यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य (फाइल फोटो)
लखनऊ:
केशव प्रसाद मौर्या यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष बन गए। वह एक ऐसे नेता हैं जिन्हें बीजेपी में बहुत काम लोग जानते हैं। बीजेपी में इनका राजनीतिक जीवन 2012 में शुरू हुआ। 2012 में इलाहाबाद की सिराथू सीट से एमएलए बने।
2014 में एमपी और 2016 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। बीजेपी में उनका राजनीतिक जीवन 4 साल का है लेकिन वीएचपी और बजरंग दल में वह 12 साल रहे हैं। बीजेपी की तरफ से जारी प्रेस नोट में उनकी योग्यता यह भी बताई गयी है कि वह भी बचपन में चाय बेचते थे। वह वीएचपी टाइप आक्रामक भाषण देने के लिए जाने जाते हैं, जो एक वर्ग को सांप्रदायिक लगते हैं। उनके ऊपर तमाम आपराधिक मुक़दमे भी चलते रहे हैं। वह वीएचपी नेता अशोक सिंघल के क़रीबी रहे हैं।
मौर्या पिछड़े वर्ग से आते हैं। उन्हें मुलायम और मायावती का मुक़ाबला करने के लिए लाया गया है। यूपी में ओबीसी वोट करीब 40 फीसदी है। सबसे ज़्यादा यादव फिर कुर्मी हैं। तीसरे नंबर पर कुशवाहा और मौर्या। बीजेपी में कई बड़े ओबीसी नेता हैं। जिनमें कल्याण सिंह, उमा भारती, संतोष गंगवार, विनय कटियार वग़ैरह शामिल हैं। पिछड़े इनके साथ खुद को जोड़ कर देखते हैं। जिसे इंग्लिश में कहते हैं कि इनके साथ वे खुद को आईडेंटिफाई करते हैं।
कहते हैं कि पहले बीजेपी के लोध नेता धर्मपाल का नाम अध्यक्ष बनने के लिए फाइनल हो गया था। अमित शाह उन्हें दिल्ली बुला कर बातचीत भी कर चुके थे। लेकिन कहते हैं कि एक बड़े लोध नेता के अड़ंगा लगाने से उनका पत्ता कट गया। इसके अलावा संतोष गंगवार और राम शंकर कठेरिया का नाम भी रेस में माना जा रहा था। गंगवार बीजेपी के सबसे बड़े कुर्मी नेता हैं। कठेरिया दलित हैं और केंद्र में एचआरडी राज्य मंत्री भी हैं। लेकिन मौर्या को अमित शाह ने पसंद किया है। ठीक उसी तरह जिस तरह देवेन्द्र फडणवीस और खट्टर मोदी की पसंद हैं।
कुछ लोगों का कहना था कि यह चुनाव उनके लिए बड़ा इम्तेहान होगा। लेकिन कुछ और कहते हैं कि मौजूदा दौर में राज्यों के चुनाव राज्य नेतृत्व के लिए नहीं बल्कि मोदी और अमित शाह का इम्तेहान होते हैं, इसलिए मौर्या को ज़्यादा चिंता करने की ज़रुरत नहीं।
2014 में एमपी और 2016 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बन गए। बीजेपी में उनका राजनीतिक जीवन 4 साल का है लेकिन वीएचपी और बजरंग दल में वह 12 साल रहे हैं। बीजेपी की तरफ से जारी प्रेस नोट में उनकी योग्यता यह भी बताई गयी है कि वह भी बचपन में चाय बेचते थे। वह वीएचपी टाइप आक्रामक भाषण देने के लिए जाने जाते हैं, जो एक वर्ग को सांप्रदायिक लगते हैं। उनके ऊपर तमाम आपराधिक मुक़दमे भी चलते रहे हैं। वह वीएचपी नेता अशोक सिंघल के क़रीबी रहे हैं।
मौर्या पिछड़े वर्ग से आते हैं। उन्हें मुलायम और मायावती का मुक़ाबला करने के लिए लाया गया है। यूपी में ओबीसी वोट करीब 40 फीसदी है। सबसे ज़्यादा यादव फिर कुर्मी हैं। तीसरे नंबर पर कुशवाहा और मौर्या। बीजेपी में कई बड़े ओबीसी नेता हैं। जिनमें कल्याण सिंह, उमा भारती, संतोष गंगवार, विनय कटियार वग़ैरह शामिल हैं। पिछड़े इनके साथ खुद को जोड़ कर देखते हैं। जिसे इंग्लिश में कहते हैं कि इनके साथ वे खुद को आईडेंटिफाई करते हैं।
कहते हैं कि पहले बीजेपी के लोध नेता धर्मपाल का नाम अध्यक्ष बनने के लिए फाइनल हो गया था। अमित शाह उन्हें दिल्ली बुला कर बातचीत भी कर चुके थे। लेकिन कहते हैं कि एक बड़े लोध नेता के अड़ंगा लगाने से उनका पत्ता कट गया। इसके अलावा संतोष गंगवार और राम शंकर कठेरिया का नाम भी रेस में माना जा रहा था। गंगवार बीजेपी के सबसे बड़े कुर्मी नेता हैं। कठेरिया दलित हैं और केंद्र में एचआरडी राज्य मंत्री भी हैं। लेकिन मौर्या को अमित शाह ने पसंद किया है। ठीक उसी तरह जिस तरह देवेन्द्र फडणवीस और खट्टर मोदी की पसंद हैं।
कुछ लोगों का कहना था कि यह चुनाव उनके लिए बड़ा इम्तेहान होगा। लेकिन कुछ और कहते हैं कि मौजूदा दौर में राज्यों के चुनाव राज्य नेतृत्व के लिए नहीं बल्कि मोदी और अमित शाह का इम्तेहान होते हैं, इसलिए मौर्या को ज़्यादा चिंता करने की ज़रुरत नहीं।
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