ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की महिला शाखा ने मंगलवार को तीन तलाक से संबंधित विधेयक के महिला विरोधी होने का आरोप लगाया और राज्यसभा सदस्यों से इसे कानूनी जांच के लिए प्रवर समिति को भेजने को आह्वान किया. इकाई की मुख्य आयोजक असमा ज़ोहरा ने यहां एक विज्ञप्ति में कहा कि ‘मुस्लिम महिला (विवाह का अधिकार संरक्षण) विधेयक 2018' महिलाओं को सशक्त करने के बजाय शादियों को तोड़ सकता है और परिवार व्यवस्था तथा विवाह संस्था को सीधा आघात पहुंचाएगा.
उन्होंने आरोप लगाया कि विधेयक को ‘मुस्लिम महिलाओं' को सशक्त करने के लिए लाया गया है लेकिन इसके प्रावधान इसके मकसद को पूरा नहीं करते हैं. ज़ोहरा ने कहा, ‘‘ मुस्लिम महिलाओं को इस विधेयक से कुछ नहीं मिलेगा. बल्कि उन्हें अकेले छोड़ दिया जाएगा. उनके हालात और तकलीफदेह हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले में, मजिस्ट्रेट जमानत देने पर फैसला करते हैं न कि पीड़ित. ज़ोहरा ने कहा, ‘‘ पत्नी के सिर्फ इल्जाम लगाने पर शौहर (पति) जेल चला जाएगा. यह आपराधिक न्यायशास्त्र के खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि हमारे देश में पुरुषों और महिलाओं को शादी से पहले, विवाहत्तेर और यहां तक कि कई संबंध रखने की आजादी है. उन्होंने कहा कि धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाना निजी और दीवानी मामलों में आजादी की एक मिसाल है. उन्होंने सवाल किया कि फिर क्यों एक मुस्लिम पुरूष को तलाक देने पर सजा दी जाए. ज़ोहरा ने कहा कि बोर्ड ने पहले भी कहा है और फिर से कहता है कि एक साथ तीन तलाक देना तलाक की मानक प्रक्रिया नहीं है और जो इस प्रथा का इस्तेमाल करेंगे उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की ओर से एक बार में तीन तलाक को अवैध करार देने के बाद इस विधेयक की जरूरत नहीं थी. इसे समाज को बांटने के लिए राजनीतिक और सांप्रदायिक मंशा से लाया गया है. (इनपुट भाषा से)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं