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This Article is From Apr 02, 2015

फसल बर्बाद होने से यूपी में जान देते किसान, सरकार कर रही खुदकुशी के आंकड़ों में हेरफेर?

फसल बर्बाद होने से यूपी में जान देते किसान, सरकार कर रही खुदकुशी के आंकड़ों में हेरफेर?
बेमौसम बारिश से बर्बाद फसल
जालौन:

बेमौसम बारिश और ओलों ने पूरे देश में फसलों पर कहर बरपाया है। किसान बेहाल हैं और तनाव में वे जान भी दे रहे हैं। विदर्भ के बाद अब उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड किसानों की खुदकुशी का गढ़ बनता जा रहा है, लेकिन सरकार किसानों की खुदकुशी कम दिखाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर कर रही है।

जालौन जिले के दूरदराज के तीकर गांव में तिलक चंद की मौत को एक हफ़्ता हो गया है। शांति के लिए घर में हवन चल रहा है। बेमौसम बारिश में उनकी गेहूं की आधी फसल बरबाद हो गई। तिलक चंद ने एक स्थानीय साहूकार से 35 हज़ार रुपये उधार लिए थे और वो भी काफी ऊंचे ब्याज पर। तिलक चंद के पिता कपिल सिंह बताते हैं, मेरी पोती दौड़ती हुई आई कि चाचा ने खुद को फांसी लगा ली है, मैं दौड़ता हुआ आया तो उसे घर में मृत पाया। लेकिन ज़िला प्रशासन अलग ही दलील दे रहा है। प्रशासन का कहना है कि तिलक चंद शराबी था और घर में कलह के चलते उसने जान दे दी।

तिलक चंद अकेले नहीं हैं। प्रशासन ने खुदकुशी के 24 मामले दर्ज किए हैं, लेकिन मार्च के महीने में जो भी मौतें हुई हैं, उन्हें या तो प्राकृतिक मौत करार दिया गया है या फिर परिवारिक कलह से मौत। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि किसानों की खुदकुशी को कम दिखाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर की जा रही है।

'परमार्थ' एनजीओ के संजय सिंह कहते हैं, अक्सर सरकारें कहती हैं कि उनके राज्य में खुदकुशी की घटनाएं नहीं हो रही हैं, क्योंकि वे इसी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखती हैं, लेकिन हकीकत इससे अलग है। यूपी में 2013 में किसानों की खुदकुशी के 750 मामले सामने आए और यह आंकड़ा बेरोज़गारों की खुदकुशी से दोगुना है और घर संभालने वाली महिलाओं की खुदकुशी के बाद दूसरे नंबर पर है।

फसल चौपट होने के बाद हुई मौतों को देखकर मुख्यमंत्री ने राहत का एलान तो किया, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि दूसरे राज्यों की तरह यूपी में खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों के लिए न तो मुआवज़े की कोई स्पष्ट नीति है और न ही उनके पुनर्वास की।

यूपी योजना आयोग के सदस्य सुधीर पनवार का कहना है कि अगर हम ऐसे मामलों के लिए राहत की कोई नीति बनाते हैं तो इसका मतलब होगा कि हम लोगों के द्वारा खुदकुशी की अपेक्षा रखते हैं। इससे सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी।

किसानों की खुदकुशी की वजह को लेकर अलग-अलग दलीलें हो सकती हैं, लेकिन खेती पर निर्भर किसानों की बदहाली को लेकर कोई दो राय नहीं हो सकती, जो हमारी व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है।

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