यूपी के राज्यपाल राम नाईक (फाइल फोटो)
लखनऊ:
उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला अधर में लटका हुआ है। राज्य सरकार ने इस पद पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश रवीन्द्र सिंह यादव की नियुक्ति की सिफारिश सम्बन्धी फाइल चौथी बार राजभवन को भेज दी है और राज्यपाल राम नाईक उसके विभिन्न पहलुओं पर न्यायविदों से परामर्श ले रहे हैं।
राज्यपाल नाईक ने बताया कि सरकार ने शनिवार को चौथी बार भेजी फाइल में पुन: अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह यादव के नियुक्ति की सिफारिश की है।
उन्होंने बताया कि सरकार ने कहा है कि इस पद पर नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की दो सदस्यीय चयन समिति है और दोनों के बीच इस संबंध में बैठक हो चुकी है।
राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश की तरफ से आई फाइल में कहा गया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के बारे में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह ले ली गई है। मगर वह चयन प्रक्रिया पर बाध्यकारी नहीं है।
नाईक ने कहा कि वह सरकार की सिफारिश के विभिन्न पहलुओं पर न्यायिक राय ले रहे हैं और जो भी निर्णय होगा शीघ्र ही ले लेंगे।
नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि चयन समिति में मुख्य न्यायाधीश भी सदस्य हैं और किसी एक नाम की संस्तुति के लिए तीनों की सहमति जरूरी है।
मौर्य ने कहा, ‘‘मुझसे हुई चर्चा में मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ से भी विचार-विमर्श हो चुका है और उन्होंने अपनी संस्तुति प्रदान कर दी है।’’
उन्होंने कहा कि इस संबंध में 5-6 बैठकें हुई, मगर किसी में भी मुख्य न्यायाधीश शामिल नहीं थे।
राज्यपाल ने 21 अगस्त को लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी फाइलों को तीसरी बार सरकार को वापस भेजते हुए कहा था कि उच्चतम न्यायालय के गत 23 जुलाई को पारित आदेश के मद्देनजर मुख्यमंत्री इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधानसभा के नेता विपक्ष आपसी विचार-विमर्श एवं सहमति के बाद कोई एक नाम नए लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित करें।
नाईक ने फाइल तीसरी बार लौटाते हुए 10 पृष्ठों का पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के पत्रों का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘चार में से तीन पत्रों में मैंने न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह की नियुक्ति से असहमत होने के कारण बताये थे। मैं उन कारणों को दोहराते हुए स्पष्ट कहना चाहता हूं कि मैं लोकायुक्त पद पर रवीन्द्र सिंह की नियुक्ति से सहमत नहीं हूं।’’
राज्यपाल ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के एक और पत्र का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह के उपस्थित रहने का उल्लेख करते हुए कहा था कि जनता की निगाह में किसी दल विशेष के प्रति झुकाव रखने वाला व्यक्ति लोकायुक्त के दायित्व का निष्पक्ष तरीके से निष्पादन कर पायेगा, इसमें संदेह है।
उच्चतम न्यायालय ने गत 23 जुलाई को राज्य सरकार से कहा था कि वह लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिये 22 अगस्त तक कोई नाम सुझाए जिसके बाद सरकार ने रवीन्द्र सिंह यादव का नाम तय करके उससे सम्बन्धित फाइल पांच अगस्त को पहली बार राजभवन को भेजी थी।
प्रदेश में मार्च 2012 में अखिलेश यादव सरकार के गठन के बाद प्रदेश में लोकायुक्त के कार्यकाल को छह से बढ़ाकर आठ साल करने की बात कही गई थी। मौजूदा लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा नौ साल से इस पद पर हैं।
राज्यपाल ने फाइल वापस भेजते हुए स्पष्ट कर दिया था कि मुख्यमंत्री, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधानसभा के नेता विपक्ष की चयन समिति की बैठक में नाम तय होने के बाद ही वह फाइल पर अपनी मंजूरी देंगे।
राज्यपाल नाईक ने बताया कि सरकार ने शनिवार को चौथी बार भेजी फाइल में पुन: अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह यादव के नियुक्ति की सिफारिश की है।
उन्होंने बताया कि सरकार ने कहा है कि इस पद पर नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की दो सदस्यीय चयन समिति है और दोनों के बीच इस संबंध में बैठक हो चुकी है।
राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश की तरफ से आई फाइल में कहा गया है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के बारे में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भी सलाह ले ली गई है। मगर वह चयन प्रक्रिया पर बाध्यकारी नहीं है।
नाईक ने कहा कि वह सरकार की सिफारिश के विभिन्न पहलुओं पर न्यायिक राय ले रहे हैं और जो भी निर्णय होगा शीघ्र ही ले लेंगे।
नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि चयन समिति में मुख्य न्यायाधीश भी सदस्य हैं और किसी एक नाम की संस्तुति के लिए तीनों की सहमति जरूरी है।
मौर्य ने कहा, ‘‘मुझसे हुई चर्चा में मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ से भी विचार-विमर्श हो चुका है और उन्होंने अपनी संस्तुति प्रदान कर दी है।’’
उन्होंने कहा कि इस संबंध में 5-6 बैठकें हुई, मगर किसी में भी मुख्य न्यायाधीश शामिल नहीं थे।
राज्यपाल ने 21 अगस्त को लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधी फाइलों को तीसरी बार सरकार को वापस भेजते हुए कहा था कि उच्चतम न्यायालय के गत 23 जुलाई को पारित आदेश के मद्देनजर मुख्यमंत्री इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधानसभा के नेता विपक्ष आपसी विचार-विमर्श एवं सहमति के बाद कोई एक नाम नए लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए प्रस्तावित करें।
नाईक ने फाइल तीसरी बार लौटाते हुए 10 पृष्ठों का पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के पत्रों का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘‘चार में से तीन पत्रों में मैंने न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह की नियुक्ति से असहमत होने के कारण बताये थे। मैं उन कारणों को दोहराते हुए स्पष्ट कहना चाहता हूं कि मैं लोकायुक्त पद पर रवीन्द्र सिंह की नियुक्ति से सहमत नहीं हूं।’’
राज्यपाल ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के एक और पत्र का जिक्र किया था, जिसमें उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ न्यायमूर्ति रवीन्द्र सिंह के उपस्थित रहने का उल्लेख करते हुए कहा था कि जनता की निगाह में किसी दल विशेष के प्रति झुकाव रखने वाला व्यक्ति लोकायुक्त के दायित्व का निष्पक्ष तरीके से निष्पादन कर पायेगा, इसमें संदेह है।
उच्चतम न्यायालय ने गत 23 जुलाई को राज्य सरकार से कहा था कि वह लोकायुक्त पद पर नियुक्ति के लिये 22 अगस्त तक कोई नाम सुझाए जिसके बाद सरकार ने रवीन्द्र सिंह यादव का नाम तय करके उससे सम्बन्धित फाइल पांच अगस्त को पहली बार राजभवन को भेजी थी।
प्रदेश में मार्च 2012 में अखिलेश यादव सरकार के गठन के बाद प्रदेश में लोकायुक्त के कार्यकाल को छह से बढ़ाकर आठ साल करने की बात कही गई थी। मौजूदा लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा नौ साल से इस पद पर हैं।
राज्यपाल ने फाइल वापस भेजते हुए स्पष्ट कर दिया था कि मुख्यमंत्री, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं राज्य विधानसभा के नेता विपक्ष की चयन समिति की बैठक में नाम तय होने के बाद ही वह फाइल पर अपनी मंजूरी देंगे।
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