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This Article is From Nov 24, 2013

आरुषि और हेमराज को किसने मारा? फैसला कल

आरुषि और हेमराज को किसने मारा? फैसला कल
गाजियाबाद:

किशोरी आरुषि तलवार और घरेलू सहायक हेमराज की सनसनीखेज हत्या के करीब साढ़े पांच वर्ष बाद विशेष सीबीआई अदालत सोमवार को अपना फैसला सुनाएगी कि क्या इस मामले में उसके माता-पिता दोषी हैं।

विशेष न्यायाधीश एस लाल डॉक्टर दंपति राजेश तलवार और नुपूर तलवार के खिलाफ 15 महीने लंबी सुनवाई के बाद इस मामले में अपना फैसला सुनाएंगे। दोनों इस समय जमानत पर चल रहे हैं।

दोनों पर हत्या के साथ ही अपनी 14-वर्षीय पुत्री और नौकर की 15-16 मई, 2008 की दरमियानी रात को नोएडा के जलवायु विहार स्थित आवास पर हुई हत्या का सबूत नष्ट करने का आरोप है। उत्तर प्रदेश पुलिस और सीबीआई के अलग-अलग तर्कों के साथ इस मामले में कई उतार-चढ़ाव आए। शुरुआत में शक की सूई राजेश तलवार पर, उसके बाद उनके मित्रों के घरेलू सहायकों पर फिर राजेश और उनकी पत्नी पर गई।

यह मामला हमेशा से ही मीडिया में छाया रहा। अगस्त, 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया पर सनसनीखेज रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी। तलवार दंपति ने सीबीआई पर आरोप लगाया था कि जांच को मोड़ने और कथित रूप से कई चीजों को लीक करके उनकी छवि को 'नुकसान' पहुंचाया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपनी जांच इस आधार पर की थी कि हेमराज ने आरुषि की हत्या की और घटनास्थल से फरार हो गया। अगले दिन 16 मई, 2008 को हेमराज का शव फ्लैट की छत पर मिलने के बाद संदेह की सूई राजेश पर आ गई, जिसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उत्तर प्रदेश पुलिस के उस सनसनीखेज आरोप ने मीडिया का ध्यान आकृष्ट किया कि हत्यारा और कोई नहीं किशोरी का पिता है, जिसने आरुषि और हेमराज को आपत्तिजनक स्थिति में देखने के बाद क्रोध में कदम उठाया।

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई के संयुक्त निदेशक अरुण कुमार के नेतृत्व में सीबीआई के एक दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि हत्याएं तलवार की क्लीनिक में सहायक कृष्णा थडराई, उसके मित्र राजकुमार तथा तलवार के पड़ोसी के ड्राइवर विजय मंडल द्वारा किया गा। राजकुमार तलवार के मित्र प्रफुल्ल और अनीता का घरेलू सहायक था।

सीबीआई के तत्कालीन निदेशक अश्विनी कुमार न इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया और अरुण कुमार की दलीलों में खामियां रेखांकित की। सितंबर, 2009 में कुमार ने संयुक्त निदेशक जावेद अहमद और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नीलाम किशोर के नेतृत्व में एक नई टीम का गठन किया और उन्हें इस मामले की अपनी टीम के सदस्यों का चुनाव करने की आजादी दी। जांच दल ने करीब एक वर्ष की गहन जांच के बाद सहायकों को शक से मुक्त कर दिया और परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर राजेश तलवार की भूमिका का संकेत दिया।

दल ने 29 दिसंबर, 2010 को मामले में 'अपर्याप्त सबूत' का हवाला देते हुए मामले को बंद करने की रिपोर्ट दायर की, जिसे जिला मजिस्ट्रेट प्रीति सिंह ने खारिज कर दिया। उन्होंने आदेश दिया कि इसमें तलवार दंपति के खिलाफ मामला चलाया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, ऐसे मामले में जिसमें घटना घर के भीतर हुई, दिखाई देने वाले सबूतों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

तलवार दंपति उसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट गए, जिसने निचली अदालत के समन और उनके खिलाफ शुरू की गई सुनवाई को रद्द करने की मांग वाली उनकी याचिका खारिज कर दी। दंपति ने उसके बाद सुप्रीम कोर्ट  का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली।

हत्या मामले में सुनवाई 11 जून, 2012 को शुरू हुई। सुनवाई डेढ़ वर्ष तक चली, जिस दौरान सीबीआई के कानूनी सलाहकार आरके सैनी ने अपने तर्कों के समर्थन में 39 गवाह, जबकि बचाव पक्ष ने सात गवाह पेश किए। 25 जनवरी, 2011 को गाजियाबाद अदालत परिसर में एक युवक ने राजेश तलवार पर धारधार हथियार से हमला किया। अभियोजन ने अपनी अंतिम दलीलें 10 अक्टूबर को शुरू की, जबकि बचाव पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलें 24 अक्टूबर को शुरू करके उसे 12 नवंबर को पूरा कर लिया।

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