राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ और मोदी सरकार अहम् आर्थिक सुधार के मसले पर आमने सामने खड़े हो गए हैं. बुधवार को भारतीय मज़दूर संघ के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने देश के अलग अलग इलाकों में मोदी सरकार की अहम् सरकारी उपक्रमों के निजीकरण, निगमीकरण और विनिवेश की नीति के खिलाफ प्रदर्शन किया और रोलबैक की मांग की.
संघ परिवार में अहम आर्थिक सुधार के मसले पर अंदरूनी गतिरोध खुलकर सामने आ गया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ के हज़ारों कार्यकर्ता बुधवार को सड़कों पर उतरे और मोदी सरकार पर मज़दूरों के हितों के खिलाफ नीति बनाने का आरोप लगाया और मांग की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पब्लिक सेक्टर यूनिट्स के निजीकरण और विनिवेश का जो ऐलान किया है उसे तत्काल वापस लिया जाये.भारतीय मज़दूर संघ के जोनल सेक्रेटरी पवन कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "अगर मोदी सरकार इन फैसलों को (निजीकरण, कॉर्पेटाइजेशन और विनिवेश) रोलबैक नहीं करेगी तो भारतीय मजदूर संघ इससे भी कड़ा निर्णय आगे करेगी"
बीएमएस पूछा गया कि यह कड़ा निर्णय क्या हो सकता है? क्या आप आगे अनिश्चितकालीन आंदोलन भी कर सकते हैं? तो इसके जवाब में पवन कुमार ने कहा, 'निश्चित रूप से, ये आंदोलन तब तक चलेगा अगर सरकार रोलबैक नहीं करेगी .'
भारतीय मज़दूर संघ के नेता और संघ परिवार में गतिरोध
बीएमएस मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को बेचने के खिलाफ हैं. उनके मुताबिक रेलवे और डिफेन्स आर्डिनेंस फैक्ट्रीज बोर्ड के कोर्पोरटिजशन का फैसला गलत है. कोयला सेक्टर का कमर्शियलाइजेशन मज़दूर के हित में नहीं और डिफेन्स जैसे स्ट्रेटेजिक सेक्टर में एफडीआई को मंज़ूरी गलत फैसला है.
इससे पहले भारतीय मज़दूर संघ को छोड़कर मोदी सरकार की नई आर्थिक सुधर के एजेंडे के खिलाफ 10 बड़े केंद्रीय श्रमिक संगठन लामबंद हो चुके हैं और उन्होंने 3 जुलाई को देश भर में साझा विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है कोरोना संकट के इस दौर में जहाँ एक तरफ मोदी सरकार आर्थिक सुधार के नए अजेंडे के ज़रिये नए वित्तीय संसाधन जुटाना चाहती है वहीँ देश में बढ़ते मज़दूरों के संकट से भारतीय मज़दूर संघ और दूसरे बड़े श्रमिक संगठन इन फैसलों को रोलबैक करने को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ा रहे हैं. अब देखना होगा सरकार बड़े श्रमिक संगठनों के इस विरोध से कैसे निपटती है.
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