'इतना सन्नाटा क्यों हैं' महंगाई से लेकर किसानों के मुद्दों तक मोदी सरकार पर जमकर बरसीं उर्मिला मातोंडकर

उन्होंने 2014 के यूपीए के अंतिम कार्यकाल की याद दिलाते हुए कहा कि क्रूड ऑयल के दाम बैरल के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में 108 डॉलर थी, आज वो आधे पर आ चुकी है, तो ऐसा क्यों है कि आज भी पेट्रोल की कीमतें सेंचुरी लगा रही है?

नई दिल्ली:

पेट्रोल डीजल (Petrol diesel prices go up) की लगातार बढ़ती कीमतों पर आए दिन राजनैतिक दलों और फिल्मी कलाकारों की प्रतिक्रिया आ रही हैं. रविवार को बॉलीवुड अभिनेत्री और शिवसेना नेता उर्मिला मातोंडकर (Urmila Matondkar) ने पेट्रोल डीजल की कीमतों (Petrol diesel prices rising), बढ़ती महंगाई (Rising inflation), बेरोजगारी (Unemployment), किसानों के मुद्दे (Farmers movement) पर एनडीटीवी से बातचीत की. उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि, “इन सब के पीछे विडंबना यही है कि जो लोग इन्हीं मुद्दों पर बढ़-चढ़कर आंदोलन कर चुके हैं, कई तरह की अभिनव कल्पनाएं कर चुके हैं, जैसे कि साइकिल से संसद तक जाना, सिलेंडर लेकर पहुंचना, ये सब देश की जनता पहले देख चुकी है.” उन्होंने 2014 के यूपीए के अंतिम कार्यकाल की याद दिलाते हुए कहा कि क्रूड ऑयल के दाम बैरल के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में 108 डॉलर थी, आज वो आधे पर आ चुकी है, तो ऐसा क्यों है कि आज भी पेट्रोल की कीमतें सेंचुरी लगा रही हैं?

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अभिनेत्री ने एलपीजी सिलेंडर की कीमतों पर कहा कि, “उज्ज्वला योजना के तहत लोगों के घरों तक एलपीजी गैस कनेक्शन पहुंचाया गया हम लोग काफी खुश हुए. आज कितने ही घरों में एलपीजी गैस सिलेंडर पहुंच चुका है. लेकिन क्या कोई गरीब आदमी 800 रुपये का गैस सिलेंडर खरीदेगा? और अगर कोई आदमी 800 रुपये का गैस सिलेंडर खरीदेगा तो पत्थर पकाएगा? इन सब सवालों का जवाब कौन देगा? इन मुद्दों पर कुछ सवालों के जवाब मिलते भी हैं तो ऐसे, कि कोई क्या ही कहे? बीजेपी के एक मंत्री कहते हैं कि सर्दियों की वजह से पेट्रोल की कीमतें बढ़ती हैं. इनकी एक और मंत्री कहती हैं कि ये सारी चीजें केंद्र के हाथ में नहीं है, जबकि वही मंत्री 2013 में इन मुद्दों पर तत्कालीन सरकार को घेर चुकी हैं. वो कहती हैं कि कीमतों को लेकर ऑयल कंपनियां फैसला करती हैं, तो ऐसे में इन सबकी जिम्मेदारी कौन लेगा? आखिर इन सब सवालों के जवाब जनता को कब मिलेंगे?” उन्होंने कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से कई तरह से आम लोगों के जेबों पर इसका असर पड़ा है. यह निश्चित है कि पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों से सब्जियों के दाम बढ़ जाएंगे. सरकार पहले ही रेल किराये में कुछ बढ़ोतरी कर चुकी है. ऐसे में इन सभी सवालों के जवाब पूछे जाएंगे और सरकार को इसका जवाब देना भी पड़ेगा.

उर्मिला मातोंडकर ने विपक्ष के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि, “ऐसा नहीं है कि विपक्ष सवाल नहीं उठा रहा है. मैं तो कहना चाहूंगी कि विपक्षहीन सरकार की तस्वीर बनाने की कोशिश की गई है. इन सबके बीच मैं यहां ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी कि विपक्ष आज जनता बन चुकी है. उसके बारे में आप नेताओं का क्या ख्याल है? आज जनता ये सवाल उठा रही है. वो तमाम सवालों के जवाब चाहती है. क्योंकि जनता ट्वीटर पर बैठी हुई नहीं है. 1 महीने पहले जब मैंने पेट्रोल को लेकर ट्वीट किया था, तो उसमें मुझसे पेट्रोल की स्पेलिंग में गलती हो गई थी. तब बीजेपी की आईटी सेल ने पेट्रोल की मिस्टेक को लेकर मेरे नाम पर दिवाली मना ली थी. अगर मेरे पेट्रोल की मिस्टेक से देश की जनता को राहत मिली, तो मुझे ये मिस्टेक मंजूर है. मैं इसको लेकर आईटी ट्रोल को भी माफ कर देती हूं. मुझे अच्छा लगता है कि उनके जरिए कुछ युवाओं को तो रोजगार मिल रहा है. क्योंकि देश में तो नौकरियों को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. मुझे लगता है कि 19-20 लाख जॉब के वादे किये गए थे. बिहार चुनाव में भी जॉब को लेकर काफी वादे किये गए थे. अभी जो कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, वहां भी काफी बड़े-बड़े नेताओं की तरफ से जॉब को लेकर वादे किये जा रहे हैं, तो ऐसे में मेरा सवाल है कि क्या ये वादे सिर्फ सत्ता तक ही सीमित रहेंगे?”

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शिवसेना नेता ने पीएम मोदी के मन की बात पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, ‘आत्मनिर्भर भारत' सुनने में कितना सुंदर लगता है? कहीं ये ‘आत्मनिर्भर भारत' सिर्फ जुमला बनकर तो नहीं रह जाएगा? इसकी चिंता मुझे आम नागरिक के तौर पर सबसे ज्यादा होती है. क्योंकि जो मां-बाप अपने जीवन की सारी कमाई से बच्चों को पढ़ाते लिखाते हैं. आज उनके बच्चे ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्रियां लेकर नौकरियों के लिए खड़े हैं, लेकिन उन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं, तो आत्मनिर्भर बनने में सरकार की कुछ तो जिम्मेदारी बनती है? अगर सरकार जॉब की बात और किसानों की बात पर नहीं आती है तो यह किस तरह की ‘मन की बात' है?” उन्होंने कहा, “जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं. क्या वहां के मुद्दे स्वास्थ्य, पेट्रोल डीजल के बढ़ते हुए दाम, बेरोजगारी, महंगाई नहीं है? इन सब के बीच देवी-देवताओं को भी नहीं छोड़ा जा रहा है. कहीं पर ये देवी बनाम वो देवता किया जा रहा है. तो क्या हम देश के तौर पर सिर्फ ये सब बनकर रह जाएंगे? मैं हाथ जोड़कर मीडिया से भी पूछना चाहूंगी कि क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? या वही जिम्मेदारी है कि एक ही नेता के पीछे दिनभर भागना और उनके भाषण को दिनभर बार-बार दिखाना?

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