिले हुए। इस पर मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि 31 मार्च 2011 तक किसी भी फज़ी छात्र की पहचान नहीं हुई है।

सवालों ने एक बार फिर 29 नवंबर 2011 को मुख्यमंत्री को घेरा गया। अब सवाल पूछा गया कि मुख्यमंत्री ने जो कमेटी बनाई, उसमें कौन-कौन थे और कितनी गड़बड़ियां पाई गईं। खुद मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि 114 छात्रों की पहचान हुई है और जांच में व्यापमं के अधिकारी, चिकित्सा विभाग, मेडिकल कॉलेजों के अधिकारी लगाए गए हैं, लेकिन इस जवाब में मुख्यमंत्री ने कहीं भी यह नहीं कहा कि जांच कब तक पूरी होगी और हकीकत यह है कि इस कमेटी ने कभी अपनी रिपोर्ट नहीं दी।

इस पर रतलाम के तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा कहते हैं, 'मुख्यमंत्री बार बार वक्त लेते रहे। किसी जांच को अंजाम तक पहुंचाने के पक्ष में नजर नहीं आए।

इस मामले में उठ रहे सवालों पर मुख्यमंत्री की चुप्पी आगे भी जारी रही। उन्हें याद दिलाने के लिए कई विधायकों ने चिट्ठियां लिखीं। ऐसी 17 चिट्ठियों के रिकार्ड एनडीटीवी के पास हैं।

इतने सवालों और रिमायंडर के बाद मुख्यमंत्री ने सिर्फ इतना कहा कि मेडिकल कॉलेज भी जांच करें और 30 दिन में इसे पूरा करके बताएं, लेकिन दिसंबर 2013 में जाकर मेडिकल कॉलेजों ने जांच पूरी की, वह आधी अधूरी सी और इसमें सिर्फ छात्रों के नाम ही बताए।

मुख्यमंत्री ने कहीं भी जांच का दायरा नहीं बढ़ाय़ा। यह भी जानने की कोशिश नहीं की कि फर्जी छात्रों के पीछे कौन लोग हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य के मुख्यमंत्री ये मान कर चल रहे थे कि ये सब सिर्फ चुनिंदा लड़के कर रहे थे और उनके पीछे कोई नहीं था।

जानकारी छिपाने का यह सिलसिला फरवरी 2012 में भी जारी रहा। मुख्यमंत्री ने फर्जीवाड़े की जांच के वक्त बयान दिया कि छात्रों के सबूत फारेंसिक जांच के लिए भेजे गए हैं, लेकिन लैब से पूछताछ पर पता चला है कि ऐसा कोई भी सबूत उसे नहीं भेजा गया।

मुख्यमंत्री अब तक सफाई नहीं दे पाए हैं कि ये सब हुआ क्या था और वह ऐसी जानकारियां क्यों दे रहे थे। एक बार फिर 21 मार्च 2103 को निर्दलीय विधायक ने विधानसभा में पूछा कि साल 2007, 2008, 2010 और 2011 में जो डेंटल मेडिकल कॉलेज और पीएमटी की जांच शुरू हुई थी वह कहां तक पहुंची। इस पर भी सरकार का वही पुराना जवाब आया कि जानकारी एकत्रित की जा रही है।

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इस मामले से जुड़े विधानसभा के पूरे रिकार्ड को देखें तो 50 से भी ज्यादा बार सवाल आए, दर्जनों चिट्ठियां लिखी गईं, लेकिन मुख्यमंत्री या तो जानकारी जुटाते रहे, चुप रहे या फिर कमेटियां बनाते रहे।