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This Article is From Aug 02, 2016

UIDAI ने विप्रो को 4.92 करोड़ का अनुचित लाभ पहुंचाया : CAG

UIDAI ने विप्रो को 4.92 करोड़ का अनुचित लाभ पहुंचाया : CAG
सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली: सरकारी लेखापरीक्षक (सीएजी) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने निजी क्षेत्र की सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी कंपनी विप्रो को करीब पांच करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया है.

यूआईडीएआई आधार नंबर का कामकाज देखती है और उसने इसके रखरखाव के लिए विप्रो को ठेका दिया था. भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने इस बात को लेकर भी टिप्पणी की है कि यूआईडीएआई ने सरकारी एजेंसी डीएवीपी के जरिए विज्ञापन नहीं देकर सरकारी नीति का पालन नहीं किया, जिसकी वजह से उसे 1.41 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

सीएजी की इस बारे में संसद में मंगलवार को पेश रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारतीय विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण ने अनुबंध के प्रावधानों के खिलाफ काम करते हुए संबंधित कंपनी मैसर्स विप्रो लिमिटेड को अनुचित लाभ पहुंचाया, यही नहीं उपकरणों एवं सामान के सालाना देखभाल एवं रखरखाव पर 4.92 करोड़ रुपये का खर्च किया, जिसे बचाया जा सकता था. क्योंकि जिस अवधि के लिए यह ठेका दिया गया वह अवधि निशुल्क रखरखाव वारंटी के तहत पहले से ही कवर थी.'

मई 2011 में विप्रो के साथ एक अनुबंध हुआ
रिपोर्ट के अनुसार, यूआईडीएआई ने मई 2011 में विप्रो के साथ एक अनुबंध किया. यह अनुबंध प्राधिकरण के बेंगलुरु और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी स्थित केन्द्रों में सामान की आपूर्ति, उसकी स्थापना, सर्वर को चालू करने, भंडारण एवं सुरक्षा प्रणाली और डाटा केन्द्र में आकस्मिक सेवाओं के लिए था. इसकी लागत 134.28 करोड़ रुपये थी.

अनुबंध के तहत अंतिम स्वीकार्यता परीक्षण जनवरी-फरवरी 2013 में संतोषजनक प्रदर्शन के साथ हुआ. इस लिहाज से इस अनुबंध के पूरा होने की तिथि फरवरी 2013 रही. अनुबंध में प्रावधान था कि सर्वर और भंडारण प्रणाली की वारंटी इसके अंतिम पड़ाव पर पहुंचने और चालू होने के 36 माह तक और अन्य सामान के मामले में 12 माह तक वैध होगी.

इसके बावजूद मार्च 2013 में यूआईडीएआई ने विप्रो के साथ प्रणाली के रखरखाव का सालाना अनुबंध किया, जिसकी लागत 4.92 करोड़ रुपये रही. यह अनुबंध फरवरी 2013 से जनवरी 2014 तक के लिए किया गया और इस पर हस्ताक्षर एक जून 2013 को किए गए.

AMC पर किए गए खर्च को बचाया जा सकता था
सीएजी का मानना है कि मूल अनुबंध से हटकर पिछली तिथि से सालाना रखरखाव अनुबंध करने से यूआईडीएआई ने 4.92 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च किया, जिससे बचा जा सकता था. जिस अवधि के लिए यह अनुबंध किया गया वह पहले से ही वारंटी यानी निशुल्क रखरखाव के तहत कवर थी।

सीएजी ने यह भी पाया कि यूआईडीएआई अपने विज्ञापनों को विज्ञापन एवं दृश्य प्रकाशन निदेशालय (डीएवीपी) के जरिए नहीं देता था, जो कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तय नीति है. ऐसा करने से भी उसे 1.41 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, क्योंकि ऐसा करने से उसे जो रियायत मिलती वह नहीं मिल पाई.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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