प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर नया असंतोष आरएसएस से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ ने जताया है. आज उसने दिल्ली में प्रदर्शन किया और वित्त मंत्री को ज्ञापन सौंपा. भारतीय मज़दूर संघ का आरोप है कि मोदी सरकार की नीतियों की वजह से बेरोज़गारी बढ़ी है, रोज़गार के नए मौक़े पैदा नहीं हुए हैं.
संघ परिवार से जुड़े संगठन भारतीय मज़दूर संघ के हज़ारों मज़दूर शुक्रवार को दिल्ली के संसद मार्ग पर चले आए. अलग-अलग शहरों से आए इन मज़दूरों की शिकायत साझा है. उनका कहना है, सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से मज़दूर असुरक्षित हुए हैं, लोगों की नौकरियां गई हैं और रोज़गार के नए मौक़े हासिल नहीं हुए हैं.
भारतीय मज़दूर संघ के ज़ोनल सेक्रेटरी पवन कुमार ने एनडीटीवी से कहा पिछले 26 साल में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों का मज़दूर वर्ग पर बुरा असर पड़ा है और इसमें मोदी सरकार को बदलने पर गंभीरता से विचार करना होगा. भारतीय मज़दूर संघ की श्रमिक महारैली में भारतीय मज़दूर संघ के सैकड़ों युवा कार्यकर्ता भी शामिल हुए. दिल्ली के देवेंद्र चहर ने एनीडीटीवी से कहा, "सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था में रोज़गार पैदा नहीं हो पा रहा है...युवा को काम नहीं मिल रहा जिस वजह से वे गलत कामों में फंसते जा रहे हैं."
प्रदर्शन में बहुत सारे लोग आए जो ठेकों या अस्थायी नौकरियों में या अलग-अलग सरकारी योजनाओं में काम कर रहे हैं. आंगनबाड़ी और आशा से जुड़ी बहुत सारी महिलाएं आईं. उनकी शिकायत है कि उन्हें नहीं के बराबर पैसे मिलते हैं. राजस्थान से आई आशा वर्करों ने एनडीटीवी को बताया कि उन्हें महीने भर काम करने के बाद 1800 रुपये मिलते हैं. उनकी सरकार से मांग है कि सरकार उनकी तनख्वाह बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति महीने करे.
VIDEO : सड़क पर उतरे मजदूर
दोपहर बाद मज़दूर संघ के नेता वित्त मंत्री अरुण जेटली से भी मिले और उन्हें अपना ज्ञापन सौंपा. मुलाकात के बाद भारतीय मज़दूर संघ के बृजेश उपाध्याय ने कहा, हमने शुक्रवार को प्रदर्शन किया और भविष्य में फिर सड़क पर उतर सकते हैं. जब तक सरकार अपनी आर्थिक और श्रमिक नीतियों में आधारभूत बदलाव नहीं करती है, हमारा विरोध जारी रहेगा." दरअसल सरकार की आर्थिक नीतियों के ख़िलाफ़ बीएमएस का प्रदर्शन मज़दूरों का भरोसा जीतने की भी कोशिश है. लेकिन सवाल है, सरकार क्या इस संगठन के कहने पर अपनी आर्थिक और श्रम सुधार की नीतियों में बदलाव करेगी?
संघ परिवार से जुड़े संगठन भारतीय मज़दूर संघ के हज़ारों मज़दूर शुक्रवार को दिल्ली के संसद मार्ग पर चले आए. अलग-अलग शहरों से आए इन मज़दूरों की शिकायत साझा है. उनका कहना है, सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से मज़दूर असुरक्षित हुए हैं, लोगों की नौकरियां गई हैं और रोज़गार के नए मौक़े हासिल नहीं हुए हैं.
भारतीय मज़दूर संघ के ज़ोनल सेक्रेटरी पवन कुमार ने एनडीटीवी से कहा पिछले 26 साल में आर्थिक उदारीकरण की नीतियों का मज़दूर वर्ग पर बुरा असर पड़ा है और इसमें मोदी सरकार को बदलने पर गंभीरता से विचार करना होगा. भारतीय मज़दूर संघ की श्रमिक महारैली में भारतीय मज़दूर संघ के सैकड़ों युवा कार्यकर्ता भी शामिल हुए. दिल्ली के देवेंद्र चहर ने एनीडीटीवी से कहा, "सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से अर्थव्यवस्था में रोज़गार पैदा नहीं हो पा रहा है...युवा को काम नहीं मिल रहा जिस वजह से वे गलत कामों में फंसते जा रहे हैं."
प्रदर्शन में बहुत सारे लोग आए जो ठेकों या अस्थायी नौकरियों में या अलग-अलग सरकारी योजनाओं में काम कर रहे हैं. आंगनबाड़ी और आशा से जुड़ी बहुत सारी महिलाएं आईं. उनकी शिकायत है कि उन्हें नहीं के बराबर पैसे मिलते हैं. राजस्थान से आई आशा वर्करों ने एनडीटीवी को बताया कि उन्हें महीने भर काम करने के बाद 1800 रुपये मिलते हैं. उनकी सरकार से मांग है कि सरकार उनकी तनख्वाह बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति महीने करे.
VIDEO : सड़क पर उतरे मजदूर
दोपहर बाद मज़दूर संघ के नेता वित्त मंत्री अरुण जेटली से भी मिले और उन्हें अपना ज्ञापन सौंपा. मुलाकात के बाद भारतीय मज़दूर संघ के बृजेश उपाध्याय ने कहा, हमने शुक्रवार को प्रदर्शन किया और भविष्य में फिर सड़क पर उतर सकते हैं. जब तक सरकार अपनी आर्थिक और श्रमिक नीतियों में आधारभूत बदलाव नहीं करती है, हमारा विरोध जारी रहेगा." दरअसल सरकार की आर्थिक नीतियों के ख़िलाफ़ बीएमएस का प्रदर्शन मज़दूरों का भरोसा जीतने की भी कोशिश है. लेकिन सवाल है, सरकार क्या इस संगठन के कहने पर अपनी आर्थिक और श्रम सुधार की नीतियों में बदलाव करेगी?
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