विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From May 25, 2021

कोरोना के खौफ ने अपनों से किया दूर, श्मशान घाट में हजारों लोगों की अस्थियां विसर्जन के इंतजार में

ये अस्थियां अभी भी विसर्जन के इंतजार में है. यही नहीं, कोरोना के खौफ के कारण बहुतों को तो 'अपनों' का कंधा तक नसीब नहीं हुआ.

Read Time: 4 mins
कोरोना के खौफ ने अपनों से किया दूर, श्मशान घाट में हजारों लोगों की अस्थियां विसर्जन के इंतजार में
प्रतीकात्‍मक फोटो
लखनऊ:

कोविड महामारी का खौफ लोगों में इस कदर व्‍याप्‍त है कि उत्‍तर प्रदेश में इसके कारण मरने वालों हमारों लोगों की अस्थियां लेने उनके अपने श्‍मशानों में नहीं पहुंचे हैं. ये अस्थियां अभी भी विसर्जन के इंतजार में है. यही नहीं, कोरोना के खौफ के कारण बहुतों को तो 'अपनों' का कंधा तक नहीं मिला, स्‍वयंसेवी लोगों ने अंतिम संस्‍कार किया. तमाम लोग श्‍मशान में पहुंचे लेकिन चिता जलते ही घर लौट गए और फूल चुनने लौटे ही नहीं. फिरोजाबाद के स्‍वर्गाश्रम में इसके प्रबंधक आलिंद अग्रवाल भरे हुए दिल से इन अस्थियों के विसर्जन की राह देख रहे हैं. इनमें तमाम अस्थियां कोरोना के पिछले साल के समय की हैं लेकिन कोरोना का खौफ ऐसा है कि जिन मां-बाप ने जन्‍म दिया उनकी अस्थियां लेने भी लोग नहीं गए. 

लखनऊ में कम करके बताए जा रहे कोरोना से मौतों के आंकड़े?

आलिंद कहते हैं, 'हिंदू पद्धति में जो मृतक होते हैं उनके परिवारजन लगभग 13 दिन के अंदर अंतिम संस्‍कार के बाद अस्थि विसर्जन करते हैं लेकिन दुर्भाग्‍य है कि कई मृतकों के परिजनों ने करीब एक-डेढ़ साल होने के बाद भी अस्थि विसर्जन को लेकर सुध नहीं ली. अलीगढ़ के नुमाइश ग्राउंड वाले मुक्तिधाम में कोई अपनी मां के फूल चुनने नहीं आया. श्‍मशान के लोग अस्थियां चुन रहे हैं. अंदर ऐसी अस्थियां भरी पड़ी है जिन्‍हें लेने के लिए परिजन नहीं पहुंचे. मानव सेवा संस्‍थान के विष्‍णु कुमार बंटी कहते हैं, 'बहुत से घर वाले जो आए, उन्‍होंने अंतिम संस्‍कार में अपने परिजनों को हाथ तक नहीं लगाया. मानव सेवा संस्‍था की ओर से उनका अंतिम संस्‍कार किया गया. कोरोना के कारण मरने वाले तमाम लोगों को 'अपनों' का कंधा तक नसीब नहीं हुआ.'

Video : क्यों गंगा में बहते मिले शव? हरिद्वार से बक्सर तक NDTV की पड़ताल

शामली में एक महिला के शव को जब कोई कंधा देने को तैयार नहीं हुआ तो नगरनिगम की कूड़ागाड़ी श्‍मशान ले गई. आजमगढ़ में श्‍मशान घाट का एक युवक भी यही बताता है. अंतिम संस्‍कार करने वाले सूरजभान बताते हैं-जो बॉडी बच रही है, उसको हम लोग जला रहे हैं. कोरोना के खौफ के कारण अंतिम संस्‍कार अच्‍छी तरह से होने के पहले ही कई बार परिवार वाले चले जाते हैं. कानपुर में कोरोना के कारण बड़ी संख्‍या में मौतें हैं. एक-एक दिन में सैकड़ों-सैकड़ों शव यहां जले हैं. अभी भी भैरव घाट में इलेक्ट्रिक शवदाहगृह में शवों की कतार है लेकिन तमाम अस्थियां लॉकर में बंद हैं.

समाजसेवी धनीराम पांथेर कहते हैं, 'लगभग 50 अस्थिकलश रखने की जगह हैं और लगभग 25 अस्थिकलश रखे हुए हैं.' इसकी वजह पूछने पर वे कहते हैं-वजह है डर. तमाम धर्मगुरु इससे तकलीफ में हैं, वे कहते हैं कि नदियों में अस्थियों के प्रवाह की परंपरा तोड़ी नहीं जा सकती. काशी घाट कानपुर के प्रभु कृपा आश्रम के अरुण चेतन्‍य कहते हैं, 'नदियों में प्रवाह की परंपरा थी उसका निर्वहन हर स्थिति में करना ही है. जो लोग ऐसा नहीं कर रहे, वे अच्‍छे इंसान नहीं हो सकते.' चंद रोज पहले एक महिला की अस्‍पताल में कोविड से मौत हुई, उसका पति और बेटा, दोनों शव छोड़कर भाग गए. अस्‍पताल के लोगों को उसका अंतिम संस्‍कार करना पड़ा. (कानपुर से आलम और राजेश गुप्‍ता के भी इनपुट)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;