
Corona Lockdown: कोविड-19 के लॉकडाउन की वजह से ट्रेनें (Trains) बंद हुईं जिसका देश के व्यापार और टूरिज्म पर बड़ा असर पड़ा है. बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस (Varanasi) का टूरिज्म भी लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुआ. अब देश में जब, सब कुछ खुलता जा रहा है और हालात बहुत कुछ सामान्य हो रहे हैं लेकिन नियमित ट्रेनें अभी भी बंद है लिहाजा इससे होने वाला व्यापार और टूरिज्म अभी भी बेपटरी है. इस कारण बनारस घाट के तीर्थ पुरोहित, नाविक, नाई और पूजा का सामान बेचने वाले लोगों की ज़िन्दगी में अभी कोरोना का लॉकडाउन लगा है. हर रोज़ अलसुबह से ही बनारस के दशाश्वमेघ घाट पर आने वालों लोगों को नाविकअपनी नाव पर घुमाने की उम्मीद में आवाज़ लगाते हैं लेकिन इन्हें इक्का-दुक्का यात्री ही मिल पाते हैं. ज्यादातर समय यात्रियों के आने के इंतजार में ही गुजर जाता है. ऐसा इसलिये है क्योंकि यहां आने वाले ज़्यादातर लोग बनारस के लोकल हैं, बाहर से आने वाले जो तीर्थयात्री, जो नावों में घूमते थे, अभी भी ट्रेन बंद होने की वजह से नहीं आ पा रहे हैं. एक नाविक लव कुश साहनी कहते हैं, 'हम लोग का धंधा ठीक नहीं चल रहा है.जब तक ट्रेन नहीं चालू होगी, हालात मुश्किल वाले ही रहेंगे. इस सीजन में हम लोग सालभर की कमाई कर लेते थे अगर ट्रेन चालू नहीं होने के कारण बाहर के लोग नहीं आ पा रहे हैं जिससे हम लोगों के धंधे पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है.' लव कुश के अनुसार, हालांकि कुछ ट्रेन चालू हुई है लेकिन उससे हल्का-फुल्का प्रभाव ही पड़ा है. हम सरकार से मांग करेंगे कि ट्रेन चालू करें. एक पर्यटक आता है तो 40 लोगों का रोजगार चलता है. हम लोगों को तो 'कोरोना अभी भी लगा' है.
वाराणसी: Budget 2021 को लेकर सपा का अनोखा प्रदर्शन, झुनझुना लेकर सड़क पर उतरे, बोले...
नाविकों की तरह ही तीर्थ पुरोहित रमेश पांडेय को भी यात्रियों का इंतज़ार है. बीते साल इन दिनों कर्मकांड, पूजा पाठ, स्नान ध्यान के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों से इनका तखत भरा रहता था लेकिन आजकल दिनभर इक्का दुक्का लोग ही आते है जिससे परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है. रमेश भी इसका बड़ा कारण ट्रेन शुरू न होना मानते हैं. रमेश पाण्डेय ने कहा, 'देखिए, आना-जाना हर चीज चालू हो गई है. मॉल खुल गए, बच्चों के स्कूल चालू होने वाले हैं लेकिन अभी तक बाहर के यात्री नहीं आ पा रहे है. जब सब कुछ चालू हो गया तो ट्रेन भी चालू कर देना चाहिए.' उन्होंने कहा कि फादर का डेथ हो गया, लोग अपने घर में अस्थि ले ले रखे हैं कि ट्रेन चालू हो तो चलें. अब ट्रेन का रेट ही डबल है तो कौन यात्री आना चाहेगा. अब सरकार को इस को गंभीरता से सीरियसली लेना चाहिए.
श्राद्धकर्म और पिण्ड दान करने वालों के बाल उतारकर रोज़ी चलने वाले भोला नाई भी कर्मकांडों के लिए यात्रियों के न आ पाने से परेशान हैं. भोला ने कहा, 'ट्रेन न चलने से हम लोगों का धंधा एकदम कम हो गया. महाराष्ट्र, तमिलनाडु से लोग आते थे, पश्चिम बंगाल से आते थे, मुंबई से आते थे लेकिन ट्रेन बंद होने से कोई जजमान नहीं आ रहे है. पिंडदान करने वाले भी नही आ रहे है. वे आते थे तो बाल बनाने का हमारा काम चलता था.
वाराणसी में किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ किया प्रदर्शन, धरना दिया
अकेले बनारस कैंट स्टेशन पर ट्रेनों का आंकड़ा देखें तो लॉकडाउन से पहले 28 जोड़ी ट्रेन यहां से चलती और ख़त्म होती थी जबकि 90 ट्रेने यहां से थ्रू पासिंग होती थी यानीएक दिन में कुल 118 ट्रेनों का आवागमन होता था. प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ लाख यात्री यहां आते-जाते थे जबकि आज सिर्फ 13 ट्रेने यहां से शुरू और ख़त्म हो रही हैं और 48 ट्रेनें पासिंग है. इन ट्रेनों में भी कोविड के प्रोटोकॉल की वजह से यात्री कम सफर कर रहे हैं. पहले की तरह पूरी ट्रेने क्यों नहीं चल रही है, ये घाट पर पूजा सामग्री बेचने वाले राजेश भी नहीं समझ पा रहे. राजेश कुमार ने कहा, 'पूजा का सामान बेचने वालों का अभी तो धंधा बहुत कम चल रहा है. लोग बाहर से नहीं आ रहे हैं ट्रेन नहीं चल रही हैं तो कैसे-कैसे करके घर चला रहे हैं. लोग आएंगे तभी कुछ होगा? ट्रेन चालू होनी चाहिए. सरकार इन्हें चालू क्यों नहीं कर रही, पता नहीं. वैसे, पहले जैसे ट्रेनें न चलाने के पीछे सरकार की अपनी कुछ मजबूरी हो सकती है लेकिन इस मजबूरी से इससे जुड़े लोगों के व्यवसाय और रोज़ी-रोटी बड़ा असर पड़ा है. ऐसे में सरकार अगर इस तरफ भी कोई सार्थक कदम जल्द उठाती है तो इन्हे बड़ी राहत मिलेगी.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं