यह ख़बर 16 फ़रवरी, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सजा-ए-मौत की तामील के खिलाफ वीरप्पन के साथियों की अर्जी खारिज

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने सजा-ए-मौत की तामील के खिलाफ चंदन तस्कर वीरप्पन के चार साथियों की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया।
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने सजा-ए-मौत की तामील के खिलाफ चंदन तस्कर वीरप्पन के चार साथियों की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया। कहा जा रहा है कि चारों दोषियों को मौत की सजा के लिए 17 फरवरी की तारीख तय की गई है लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बारे में कोई सबूत नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर के कार्यालय के एक अधिकारी ने संपर्क किए जाने पर बताया कि प्रधान न्यायाधीश के सामने यह मामला रखा गया लेकिन उन्होंने इस पर सुनवाई नहीं की।

प्रधान न्यायाधीश के आवास पर यह मामला पेश करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोनसाल्वेस ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने इस आधार पर शाम को इस मामले पर सुनवाई नहीं की कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि मौत की सजा पर रविवार को अमल किया जाना है। उन्होंने कहा कि अल्तमस कबीर ने उनसे कहा है कि इस मामले में तय प्रक्रिया के अनुसार गौर किया जाएगा।

गोनसाल्वेस और उनके सहयोगी अधिवक्ता समीक नारायण ने कहा कि उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख इसलिए किया क्योंकि उन्हें सूचना मिली है कि मृत्युदंड पर रविवार को अमल होना है। उन्होंने कहा कि अब हमें आशा है कि रविवार को फांसी की सजा नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि वह सोमवार को अदालत के सामने इस मामले को फिर से रखेंगे।

वर्ष 1993 में कर्नाटक के पलार में बारूदी सुरंग विस्फोट मामले में वीरप्पन के बड़े भाई ज्ञानप्रकाश, सिमोन, मीसेकर मदैया और बिलावेन्द्रन को वर्ष 2004 में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस हमले में 22 पुलिसकर्मी मारे गए थे।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 13 फरवरी को उनकी दया याचिकाएं खारिज कर दी थीं। चारों दोषी कर्नाटक के बेलगाम की एक जेल में बंद हैं।

वर्ष 2001 में मैसूर की एक टाडा अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी लेकिन शीर्ष अदालत ने सजा को बढ़ाकर मृत्युदंड कर दिया।

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गिरोह का सरगना वीरप्पन अक्टूबर 2004 में तमिलनाडु पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया था।