17 साल की उम्र में नक्सली करार दी गई आदिवासी लड़की ने जेल में काटे 7 साल

17 साल की उम्र में नक्सली करार दी गई आदिवासी लड़की ने जेल में काटे 7 साल

दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़):

बस्तर के गांवों में रहने वाले कई निर्दोष आदिवासियों को पुलिस नक्सली बताकर जेल में डाल देती है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 90 प्रतिशत से अधिक लोग निचली अदालत में ही बेकसूर साबित होते हैं, लेकिन जब तक ये लोग छूटते हैं तब तक इनकी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा जेल में बरबाद हो चुका होता। इसकी सबसे बड़ी शिकार हैं आदिवासी महिलाएं।
 
सत्रह साल की एक आदिवासी लड़की मरिया (नाम बदला हुआ) 2008 में नक्सलियों के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ के एक गांव पर हमला करने के आरोप में गिरफ्तार की गई, लेकिन पुलिस के पास इसके खिलाफ न तो कोई सबूत था और न ही कोई गवाह अदालत में पेश किया जा सका। फिर भी सात साल तक इस लड़की को जेल में रहना पड़ा और इस साल मार्च में वो निचली अदालत से लड़की बेकसूर साबित हुई है।

पुलिस ने इसके खिलाफ जो भी आरोप लगाए वो अदालत में साबित नहीं हो सके। सोढ़ी रामा नाम के जिस एसपीओ पुलिस ने यह कहकर अदालत में पेश किया कि वह नक्सली हमले के पुलिस के साथ वक्त गश्त में गया था उसने अदालत में कहा कि वह पुलिस वालों के साथ गश्त में गया ही नहीं था और न ही उसके सामने कोई घटना हुई। पुलिस ने इसी घटना के लिए मरिया को ज़िम्मेदार ठहराया था। (वीडियो रिपोर्ट देखें)

मरिया को दिल्ली लाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं में एक है स्कूल टीचर और कुछ साल पहले नक्सलियों की मदद करने के आरोपों में फंसी सोनी सोरी। सोनी भी खुद पर लगाये गये आधा दर्जन आरोपों में बरी हो चुकी है और उस पर केवल एक आरोप बाकी है। सोनी का कहना है कि बस्तर में नक्सलियों की मदद का आरोप लगाकर लोगों को फंसाना पुलिस के लिए बहुत आसान है।

मरिया हिंदी नहीं जानती। सोनी ने गोंडी में हमें दिए उसके बयान का तरजुमा करते हुए बताया कि मरिया को सात साल तक जेल में रखा गया और उसकी ज़मानत भी इस बीच नहीं हुई। मरिया का आरोप है कि पुलिस ने न केवल झूठे आरोपों में उसे फंसाया, बल्कि उसे हिरासत में टॉर्चर किया और उसके साथ बलात्कार भी किया गया।

मानवाधिकारों के लिए लड़ रहीं वकील वृंदा ग्रोवर कहती हैं कि मरिया जैसे लोगों के हाल बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में पुलिस के लिए किसी को भी नक्सल केसों में फंसाकर कई साल तक जेल में रखना कितना आसान है। ग्रोवर ने कहा कि पहले सल्वा जुडुम कैंपों में लोगों को अमानवीय हालात में रखा गया। जब अदालत ने सल्वाजुडुम को गैरकानूनी बताया तो पुलिस लोगों को जेलों में भर रही है और राज्य में जेलों के हाल बहुत खराब हैं।

आंकड़े बताते हैं कि राज्य की जेलें कैदियों से भरी हुई हैं...

-    आज छत्तीसगढ़ में जेलों में कैदियों की मौजूदगी 220 प्रतिशत है।
-    यानी हर 100 कैदियों की जगह में 220 कैदी जेलों में हैं।
-    जिन लोगों को नक्सल मामलों में पकड़ा जाता है
-    उनमें से 1 से 3 फीसद लोग ही निचली अदालत में दोषी पाये जाते हैं।

छत्तीसगढ़ के जेल महानिदेशक गिरधारी नायक ने एनडीटीवी इंडिया से कहा कि कैदियों के रहने के हालात सुधारने के लिए हम छत्तीसगढ़ में नई जेल और बैरक बना रहे हैं। इस साल के अंत कर हम जेल में कैदियों की 180 प्रतिशत और 2017 तक 150 प्रतिशत होगी जोकि अभी के हिसाब से काफी बेहतर हालात होंगे।

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ये सच है कि छत्तीसगढ़ का एक बहुत बड़ा हिस्सा नक्सली हिंसा की चपेट में है और पुलिस वालों और सुरक्षा बलों के लिए वहां काम करना काफी कठिन है। फिर भी मरिया जैसी निर्दोष लोगों की कहानी, आदिवासियों से भरी जेलें और उनमें से ज़्यादातर लोगों का बेकसूर साबित होना बताता है कि इस जंग में कई निर्दोष लोग पिस रहे हैं।